Thursday, March 27, 2025

MAHE - A BEUTIFULL CITY OF WEST PUDUCHERRY

UPADHYAY TRIPS PRESENT'

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 8

 माहे - पश्चिमी पुडुचेरी का एक सुन्दर नगर 


 यात्रा दिनाँक :- 29 जून 2023 

     सोलहवीं शताब्दी में फ्रांसीसियों ने भारत के पूर्वी तट पर अपनी बस्तियां और औद्योगिक इकाइयां स्थापित की। उन्होंने पांडिचेरी नाम का एक नया नगर बसाया। प्राचीन काल में पांडिचेरी का नाम वेदपुरी था, जहाँ के बारे में जनश्रुति है कि यहाँ अगस्त ऋषि का आश्रम था। पूर्वी तट के बाद भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मालाबार के कुछ क्षेत्र को भी फ्रांसीसियों ने अपने व्यापार के लिए चुना और यहाँ अपनी बस्तियां स्थापित की। यही स्थान आज माहि कहलाता है जो एक ओर से समुद्र, और बाकी ओर से केरल राज्य के जिलों से घिरा हुआ है। इस जिले का नाम यहाँ बहने वाली माहि नदी के नाम पर रखा गया है। 

दोपहर के आसपास हम एरनाड एक्सप्रेस से माहे रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहाँ घूमने के लिए हमारे पास अभी शाम तक का समय था क्योंकि यहाँ से आगे की यात्रा के लिए हमारा रिजर्वेशन परशुराम एक्सप्रेस में था जो यहाँ शाम को छः बजे के बाद आएगी। 

माहि मालाबार के तट पर केंद्रशासित राज्य पुडुचेरी का यह एक छोटा सा नगर है जिसका क्षेत्रफल कुल 9 किमी का है। माहे रेलवे स्टेशन एक छोटा रेलवे स्टेशन है, हमें यहाँ अपना बैग जमा करने के लिए क्लॉक रूम की सुविधा नहीं मिली। हम जैसे ही स्टेशन से बाहर निकले, तो हमें ऑटो वालो ने घेर लिया और वह मलयालम भाषा में पता नहीं कहाँ जाने की कह रहे थे। 

हमें माहे में कहाँ घूमना था, यहाँ क्या देखना था, इसके बारे में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं था, बस इतना पता था कि यहाँ समुद्र है और अवश्य ही यहाँ बीच भी होगा। इसके अलावा हमारे यहाँ आने का मुख्य कारण था, कि मैं पुडुचेरी के इस छोटे से नगर की यात्रा करके इसे अपनी यात्रा सूची में शामिल करना चाहता था, क्योंकि इसके बाद पुडुचेरी के बाकी तीन नगर और शेष बचेंगे जो भारत के पूर्वी तट यानी कि बंगाल की खाड़ी के किनारे थे। एक आंध्र प्रदेश में और बाकि तमिलनाडू राज्य की सीमा के आसपास। 

Saturday, March 22, 2025

NIL TO MAHE : MANSOON RAILWAY TRIP 2023

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 7 

 निलंबूर रोड से माही - केरला में एक रेल यात्रा 


सन 1840 में, अंग्रेजों ने  लकड़ी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए नीलांबुर में सागौन का बागान बनाया। 1923 में, साउथ इंडियन रेलवे कंपनी, जो मद्रास-शोरानूर-मैंगलोर लाइन का संचालन करती थी, को मद्रास प्रेसीडेंसी द्वारा नीलांबुर से शोरानूर तक रेलमार्ग बनाने का अनुबंध दिया गया था ताकि इन जंगलों से मैदानी इलाकों तक और  बंदरगाहों  के लिए लकड़ी का आसान परिवहन सुनिश्चित किया जा सके। 

कंपनी ने तीन चरणों में इस रेलमार्ग का निर्माण पूर्ण किया। शोरानूर से अंगदिप्पुरम रेल खंड 3 फरवरी 1927 को, अंगदिप्पुरम से वानियम्बलम 3 अगस्त 1927 को खोला गया और शोरानूर से नीलांबुर तक का पूरा खंड 26 अक्टूबर 1927 को खोला गया। 1941 में इस लाइन का अस्तित्व समाप्त हो गया। देश की स्वतंत्रता पश्चात, जनता के दबाव के बाद, भारतीय रेलवे ने रेलवे लाइन का पुनर्निर्माण इसके मूल संरेखण के अनुसार किया। शोरनूर-अंगदिपुरम लाइन 1953 में फिर से खोली गई और अंगदिपुरम-नीलांबुर 1954 में। यह कुल 66 किमी का रेल खंड है। 

नीलांबुर रोड केरला का एकमात्र टर्मिनल रेलवे स्टेशन है।  

Saturday, March 15, 2025

TVC TO NIL : KERLA RAIL TRIP 2023

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 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 6

तिरुवनंतपुरम से निलंबूर रोड - केरल में रेल यात्रा 


श्री अनंत पद्यनाभ स्वामी मंदिर के दर्शन करने के पश्चात, हम पैदल ही मंदिर से रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हो गए जोकि यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था। रास्ते में बस स्टैंड के समीप एक फलमंडी भी दिखाई दी जहाँ से सोहन भाई ने कुछ फल और आम खरीदे। स्टेशन पहुंचकर हमने क्लॉकरूम से अपने अपने बैग वापस लिए। अब यहाँ से आगे की यात्रा सोहन भाई और मुझे अलग अलग करनी थी।

यहाँ से अब हमारी घर की ओर वापसी की यात्रा शुरू होनी थी, जबकि सोहन भाई अब यहाँ से आगे अपनी तमिलनाडू यात्रा पर प्रस्थान करने वाले थे। हमें यहाँ से वापसी की राह पर निलंबूर रोड स्टेशन जाना था जो केरल के मालाबार प्रान्त के समीप मन्नार पर्वतमाला की तलहटी में स्थित एक छोटा सा नगर है। हमारा रिजर्वेशन कोचुवेली से था और कोचुवेली यहाँ से आगे तीसरा स्टेशन है। 

तिरुवनंतपुरम से कोच्चुवेली जाने वाली डीएमयू ट्रेन का अब समय हो चला था। हमने बड़े भारी मन से सोहन भाई और उनके परिवार से विदा ली। रास्ते के लिए कुछ आम सोहन भाई की माँ ने मुझे भी दे दिए। घर से इतनी दूर आकर अपने मित्र और उनके परिवार से अलग होते समय मेरा दिल भर आया और आँखों में आंसू भी आ गए। सोहन भाई से बिछड़ने के बाद अब एक अजीब सा डर भी मेरे मन में घर कर गया। 

Saturday, March 8, 2025

SRI ANANT PADAMNABH SWAMY TEMPLE : TIRUVANANTPURAM 2023

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 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 5 

 श्री अनंत पद्यनाभस्वामी मंदिर - तिरुवनंतपुरम 

28 जून 2023 

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम का नाम यहाँ स्थित श्री अनंत पद्नाभस्वामी मंदिर के नाम से लिया गया है। तिरुवनंतपुरम में तिरु अर्थात श्री विष्णु, अनंत अर्थात शेषनाग और पुरम अर्थात नगरी, श्री विष्णु और शेष नाग जी का धाम। मान्यता है कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम भगवान श्री विष्णु की मूर्ति यहीं पाई गई थी। अतः शेष शैया पर लेटे हुए भगवान विष्णु की इस विशाल मूर्ति को प्राचीन काल में उसी स्थान पर स्थापित किया जहाँ आज वर्तमान में है। 

श्री अनंत पद्नाभ स्वामी का मंदिर केरल और द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप है। यहाँ का गोपुरम द्रविड़ शैली में निर्मित है और मुख्य मंदिर केरल शैली का एक अनुपम उदाहरण है। मंदिर के अंदर अष्टधातु के स्तम्भ हैं जिनपर सुन्दर कारीगरी देखने को मिलती है। 

हजारों जलते हुए दीपों से मंदिर की रौशनी बनी रहती है और मंदिर के गर्भगृह में शेष शैय्या पर लेटे हुए भगवान श्री विष्णु के दिव्य दर्शन होते हैं। मंदिर में सिर्फ हिन्दू  लोगों का प्रवेश ही मान्य है इसके अलावा यहाँ पुरुष और महिलाओं के लिए सिर्फ धोती पहनकर ही दर्शन करने की परंपरा है। 

मंदिर का निर्माण तो प्राचीन काल से है किन्तु समय समय पर इस मंदिर की देख रेख होने के वजह से आज यह केरल राज्य का मुख्य तीर्थ स्थान है। सत्रहवीं शताब्दी में त्रावणकोर के महाराज श्री मार्तण्ड वर्मा ने इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया था। वर्तमान में भी त्रावणकोर राज परिवार के लोग ही इस मंदिर की देख रेख करते हैं।  

इस मंदिर की महत्ता यहीं समाप्त नहीं होती, वर्तमान में कुछ साल पहले इस मंदिर के तहखानों से लाखों करोड़ों रूपये का खजाना मिला है। माना जाता है कि मंदिर के नीचे सात तहखाने हैं जिनमें से एक तहखाना खुलना बाकी है क्योंकि उसपर भारतीय सर्वोच्च न्यायलय ने रोक लगा दी है। 

SHANGUMUGHAM BEACH : TIRUVANANTPURAM 2023

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 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 4

शंखुमुखम बीच - तिरुवनंतपुरम का एक सुन्दर समुद्री किनारा 


28 जून 2023 

तिरुवनंतपुरम रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में नहाधोकर हम तैयार गए, यहाँ हमने कोई होटल नहीं लिया क्योंकि आज शाम को हमें अपनी अपनी मंजिलों पर रवाना होना था। सोहन भाई  यहाँ के बाद, अपने परिवार सहित कन्याकुमारी जाएंगे और मैं कल्पना के साथ निलंबूर रोड रेल यात्रा पर। इसलिए तिरुवनंतपुरम रेलवे स्टेशन के क्लॉक रूम में हमने अपने अपने बैग जमा करा दिए। 

आज हमें यहाँ के प्रसिद्द अनंत पद्यनाभ स्वामी मंदिर के दर्शन करने थे। इसलिए हम मंदिर की दिशा की तरफ बढ़ चले, जो स्टेशन से थोड़ी ही दूरी पर था। स्टेशन के बाहर निकलते ही एक शानदार सा मॉल दिखाई दिया जिसके सामने खड़े होकर हमने कुछ फोटो लिए और एक बस द्वारा हम सेंट्रल बस स्टैंड पहुंचे जो मंदिर के नजदीक ही है। बस स्टैंड पहुंचकर हमें ज्ञात हुआ कि इस समय तो मंदिर बंद हो चुका है अतः हमने यहाँ से समुद्री बीच जाने का निर्णय लिया। 

Monday, March 3, 2025

MANGLORE TO TRIVENDRAM : MALABAR RAIL TRIP 2023

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 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 3

मैंगलोर से तिरुवनंतपुरम - केरला रेल यात्रा 



28 JUN 2023

     केरल, भारत देश का एक छोटा और सुन्दर प्रदेश है। भारत के अन्य प्रांतों की अपेक्षा यहाँ के लोग अत्यंत बुद्धिमान, पढ़े लिखे और उद्यमी होते हैं। यहाँ की साक्षरता का स्तर हमेशा से ही उच्च रहा है। सम्पूर्ण केरल प्रदेश में नदियां, नारियल और खजूर के वृक्ष, इलायची एवं अन्य मसालों की खेती के साथ साथ पर्वतीय क्षेत्रों में चाय के बागान भी देखने को मिलते हैं। ओणम यहाँ का प्रमुख त्यौहार है एवं मलयालम यहाँ की प्रमुख भाषा है।  

1 नवंबर 1956 को त्रावणकोर, कोचीन और मालाबार के सम्पूर्ण भूभाग को मिलाकर केरल राज्य का गठन किया गया था। इससे पूर्व केरल राज्य में केवल त्रावणकोर और कोचीन के भूभाग को शामिल किया गया था, मालाबार के तटीय क्षेत्र को इसमें बाद में शामिल किया गया था क्योंकि मालाबार उस समय मद्रास प्रोविन्स का एक भाग था और 1956 में एक एक्ट के तहत यह केरला का एक भाग बन गया। प्राचीन समय में यहाँ चेरों का शासन था। 

रात्रि में मंगलौर पहुँचने के बाद हमारी कोंकण की रेल यात्रा समाप्त हो गई। ट्रेन मध्य रात्रि के आसपास मंगलौर पहुंची थी और मंगलौर से चलकर, कर्नाटक की सीमा से निकलकर अब यह अपने अंतिम प्रदेश केरला में चल रही थी। चूँकि यह रात्रि का समय था इसलिए हमारी यह यात्रा नींद के समय पूरी हुई। अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो देखा ट्रैन एर्नाकुलम से भी आगे आ चुकी है और जल्द ही यह केरला के कायकुलम रेलवे स्टेशन पहुंची।  

नारियल के वृक्षों से आच्छादित इस प्रदेश को प्रकृति ने अपने अनुपम उपहारों से सुसज्जित किया है। केले और कटहल के वृक्ष भी यहाँ बहुतायत मात्रा में देखने को मिलते हैं। एक स्टेशन आया  करूनागपल्ली। 

Sunday, March 2, 2025

ROHA TO MANGLURU : KONKAN RAIL TRIP 2023

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 कोंकण V मालाबार की मानसूनी यात्रा पर - भाग 2

कोंकण रेलवे की एक यात्रा 


27 जून 2023 

    भारत के सुंदर प्राकृतिक क्षेत्रों में कोंकण क्षेत्र का प्रमुख स्थान है। इस क्षेत्र के अंतर्गत महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक कुछ भाग शामिल हैं। कोंकण में एक तरफ अथाह समुद्र है तो वहीँ दूसरी ओर पश्चिमी घाटों के ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं, इन पहाड़ों से निकलने वाली नदियाँ और झरने, इसकी प्राकृतिक सुंदरता को एक अविस्मरणीय अनोखा रूप देते हैं। 

    मुख्यतः कोंकण क्षेत्र के वनों में अनेक किस्मों के पेड़ पौधे देखने को मिलते हैं जिनसे अनेकों प्रकार की दुर्लभ जड़ीबूटियां भी प्राप्त होती हैं। मानसून के समय में कोंकण क्षेत्र की सुंदरता अपने उच्चतम शिखर पर होती है जिसे एकबार देखने वाला, जीवनपर्यन्त उसे भुला नहीं पाता। 

   प्राचीन समय में कोंकण के घने वनों और पहाड़ों के मध्य आवागमन बहुत ही दुर्लभ था, किन्तु वर्तमान में यहाँ सड़कों के साथ साथ रेल मार्ग भी सुचारु है। यह रेलमार्ग समुद्र और पश्चिमी घाटों के पर्वतों के मध्य से होकर गुजरता है। जिसपर अनेकों सुरंगें और छोटे बड़े पुल दिखाई देते हैं। 

   इस रेलमार्ग का सञ्चालन भारतीय रेलवे की एक शाखा 'कोंकण रेलवे' करती है जो भारत के 19 रेलवे जोनों में से एक है। कोंकण रेलमार्ग की कुल लम्बाई 756 किमी है और यह महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक तीन राज्यों को आपस में जोड़ता है। यह महाराष्ट्र के रोहा से शुरू होकर कर्नाटक के ठोकूर स्टेशन पर समाप्त होता है।