Monday, July 29, 2013

MAHARAJA RAILWAY : SBL TO SEO

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S


 श्योंपुर कलां की ओर 




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      कुन्नु घाटियों का असली नजारा सबलगढ़ के निकलने के बाद ही शुरू होता है। ट्रेन रामपहाड़ी, बिजयपुर रोड,कैमारा कलां होते हुए बीरपुर पहुंची। सबलगढ़ के बाद अगला मुख्य स्टेशन यही है, यहाँ आने से पहले ही  हो गया था, मतलब आसमान में घने काले बादलों की काली घटाएँ छाई हुईं थीं। ट्रेन की छत पर से बादल ऐसे नजर आ रहे थे जैसेकि अभी बरस पड़ेंगे, पर शायद आज बादलों को पता था कि मैं ट्रेन की छत पर और भीगने के सिवाय मुझपर कोई रास्ता ही नहीं बचेगा इसलिए आसमान में गरजते ही रहे। ट्रेन बीरपुर स्टेशन पहुंची, अब बादलों का धैर्य जबाब दे गया था, ट्रेन के स्टेशन पहुँचते ही बरस पड़े, मैं स्टेशन के टीन शैड के नीचे होकर केले खाता रहा, यहाँ केले आगरा की अपेक्षा काफी सस्ते थे और मुझे भूख भी काफी लगी हुई थी, दीपक भी मेरे साथ था। 


      आज बीरपुर में जो बारिश मैंने देखी वो पहले कभी नहीं देखी थी, एक पल को तो ऐसा लगा जैसे आसमान ही आज धरती पर आ गिरा था। केले ख़त्म हुए तो मैं अब बारिश बंद होने की प्रतीक्षा करने लगा, पर मैं भूल गया था कि सामने खड़ी ट्रेन किसी की प्रतीक्षा नहीं करती, बस वह तो वक़्त की पाबन्द है जहाँ वक़्त हुआ नहीं और वो आगे बढ़ी नहीं। घमासान बारिश के बीच ट्रेन ने अपनी सीटी बजा दी और एक जोरदार झटका सा लेकर ट्रेन बीरपुर से रवाना हो चली। अब ट्रेन की छत भी लगभग खाली सी हो चुकी थी, बस एक दो मुसाफिर ही अपने छातों का सहारा लेकर छत पर बैठे हुए थे। यहाँ से मैं और दीपक अलग अलग डिब्बों में सवार हो गए। 

      मेरे ट्रेन के अन्दर घुसने के लिए जगह ही नहीं बची थी इसलिए मैं दरवाजे पर ही लटका रहा। अन्दर खड़ी हुई सवारियों ने मुझे और आराम से खड़े होने के लिए जगह दे दी वो भी सिर्फ इसलिए ताकि बरसात के पानी की फुहारें मेरी वजह से उनतक नहीं पहुँच सकें। मैं दरवाजे पर लटका लटका भी काफी हद तक भीग चुका था और बरसात का पानी ट्रेन की छत से बह कर सीधे मेरे ऊपर ही गिर रहा था, हालाँकि यह मेरे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं था फिर भी मुझे खुशी इस बात की थी कि आज मैं दूसरों के लिए काम आ गया, मेरी वजह से ट्रेन के अन्दर के यात्री बरसात के पानी में भीगने से सुरक्षित थे और मेरा धन्यवाद भी कर रहे थे। 

      अब कुन्नु की घाटियाँ शुरू हो चुकीं थीं, यह देखने में बिल्कुल चम्बल की घाटियों की तरह ही थी और हों भी क्यों न आखिर ट्रेन चम्बल नदी के किनारे के भाग से ही होकर जो गुजर रही थी। तभी रास्ते में कुन्नु नदी का पुल आया, यह चम्बल की सहायक नदी है और इसमें भी मैंने कई सारे घड़ियाल बरसात में मटरगस्ती करते हुए देखे। आज बरसात अपने पूरे जोरों पर थी, ट्रेन की पटरियां अब दिखना बंद हो चुकी थी, दरवाजे से बाहर झाँकने पर ऐसा लग रहा था, जैसे ट्रेन पटरियों पर नहीं किसी नदी नाले में बहकर जा रही है, कुन्नु की घाटियों की रेतीली मिटटी बह बह कर मेरे पैरों के नीचे से जा रही थी, ट्रेन की स्पीड मात्र दस किमी प्रघ थी। ट्रेन सिल्लिपुर होते हुए इकडोरी पहुंची। बीरपुर के बाद अगला मुख्य स्टेशन। यहाँ गरमागरम चाय पीने को मिल गई, और अब बरसात भी लगभग हलकी हो चली थी। 

      ट्रेन टर्रा कलां, सिरोनी रोड होते हुए खोजीपुरा पहुंची। यह इकडोरी के बाद अगला मुख्य स्टेशन है, यहाँ ट्रेन काफी देर खड़ी रही, मैंने और दीपक ने जब तक दो दो चाय और पी लीं, मेरे कपड़े पूरी तरह से भीग चुके थे और मैं सर्दी से बुरी तरह काँप रहा था, खोजीपुरा की चाय ने मुझे कुछ हद तक आराम पहुँचाया। यहाँ श्योंपुर से सबलगढ़ जाने वाली ट्रेन का क्रॉस हुआ और इसके बाद यह ट्रेन रवाना हो चली ।

     खोजीपुरा के बाद अगला स्टेशन दुर्गापुरी था। यह रेल लाइन का बहुत ही शानदार और छोटा स्टेशन है, स्टेशन पर एक बहुत बड़ा दुर्गा माता का मंदिर बना हुआ है और पास में ही एक छोटा सा सुनहरा और पूर्ण प्राक्रतिक गाँव भी है जिसका नाम है दुर्गापुरी। ट्रेन की सवारियां ट्रेन से उतरकर सीधे मंदिर की ओर भागी और दर्शन करके वापस अपने स्थान पर आकर बैठ गईं। ट्रेन भी यहाँ दर्शन हेतु करीब पांच से सात मिनट तक खड़ी रही। यहाँ से मैं और दीपक ट्रेन की छत पर आ गए और छत पर ही मैंने अपने कपडे भी चेंज कर लिए।

     दुर्गापुरी से आगे अगला स्टेशन आया गिरधरपुर। यहाँ रेलवे लाइन के किनारे सब्जी मंडी लगी हुई थी, मतलब शाम हो चली थी और गाँव के लोग इसवक्त रेलवे स्टेशन पर आकर सब्जी की खरीदारी करते हैं। दीपक को यह जगह काफी  पसंद आई। इसके बाद दंतारा कलां स्टेशन आया, यहां मैं ट्रेन की छत से नीचे उतर आया और टॉयलेट से निर्वृत होकर जैसे ही ट्रेन की छत पर चढने लगा ट्रेन स्टेशन से रवाना हो चली। मैं बीच में ही लटका रह गया । आज पहली बार मैंने कपलिंग पर खड़े होकर यात्रा की और कपलिंग पर हो खड़े खड़े मैं श्योंपुर पहुँच गया जो इस रेल लाइन का आखिरी स्टेशन था । 

रामपहाड़ी  रेलवे स्टेशन 

बिजयपुर रोड रेलवे स्टेशन 

कुन्नू घाटी में रेल यात्रा 

कुन्नू घाटियां 

कुन्नू घाटी में एक रेल यात्रा 

भारतीय रेल का एक  सफ़र 

कैमारा कलां रेलवे स्टेशन पर दीपक उपाध्याय 

कैमारा कलां रेलवे स्टेशन पर सुधीर उपाध्याय 



कैमारा कलां रेलवे स्टेशन 


कैमारा कलां रेलवे स्टेशन 

कुन्नू घाटी में एक बाँध 

कुन्नूघाटी में एक ग्राम 

मौसम का प्रकोप 

कुन्नू घाटी में एक रेल यात्रा 

कुन्नू घाटी की एक रेल यात्रा 

बारिश के पानी में डूबा हुआ एक सड़क का पुल 

बीरपुर स्टेशन पर 

दीपक उपाध्याय 

जिनके सर हो इश्क की छाँव पाँव के नीचे जन्नत होगी 


इतवारी रेलवे स्टेशन पर 

एक ईमारत 

खोजीपुरा रेलवे स्टेशन 

दुर्गापुरी रेलवे स्टेशन 

दुर्गामाता का मंदिर 

दुर्गापुरी रेलवे स्टेशन 

कुन्नु वैली रेलवे का एक सिग्नल 


गिरधरपुर रेलवे स्टेशन 

गिरधरपुर स्टेशन पर लगी सब्जीमंडी 

गिरधरपुर रेलवे स्टेशन 

कुन्नू घाटी में एक रेल यात्रा 

रास्ते में एक नहर 

श्योंपुर रेलवे यार्ड 

श्योपुर कलां रेलवे स्टेशन 

   
कुन्नु घाटी की अन्य यात्रायें
🙏



3 comments:

  1. ऐसा लग ही नही रहा है यह मध्य प्रदेश है

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  2. बहुत ही शानदार

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  3. कन्नू घाटी कहा है? क्या विशेषता है?

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