Thursday, September 19, 2024

JUNAGARH : GUJRAT

गुजरात यात्रा - 2023 

 जूनागढ़ - गुजरात का एक ऐतिहासिक नगर 


श्री गिरनार पर्वत की तलहटी में बसा जूनागढ़ नगर, गुजरात के सौराष्ट्र प्रान्त का एक प्रमुख नगर है। जूनागढ़ ना केवल ऐतिहासिक अपितु पौराणिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।पौराणिक काल में यह रैवत प्रदेश कहलाता था, इसलिए गिरनार पर्वत का दूसरा नाम रैवतक पर्वत भी है। जूनागढ़, श्री नरसी जी की भूमि है जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने उनकी अनेकों बार सहायता की थी। 

ऐतिहासिक दृष्टि से जूनागढ़ अथवा गिरनार मौर्य काल से ही इतिहास में अपना योगदान रखता है, सम्राट अशोक, रुद्रदामन, स्कन्द गुप्त जैसे महान सम्राटों के शिलालेख यहाँ देखने को मिलते हैं। 

चूँकि जूनागढ़ नगर का भ्रमण करना, मेरी इस यात्रा का उद्देश्य नहीं था, मैं तो केवल जूनागढ़ से देलवाड़ा जाने वाली मीटर गेज ट्रेन से यात्रा करना चाहता था परन्तु कल वघई से लौटने के बाद, जूनागढ़ आने वाली सौराष्ट्र ट्रेन के निकल जाने के कारण मेरी आगे की यात्रा का सारा कार्यक्रम रद्द हो गया और फिर भी मैं उस ट्रैन के मिलने की उम्मीद लिए जूनागढ़ आ गया। मीटर गेज की ट्रैन सुबह सात बजे यहाँ से रवाना हो गई जबकि मैं यहाँ सुबह दस बजे पहुंचा था। अब मेरे पास जूनागढ़ नगर को देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। 

हालांकि मेरी यात्रायें, ऐतिहासिक पटल पर भी होती हैं इसलिए जूनागढ़ मेरे लिए ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। यहाँ महाबतखाँ का मकबरा, सुदर्शन झील, अशोक के शिलालेख और गिरनार पर्वत मुख्य रूप से दर्शनीय स्थान हैं। अतः मैंने आज जूनागढ़ नगर की यात्रा करना ही उचित समझा। 

सर्वप्रथम मैंने जूनागढ़ के रेलवे स्टेशन को देखा। वर्तमान में यहाँ दो तरह की रेलवे लाइन देखने को मिलती हैं, पहली ब्रॉड गेज है जो वेरावल से राजकोट जाती है और दूसरी मीटर गेज है जो जूनागढ़ से शुरू होकर देलवाड़ा तक जाती है। देलवाड़ा इस लाइन का आखिरी स्टेशन है जो केंद्रशासित प्रदेश दीव के बहुत ही नजदीक है। 

एक समय में जूनागढ़ पूर्ण रूप से मीटरगेज का मुख्य जंक्शन स्टेशन था, यहाँ से समूचे गुजरात प्रान्त में अलग अलग दिशाओं में ट्रेन जाती थीं। जूनागढ़ रेलवे स्टेशन का भवन आज भी मीटरगेज के समय का ही बना हुआ है। अभी यहाँ एक मीटरगेज की ट्रेन खड़ी हुई थी जो गुजरात के अमरेली नगर से आई थी और वापस अमरेली जाने के लिए ही खड़ी थी। मैं अपनी पिछली गुजरात यात्रा के दौरान वेरावल से ढसा तक मीटरगेज की ट्रेन से यात्रा कर चुका हूँ, उसीसमय मैंने अमरेली नगर भी देखा था। 

रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में नहाधोकर, मैं तैयार हो गया और अपना बैग यहाँ के क्लॉकरूम में जमा करा दिया। आज क्लॉकरूम में बैग जमा करने वाला मैं एक मात्र मुसाफिर था। क्लॉकरूम इंचार्ज ने मुझे चेताया कि मैं शाम के पांच बजे तक अवश्य यहाँ आ जाऊ वर्ना फिर मेरा बैग अगले दिन सुबह मिलेगा। क्योंकि वह केवल शाम के पांच बजे तक ही ड्यूटी पर था, उसके बाद वह क्लॉक रूम का ताला लगाकर अपने घर चला जाता है। 

जूनागढ़ स्टेशन के बाहर निकलते ही एक बहुत बड़ी ईमारत नुमा नगर का गेट दिखाई पड़ता है। वर्तमान में इसे अडानी दरवाजा के नाम से जाना जाता है। मैं गिर भूमि पर था और गिर का जंगल एशियाई शेर अथवा बब्बर शेर के लिए प्रसिद्ध है। अतः यहाँ मैंने शेर की एक प्राचीन प्रतिमा को भी देखा जो हमें गिर क्षेत्र में होने का एहसास कराता है। 

जूनागढ़ रेलवे स्टेशन 

अमरेली पैसेंजर 

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 महाबत खां का मकबरा 

अडानी दरवाजा पार करते ही महाबत खां का मकबरा दिखाई देता है और साथ ही एक सुन्दर जामा मस्जिद भी दिखाई देती है। 

अठारहवीं शताब्दी में जूनागढ़ पर बाबी वंश के नबावों का शासन रहा, इस बीच जूनागढ़ रियासत के छटवें नवाब महाबत खां द्वितीय ने 1851 ई. में स्वतः ही अपने मकबरे का निर्माण शुरू कराया और उनके बाद सं 1892 ई. में नवाब बहादुर खान तृतीय ने इसे पूरा कराया।

 मकबरे की वास्तुकला सचमुच अनूठी है, देखने वाले इसे ऐसे देखते रह जाते हैं जैसे उन्हें लगता है स्वर्ग से कोई महल उतरकर धरती पर आ गिरा हो। 

भारत में ताजमहल के बाद मैंने ऐसी दूसरी ईमारत देखी थी जो सचमुच सुंदरता का अनुपम उदाहरण थी। इस मकबरे का निर्माण यूरो - इंडो - इस्लामिक की मिश्रण शैली से हुआ है। प्याज के आकार के गोल गुम्बद, फ्रेंच खिड़कियां और संगमरमर की अद्भुत नक्काशी इसे और सुन्दर बना देती है। 


महाबत खां का मकबरा 

MAHABAT KHAN TOMB





शेख़ बहाउद्दीन हुसैन का मक़बरा 

महाबत खां के मकबरे के नजदीक ही उनके वज़ीर शेख बहाउद्दीन हुसैन का भी मकबरा है जिसे उन्होंने सन 1892 से 1896 के बीच स्वयं अपने निजी धन से बनवाया था, ताजमहल की आकृति जैसा दिखने वाला यह मकबरा भी बहुत शानदार है, इसके चारों ओर, चार मीनारें हैं जिनमें गोल घुमावदार सीढ़ियां भी बनी हुई हैं। 

मैंने पहली बार इस मकबरे का फोटो फेसबुक पर देखा था, तब मैंने इसे एक आर्टिफिशियल फोटो जानकार इसकी महत्ता को नहीं समझा था किन्तु कुछ समय बाद जब मुझे ज्ञात हुआ कि यह सचमुच का मकबरा है और अपने ही देश के गुजरात राज्य में स्थित है, तभी से मेरे मन में इसे देखने की लालसा जागृत हो गई। आज इसे देखने के बाद मेरी यह लालसा भी पूरी हो गई। 

महाबत खां मकबरा और बहाउद्दीन हुसैन के मकबरे के पास ही, इसी समय और शैली की जामा मस्जिद भी दर्शनीय है।  मैं किसी मस्जिद में प्रवेश नहीं करता अतः इसका फोटो मैंने बाहर से ही ले लिया। 













3. नरसी जी का चौरा 

महाबत खां परिसर देखने के बाद मैं नगर के और अंदर की तरफ बढ़ चला, आगे जाकर एक बोर्ड पर मैंने नरसी भगत की जन्मभूमि की दिशा देखी और मैं इसी की ओर बढ़ चला। जूनागढ़ की पुरानी बस्तियों में से होकर मैं नरसी जी के चौरा पहुंचा। यहाँ चौरा का मतलब उनके आवास से है।

 पंद्रहवीं शताब्दी में जन्में नर्सिंग मेहता भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे, उनकी भक्ति में वे पद गाया करते थे, उनकी कृतियां सर्वोच्च कोटि की हैं, इन्हीं कृतियों के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण ने अनेकों वार नरसी जी की सहायता की थी। जिस व्यक्ति की सहायता के लिए स्वयं परमेश्वर चले आएं, वह व्यक्ति कोई आम व्यक्ति नहीं रहता। 

श्री नरसी जी का जन्म भावनगर के तलाजा ग्राम में हुआ था, बचपन में ही पिता जी का देहांत हो जाने के कारण नरसी जी का जीवन शुरुआत से ही कष्टमय रहा। इनकी पत्नी माणिकबाई और दो संताने पुत्र शामलदास और पुत्री कुंवर बाई थीं। 

भक्त शिरोमणि श्री नरसी जी का गुजरात में वही सम्मान और स्थान है जो उत्तर भारत में श्री कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी का है।  














4. जूनागढ़ किला 

नरसी जी का चौरा देखने के बाद मैं पैदल पैदल ही आगे बढ़ता चला गया, कुछ ही समय बाद मुझे जूनागढ़ नगर के किले का एक द्वार दिखाई दिया।  यह मजेवडी द्वार है, जूनागढ़ नगर में एक विशाल किला है और यह अत्यंत प्राचीन है। 

विभिन्न समयों पर यहाँ भिन्न भिन्न शासकों ने राज किया है, महात्मा बुद्ध से सम्बंधित कुछ अवशेष और गुफाएं भी यहाँ देखने को मिलती हैं। एक ऊँचे स्थान पर स्थित होने के बाद भी  इसकी अंदर तक की सतह में प्राचीन भवन और गुफाएं बनी हुईं हैं।

 मैं इस किले को गिरनार से लौटने के बाद देखना चाहता था, सर्वप्रथम मैं गिरनार पर्वत की तरफ ही जाना चाहता था जो मुझे रेलवे स्टेशन से ही दिखाई देता हुआ आकर्षित कर रहा था। 

मजेवडी द्वार  से आगे बढ़ने के बाद मैं एक ऑटो में गिरनार के लिए सवार हो गया।  यह ऑटो जूनागढ़ किले के नजदीक से ही होता हुआ गिरनार जा रहा था।  किले की मजबूत प्राचीरें इसकी भव्यता का आभास कराती हैं। 






5. भावनाथ महादेव मंदिर 

किले के बाद मैं गिरनार पर्वत के ठीक सामने पहुँच गया था।  ऑटो से उतरकर अब मैं पैदल ही गिरनार पर्वत की तरफ बढ़ चला। सर्वप्रथम सामने एक विशाल शिवलिंग के आकार का एक मंदिर दिखाई दिया। यह भावनाथ महादेव मंदिर है।  

बाहर से देखने पर इस बहुत ही शानदार दिखाई देता है और इसके ठीक पीछे गिरनार पर्वत दिखाई देता है इसप्रकार यह मंदिर गिरनार की तलहटी में स्थित है। 

माना जाता है कि यह मंदिर पौराणिक है और प्राचीन है, इसके बारे में किंवदंती है कि इस मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वतः ही प्रकट हुआ है, एकबार भगवान शिव, माता पार्वती के साथ गिरनार से गुजर रहे थे तभी उनका उनका दिव्य वस्त्र यहाँ स्थित मृंगी कुंड में गिर गया तभी से यह स्थान शिवभक्तों के लिए एक परम धाम बन गया। महाशिवरात्रि के समय यहाँ 5 दिनों तक विशाल  भवनाथ मेले का आयोजन होता है जिसकी शुरुआत हाथियों पर सवार नागा साधुओं द्वारा होती है जो हाथ में शंख बजाते हुए और ध्वजारोहण करते हुए मध्य शिवरात्रि को मंदिर में प्रवेश करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मेले में स्वयं शिवशम्भु भी प्रत्येक वर्ष साधू रूप में इस मेले में भाग लेते हैं।   







6. गिरनार उड़नखटोला ( रोपवे )

भवनाथ मंदिर से आगे गिरनार पर्वत की यात्रा आरम्भ हो जाती है। गिरनार पर्वत बहुत ऊँचा है जिसकी सतह तक पहुँचने के लिए दस हजार सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। जो यात्री सीढ़ियां चढ़ने में अक्षम हैं, या जिनके पास समय की मात्रा कम होती है उनके लिए यहाँ उड़नखटोला ( रोपवे ) की सुविधा भी उपलब्ध है। 

तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा इस उड़नखटोले का शुभारम्भ यहाँ किया गया था। इस उड़नखटोले का एक तरफ़ा किराया सौ रूपये प्रति व्यक्ति है और दोतरफा किराया 600 रूपये प्रति व्यक्ति है। इस रोपवे से गिरनार पर्वत तक की यात्रा करना सचमुच एक अनूठा और रोमांचकारी अनुभव प्रदान करता है। 

मेरा मानना है जिन लोगों को प्रतिदिन सीढ़ियां चढ़ने का अभ्यास नहीं है उन्हें इस उड़नखटोले द्वारा ही गिरनार पर्वत तक जाना चाहिए और आना चाहिए क्योंकि दस हजार सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए अत्यधिक शारीरिक क्षमता का होना आवश्यक है। 




7. ऐतिहासिक सुदर्शन झील 

जूनागढ़ में ही प्रसिद्ध ऐतिहासिक सुदर्शन झील है, जिसका मतलब है सुन्दर पानी की झील।  इसका निर्माण सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के आदेश पर, गिरनार में नियुक्त राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने ई. पूर्व करवाया था। सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान उसके राज्यपाल तुषास्प ने पुनः इसका जीर्णोद्धार करवाया तथा उसी ने ही इस झील में से एक नहर का निर्माण करवाया। 

शक क्षत्रप रुद्रदामन के शासनकाल के दौर में अतिवृष्टि के कारण इस झील का बाँध टूट गया जिसे शकराज रुद्रदामन के आदेश पर पुनः ठीक कराया गया। गुप्तकाल में स्कंदगुप्त के शासनकाल के दौरान  अत्यधिक वर्षा के कारण पुनः इस झील का बाँध टूट गया और उसके प्रांतीय सामंत पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित ने इसे ठीक करवाया। 

वर्तमान में इस ऐतिहासिक झील के दशा, दयनीय है। वर्तमान सरकार ने इस झील का कोई कायाकल्प नहीं किया है, जूनागढ़ आने वाले सैलानी इस झील  ऐतिहासिक महत्त्व को नहीं समझ पाते हैं क्योकि यहाँ इस झील के ऐतिहासिक महत्त्व व प्रमाणिकता का कोई साक्ष्य दिखलाई नहीं देता है। 

 वर्तमान में यह एक साधारण सी दिखने वाली पोखर के समान है जिसकी ओर किसी भी पर्यटक का ध्यान नहीं जाता है। एक विकसित प्रदेश की सरकार को इस झील के ऐतिहासिक महत्त्व को समझना चाहिए और इसे एक सुन्दर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में सहेजना चाहिए जिससे जूनागढ़ आने वाला प्रत्येक सैलानी इसकी ऐतिहासिकता के महत्त्व को समझ सके।  





यह कोई मार्ग नहीं बल्कि सुदर्शन झील के किनारे  प्राचीन बाँध है 


8. श्री राधा दामोदर मंदिर एवं दामोदर कुंड 

गिरनार से लौटने के बाद मुझे रास्ते में एक प्राचीन मंदिर और कुंड दिखाई दिया। जानकारी करने पर ज्ञात हुआ कि यह श्री राधा दामोदर जी का मंदिर है और इसके सामने स्थित कुंड दामोदर कुंड के नाम से जाना जाता है। 



9. अशोक के शिलालेख - जूनागढ़ 

जूनागढ़ का सम्बन्ध मौर्यकाल से ही रहा है।  सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहाँ सुदर्शन झील का निर्माण कराया तो उनके पौत्र सम्राट अशोक ने यहाँ अपने शिलालेख छोड़े। यह शिलालेख, अन्य शिलालेखों की अपेक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहाँ ना केवल सम्राट अशोक के शिलालेख मौजूद हैं बल्कि उनके बाद शक सम्राट रुद्रदामन ने भी संस्कृत भाषा इसी शिलालेख पर अपने शासन काल की घटनाओं का विवरण दिया है साथ सुदर्शन झील के मरम्मत कार्य का विवरण भी लिखवाया है।  उसके बाद गुप्तकाल के दौरान सम्राट स्कन्द गुप्त ने भी यहाँ अपने शिलालेख छोड़े हैं।  इस प्रकार जूनागढ़ से प्राप्त एक ही शिला पर उत्कीर्ण शिलालेख अलग अलग काल के, अलग अलग राजवंशों और सम्राटों के हैं जो देश में अत्यंत कहीं नहीं मिलते। 

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10. जूनागढ़ घंटाघर या रातुभाई अडानी चौक ( क्लॉक टावर )



जूनागढ़ की यात्रा के दौरान मैंने गिरनार पर्वत की यात्रा भी की थी, इस यात्रा का उल्लेख हम अगले भाग में करेंगे। 

तब तक के लिए आप सभी को 'जय श्री राम' . 

धन्यवाद

 🙏