Saturday, February 1, 2014

UJJAIN 2013

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S



     उज्जैन दर्शन ( अवंतिकापुरी )

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       सुबह पांच बजे ही मैं और माँ तैयार होकर उज्जैन दर्शन के लिए निकल पड़े। अपना सामान हमने वेटिंगरूम में ही छोड़ दिया था। सबसे पहले हमें महाकाल दर्शन करने थे, आज दिन भी सोमवार था। यहाँ महाकालेश्वर के अलावा और भी काफी दर्शनीय स्थल हैं। महाकाल के दर्शन के बाद हमने एक ऑटो किराए पर लिया और ऑटो वाले ने हमें दो तीन घंटे में पूरा उज्जैन घुमा दिया। आइये अब मैं आपको उज्जैन के दर्शन कराता हूँ ।  




   महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग   

भारतवर्ष की सप्तपुरियों में से एक अत्यंत ही मोक्षदायिनी और पवित्र अवंतिकापुरी है जिसे अब उज्जैनी के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल से ही उज्जैन अथवा अवन्ति का भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि वेद और पुराणों में भी विशेष महत्त्व रहा है। क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित यह नगरी प्राचीनकाल से ही ऋषि और मुनियों की तपस्थली रही है। लगभग चौथी शताब्दी में यहाँ गुप्तकाल के महान शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसे अपनी राजधानी बनाया और यहीं से सम्पूर्ण भारतवर्ष पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। 

प्राचीनकाल में यहाँ एक ब्राह्मण परिवार रहता था जो भगवान् शिव की उपासना में निरंतर लगे रहते थे और प्रतिदिन एक पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की पूजा अर्चना किया करते थे। इसी वन में दूषण नामक दैत्य भी रहा करता था जिसने ब्रह्मा जी अजेयता का वरदान प्राप्त किया था। जब उसे ब्राह्मणों की पूजा अर्चना के बारे में पता चला तो वह अपनी दैत्य सेना लेकर अवन्ति के इस वन में आ धमका और ब्राह्मणों को प्रताड़ित करने लगा। दैत्यों द्व्रारा प्रताड़ित किये जाने के बाद भी ब्राह्मणों ने मन ही मन शिव का पूजन करना नहीं छोड़ा। यह देखकर दैत्य अत्यंत क्रोधित हो उठा और ब्राह्मणों को मारने का विचार करने लगा। 

दूषण दैत्य ने जैसे ही ब्राह्मणों को मारने के लिए शस्त्र उठाया, ठीक उसी समय भयंकर गर्जना के साथ उन पार्थिव शिवलिंग के बीच में बहुत विशाल गड्ढ़ा हो गया और उसी गढ्ढे में से भगवन शिव महाकाल के रूप में अत्यंत तेजस्वी ज्योति के साथ प्रकट हुए और दूषण की सेना को भस्म कर दिया। दैत्य की आधी सेना तो महाकाल के इस रूप को देखकर ही भाग खड़ी हुई। भगवान् महाकाल ने दूषण दैत्य का संहार करके अपने भक्तों की रक्षा की और उनकी प्रार्थना स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में इसी वन में वास करने लगे। यही वन कालांतर में अवन्ति या उज्जैनी नामक नगर के रूप में विख्यात हुआ जिसे महाकाल की नगरी भी कहते हैं। 

महाराज चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर उज्जैनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्त सम्राटों से पहले शक भी भगवान महाकाल की पूजा अर्चना किया करते थे।

वर्ष भर अनेकों पर्वों और त्योहारों के अवसरों पर महाकाल जी के विभिन्न शृंगार किये जाते हैं, इन्हें भांग, पंचमेवा, भात, फूल और फलों से सजाकर मुख का आकार दिया जाता है। यहाँ चिता की भस्म से भी इनका श्रृंगार और आरती की जाती है। 

कालांतर में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बहुत ही भव्य और पांचमंजिला बना हुआ है। महाकालेश्वर के प्रांगण में अन्य देवताओं के के भी अनेकों मंदिर स्थापित हैं। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग तीसरा ज्योतिर्लिंग है जिसकी पूजा और अर्चना सच्चे मन से करने वाले की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती। 
कहा भी जाता है :- 
       '' अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल का, काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का '' 

UJJAIN RAILWAY STATION

महाकालेश्वर प्रवेश द्वार 

 मेरी माँ और महाकाल 

सुधीर उपाध्याय और महाकालेश्वर मंदिर 

महाकालेश्वर मंदिर 

जय महाकाल 

महाकाल के समीप एक मंदिर 

भारत में द्वादश ज्योतिर्लिंग 



माँ हरसिद्धि देवी 

उज्जैन के प्राचीन मंदिरों में से एक माँ हरसिद्धि देवी जी का मंदिर है जो 52 शक्तिपीठों में से एक हैं। मान्यता है कि माता सती की कोहनी यहाँ गिरी थी। दैत्य राज चण्ड और मुण्ड का वध करने वाली माता भगवान शिव के आशीर्वाद से हरसिद्धि कहलायीं और उज्जैन नगरी में निवास करने लगीं।  माता हरसिद्धि देवी सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की कुलदेवी भी थीं जिनकी वह नित्य पूजा और अर्चना किया करते थे। किसी भी युद्ध पर जाने से पूर्व महाकाल और माता हरसिद्धि देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना गुप्त सम्राटों का नियम था। यहाँ दीपदान के लिए बहुत ऊँची ऊँची दीपषिखायें बनी हुई हैं। 

माँ और हरसिद्धि देवी 

हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ धाम 

नवग्रह मंदिर 

हरसिद्धि देवी मंदिर 

सुधीर उपाध्याय और हरसिद्धि देवी मंदिर 

हरसिद्धि देवी की कथा 

सम्राट विक्रमादित्य का मंदिर 

उज्जैन नगरी को राजधानी बनाने का श्रेय गुप्तकाल के महान सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को प्राप्त है। उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया था और यज्ञ के उस अश्व को समस्त भारत में भ्रमण कराया था। वह अश्व जहाँ जहाँ से भी गुजरा वहां वहां महाराज विक्रमादित्य का राज स्थापित होता गया। सभी शासकों ने महाराज विक्रमादित्य के अधीन रहकर अपना राज चलाया। इस प्रकार अश्व के उज्जैनी पहुँचने पर सम्राट विक्रमादित्य ने चक्रवर्ती की उपाधि धारण की और वह एक चक्रवर्ती सम्राट कहलाये। आज उन्हीं महान सम्राट की याद में उज्जैन नगर में महाराज विक्रमादित्य का यह मंदिर स्थित है। 

राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य 


सांदीपनि आश्रम 

कंस का वध करने के बाद भगवान कृष्ण ने अपने माता पिता बसुदेव और देवकी को कारागार से मुक्त किया और मथुरा के पूर्व राजा महाराज उग्रसेन जी को पुनः मथुरा का महाराज बनाया। इसके बाद अब उनका शिक्षा ग्रहण करने का समय शुरू हुआ और वह अपने बड़े भाई बलराम जी के साथ मथुरा से कोसों दूर महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे। भगवान का गुरुकुल और महर्षि सांदीपनि जी आश्रम उज्जैन नगरी में ही स्थित है। यहीं भगवान कृष्ण की मित्रता अपने सहपाठी सुदामा जी से हुई जो एक ब्राह्मण की संतान थे। कालांतर में सुदामा जी ने द्वारिका जाकर भगवान् कृष्ण से भेंट की थी। इस आश्रम में यह उनकी पहली भेंट थी। 

भगवान् की विद्यास्थली होने के कारण, उज्जैन ना सिर्फ भगवान् शिव और माता शक्ति का धाम है बल्कि यह भगवान् कृष्ण की लीलास्थलियों से भी जुड़ा हुआ है। भगवान् कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रतीक यह उज्जैनी नगरी अत्यंत ही वंदनीय है। 

सांदीपनि आश्रम 

सांदीपनि आश्रम 

सांदीपनि आश्रम 

सांदीपनि आश्रम 

सांदीपनि आश्रम 

सांदीपनि आश्रम यज्ञ शाला 

सर्वेश्वर महादेव , सांदीपनि आश्रम 

सांदीपनि कुंड 

माँ और सांदीपनि आश्रम 

मंगलनाथ मंदिर 

उज्जैनी नगरी को मंगलग्रह की जननी होने का श्रेय प्राप्त है। समस्त भारतवर्ष में मंगलग्रह का एक मात्र मंदिर उज्जैन नगरी में स्थित है। यहाँ अनेकों भक्त मंगल दोषों को दूर करने के उद्देश्य से यहाँ आते हैं और मंगलग्रह की पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ माता पृथ्वी का भी मंदिर है। 

मंगलग्रह मंदिर 

सुधीर उपाध्याय और मंगलग्रह मंदिर 

माँ और मंगलनाथ मंदिर 

मंगलनाथ मंदिर 

मंगलनाथ मंदिर 

मंगलनाथ मंदिर 

मंगलनाथ मंदिर 

मंगलनाथ मंदिर 

क्षिप्रा तट 

क्षिप्रा नदी 

गढ़ कालिका देवी 

महाराज विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक महाकवि कालिदास जी थे जिनकी आराध्य देवी माता कालिका थीं। उनकी ही कृपा से कालिदास जी को विद्धता प्राप्त हुई थी। माता कालिका का यह मंदिर प्राचीन अवंतिका नगरी के स्थान पर बना हुआ है। प्राचीन काल में गढ़ के अंदर स्थित होने के कारण यह गढ़ कालिका के नाम से प्रसिद्ध हैं। 

माँ और गढ़ कलिका देवी 

जय माँ गढ़ कलिका देवी 

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कालभैरव मंदिर 

भगवान कालभैरव का यह मंदिर अत्यंत ही प्राचीन और चमत्कारिक है। इस मंदिर के बाहर अंकों शराब या मदिरा की दुकानें लगी हुईं थीं। माना जाता है यहाँ स्थित कालभैरव मूर्तिरूप में ही मदिरा का सेवन करते हैं। यह मदिरा एक कटोरी में भरकर पुजारी द्वारा भगवान् कालभैरव की मूर्ति के होटों से लगाई जाती है और देखते ही देखते मूर्ति यह मदिरा ग्रहण कर लेती है और कटोरी खाली हो जाती है। 


कालभैरव मंदिर, उज्जैन 

कालभैरव मंदिर, उज्जैन 

कालभैरव मंदिर, उज्जैन 

कालभैरव मंदिर, उज्जैन 


अन्य मंदिर एवं क्षिप्रा दर्शन 


क्षिप्रा नदी 

क्षिप्रा नदी 

कुंभ स्थल, उज्जैन 

उज्जैन 

उज्जैन 

उज्जैन 

उज्जैन 

क्षिप्रा नदी 

क्षिप्रा नदी 

बड़े गणेश जी का मंदिर 

सर्पों की माता, उज्जैन 

क्षिप्रा नदी 

जय गजराज, उज्जैन 
स्टेशन वापसी

माँ और उज्जैन 

 उज्जैन जंक्शन 

सुधीर उपाध्याय और उज्जैन रेलवे स्टेशन 


उज्जैन रेलवे स्टेशन 

माँ और उज्जैन रेलवे स्टेशन 

उज्जैन रेलवे स्टेशन 

उज्जैन रेलवे स्टेशन 

इसी ट्रेन से हम उज्जैन आये थे 

पिंगलेश्वर रेलवे स्टेशन 


तराना रोड रेलवे स्टेशन 


मक्सी जंक्शन रेलवे स्टेशन 

THANKYOU YOUR VISIT
🙏







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