Saturday, April 22, 2023

BRIHDEESHWAR TEMPLE : GANGAIKOND CHOLAPURAM

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर…. भाग - 5 

प्राचीन चोल राजधानी - गंगईकोन्ड चोलापुरम 


2 JAN 2023

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सम्राट राजेंद्र प्रथम ( 1014  - 1044 ई. )

महान चोल सम्राट राजराज प्रथम की तरह उनका पुत्र राजेंद्र प्रथम भी एक योग्य उत्तराधिकारी हुआ जिसने ना सिर्फ अपने पिता के द्वारा निर्मित चोल साम्राज्य के वैभव को बनाये रखा बल्कि उसकी सीमाओं का दूर दूर तक विस्तार भी किया। वह एक योग्य पिता का योग्य पुत्र था। राजराज प्रथम उनकी प्रतिभा और सैन्य पराक्रम को देखते हुए अपने जीवनकाल में ही उसे चोल साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 

राजेंद्र प्रथम ने अपने जीवन काल में अनेकों उपाधियाँ धारण कीं, जिनमें सबसे अधिक श्रेय उसे गंगईकोंड की उपाधि से मिला जिसका अर्थ है गंगा को जीतने वाला। यह उपाधि उसने बंगाल को जीतने के बाद धारण की। दरअसल अपने नजदीकी राज्यों को जीतने के बाद उसने अपना रुख उत्तर भारत की ओर किया और इसे गंगाघाटी अभियान का नाम दिया। 

इस अभियान का लक्ष्य गंगा नदी का जल लाना था। किन्तु इस अभियान से पूर्व उसने अपनी सेना के सैन्य परीक्षण के उद्देश्य से कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग जीतने के बाद उसने बंगाल पर चढ़ाई शुरू कर दी। इस समय बंगाल का तत्कालीन शासक महिपाल प्रथम था जो चोलसेना से बुरी तरह पराजित हुआ और अब चोलों की धाक उत्तर भारत के बंगाल तक जम गई।

 गंगाघाटी अभियान के विजयोपरांत राजेंद्र प्रथम ने गंगईकोंड की उपाधि धारण की और साथ उसने तंजौर से दूर कावेरी के उसपार एक नई राजधानी का निर्माण किया जिसका नाम उसने गंगईकोंड चोलापुरम रखा।  

Sunday, April 2, 2023

BRIHDESHWAR TEMPLE - THANJAVOUR

तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर, भाग - 4 

 बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मंदिर 

2 JAN 2023

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वैदिक धर्म के विपरीत बौद्ध और जैन धर्म की भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु भारत के नजदीकी देशों में भी प्रसरता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार प्रसार किया और उसके पुत्र व पुत्री ने श्री लंका में बौद्ध धर्म की पराकाष्ठा बढ़ाई। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में हर्षवर्धन ने भी बौद्ध धर्म को सबसे अधिक महत्त्व दिया, इसकारण भारत अब विभिन्न धर्मों का देश बन चुका था।

 किन्तु दक्षिण भारत की बात अलग थी, यहाँ के राजवंश और शासकों ने शुरू से ही केवल वैदिक धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया था। वह वैदिक धर्म के अनुयायी थे और पूर्ण रूप से अपने रीतिरिवाजों और अपनी संस्कृति के साथ अपने धार्मिक अनुष्ठानों को पूर्ण किया करते थे। उनके द्वारा निर्मित अभिलेखों से इस बात की पुष्टि होती है। 

चोल वंश का सबसे प्रतापी सम्राट राज राज प्रथम था जिसका मूल नाम अरिमोलीवर्मन था। उसने अपने साहस और कुशल रणनीति से चोल राज्य को साम्राज्य में बदल दिया था। अपने राज्यभिषेक के सुअवसर पर उसने राजराज की उपाधि धारण की थी। इसके अलावा और भी अनेकों उपाधि थी जो उसने धारण की किन्तु सबसे अधिक प्रसिद्धि उसे राजराज की उपाधि से ही मिली। 

इसी उपाधि के चलते उसने दक्षिण भारत के तंजौर नगर में देश के सबसे बड़े मंदिर का निर्माण कराया जो भगवान शिव को समर्पित है। उसने इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर मंदिर रखा जो कालांतर में बड़ा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। सत्रहवीं शताब्दी में मराठा सरदारों ने इसे बृहदेश्वर मंदिर नाम दिया। जिसका अर्थ होता है सबसे बड़ा मंदिर। 

Saturday, April 1, 2023

CHOLA EMPIRE


 चोल साम्राज्य और उसका अस्तित्व और संगम युग 

चेन्नई में रानी कण्णगी की प्रतिमा 

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प्राचीन काल से ही अखंड भारत भूमि पर अनेकों साम्राज्य स्थापित हुए और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़कर सदा के लिए विलीन हो गए। इन अलग अलग साम्राज्यों ने भारत भूमि को अलग अलग द्वीपों और देशों से जोड़कर एक अखंड भारत का निर्माण किया, भारत भूमि की संस्कृति को विश्व के दूसरे भागों में पहुँचाया और साथ ही भारत के वैदिक धर्म का चहुँओर प्रचार प्रसार किया। इन्हीं महत्वकांक्षी साम्राज्यों में से एक दक्षिण भारत का चोल साम्राज्य था, जिसके शासकों ने ना केवल भारत भूमि अपितु विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के अनेकों देशों को अपने साम्राज्य में मिलाया और वहां अपने देश की संस्कृति और धर्म का प्रसार भी किया।