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Friday, May 23, 2025

UJJAIN CITY AND KSHIPRA RIVER

 अवंतिका से मालवा की एक मानसूनी यात्रा - भाग 1 

उज्जैन में रामघाट पर क्षिप्रा स्नान 

यात्रा दिनाँक : - 29 जुलाई 2023 

    मानसून का मौसम यात्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त और बेहद सुहावना मौसम होता है। मानसून के दौरान किसी भी स्थान की सुंदरता अपने पूर्ण चरम पर होती है और यही सुंदरता एक सैलानी के मन को यात्रा के दौरान उत्साह और आनंद से भर देती है। हम इसी मानसून में गत माह कोंकण और मालाबार की यात्रा पर गए थे जहाँ हमने केरला की राजधानी तिरुवनंतपुरम तक की यात्रा पूर्ण की थी, 

इसी यात्रा में वापसी के दौरान हम केरल के मालाबार तट, पुडुचेरी के माहे नगर, कर्नाटक के मुरुदेश्वर, गोवा की राजधानी पणजी और ओल्ड गोवा एवं कोंकण रेलवे की यात्रा पूर्ण करके घर वापस लौटे थे। किन्तु मानसून अभी भी बरक़रार था और यह हमें फिर से उत्साहित कर रहा था एक और नई यात्रा करने के लिए। 

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   मैं पिछले कई वर्षों से मानसून के दौरान प्राचीन राज्य मालवा और इसकी मध्यकालीन राजधानी मांडू की यात्रा करना चाहता था। ऑफिस में बैठे बैठे मैंने इस यात्रा का प्लान तैयार किया और अपने सहकर्मी सोहन भाई को इस यात्रा में अपना सहयात्री चुना। सोहन भाई इस यात्रा के लिए तुरंत तैयार हो गए और हमारा यात्रा प्लान अब कन्फर्म हो गया। 

मैंने इस यात्रा को प्राचीन अवन्ति, अर्थात उज्जैन से शुरू करके इंदौर, महेश्वर और मांडू तक पूरा करने का निर्णंय लिया जिसमें अधिकांश मालवा का भाग शामिल था। वर्तमान में यह मध्य प्रदेश कहलाता है, और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण एवं  अनुपम दृश्यों से भरपूर है। 

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    यूँ तो मध्य प्रदेश बहुत ही शांत और सुन्दर प्रदेश है किन्तु यहाँ आवागमन के लिए साधन पर्याप्त सुलभ नहीं हैं अतः यहाँ घूमने के लिए अपना वाहन ही सर्वोत्तम है। इसलिए हमें एक बाइक की आवश्यकता थी जिससे हम अपनी इस मानसूनी मालवा यात्रा को सुगम और सरल बना सकते थे। मैंने उज्जैन में किराये पर मिलने वाली बाइक के बारे में पता किया, किन्तु कोई भी संतुष्टिजनक उत्तर नहीं मिला ,अन्ततः मैंने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाले अपने परम मित्र रूपक जैन जी से अपनी इस यात्रा को साझा किया और उन्हें अपनी यात्रा परेशानी का कारण बताया। 

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   रूपक जैन जी एक उच्च स्तर के घुमक्क्ड़ हैं, उन्होंने देश के विभिन्न स्थलों और अनेकों दुर्गम स्थानों की यात्रायें की हैं। मेरे ऐतिहासिक यात्रा पटल को वह बहुत अच्छे तरीके से समझते और जानते हैं और उन्हें पता है कि यात्रा दौरान मेरे लिए क्या सही और उचित रहेगा। रूपक जैन जी ने मेरी परेशानी का तुरंत निदान किया और उज्जैन में हमारे लिए एक बाइक की व्यवस्था करा दी। 

जैन साब ने हमारी इस यात्रा की सबसे बड़ी परेशानी को सिद्ध कर दिया था अतः अब हमारी इस यात्रा में कोई बाधा शेष न बची थी। मालवा घूमने के लिए मेरे साथ सहयात्री के रूप में सोहन भाई थे, सुलभ आवागमन के लिए जैन साब ने बाइक उपलब्ध होने का आश्वासन दे ही दिया था और मथुरा से उज्जैन के लिए ट्रेन में हमारी सीट भी कन्फर्म थी अतः अब हमारी यह यात्रा पूर्ण रूप से पक्की हो चुकी थी। 

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    जल्द ही यात्रा की तारीख आ गई और मैं शाम को माँ से आशीर्वाद लेकर अपनी इस मानसूनी मालवा यात्रा के लिए रवाना हो चला। हमारे घर किराये पर रह रहे साहिल ने मुझे अपनी बाइक से रेलवे स्टेशन तक छोड़ दिया और थोड़ी देर बाद सोहन भाई भी,अपने दो मित्रों मानवेन्द्र और नंदू कुंतल के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच गए। सचमुच सोहन भाई बहुत ही भाग्यशाली हैं जिनके पास ऐसे मित्र हैं जो आधी रात को भी अपने मित्र को यात्रा के दौरान रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये और ट्रेन के रवाना होने तक साथ रहे। रात को 11 बजे के आसपास नईदिल्ली - इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस से मैं और सोहन भाई मालवा के लिए रवाना हो चले। 

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   अगली सुबह हम मध्य प्रदेश के नागदा रेलवे स्टेशन पर थे। यहाँ से ट्रेन का इंजन आगे से हटकर पीछे लगता है और ट्रेन पुनः विपरीत दिशा में जाने के लिए तैयार होती है इसलिए यह यहाँ काफी देर ठहरती है। इस बीच ट्रेन के मुसाफिरों को रेलवे स्टेशन पर चाय पीने और नाश्ता करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। 

मैंने और सोहन भाई ने इस समय का भरपूर उपयोग किया और चाय नाश्ता करके आगे की यात्रा के लिए अपने उत्साह को बनाये रखा। शीघ्र ही ट्रेन नागदा से रवाना हो चली। अब यह उज्जैन की तरफ बढ़ रही थी, मध्य प्रदेश की इस ठंडी सुबह में   तरोताजा हवा की महक हमारे मन को प्रफुल्लित कर रही थी। जल्द ही हम उज्जैन रेलवे स्टेशन पहुंचे। 

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   रेलवे स्टेशन के बाहर ही हमें महाकाल मंदिर जाने के लिए एक ई रिक्शा मिल गया जिसने उज्जैन की गलियों में से होकर जल्द ही हमें महाकाल मंदिर के समीप छोड़ दिया। हालांकि आज इस्लामिक पर्व बारावफात था जिसकी तैयारी अनेकों स्थानों पर चल रही थी और हमें कई स्थानों पर रास्ते बंद भी मिले किन्तु ई रिक्शा चालक होशियार था उसने गलियों से होकर हमें महाकाल मंदिर तक पहुंचा दिया था। सावन का महीना चल रहा है, भगवान शिव के अनेकों भक्त अपने आराध्य महाकाल जी के दर्शन हेतु उज्जैन आये हुए थे और उज्जैन की प्रत्येक गली भगवा ध्वजों से सजी हुई दिखाई दे रही थीं। हर तरफ बम बम भोले के जयकारे गूंजते सुनाई पड़ रहे थे। 

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   हमें जैन साब के बताये गए पते पर पहुँचना था जो रामघाट के नजदीक था, इसलिए हम अब पैदल पैदल ही रामघाट की ओर बढ़ चले। मार्ग में एक प्राचीन मंदिर दिखाई दिया जो कालांतर में भी पूजनीय है। यह चौबीस खंभा माता का मंदिर है, अनेकों झंडे माता के इस मंदिर पर लहरा रहे थे और मंदिर का भवन प्राचीन अवंतिका की शोभा को प्रदर्शित कर रहा था। 

इस मंदिर में प्राचीन चौबीस खम्भे लगे हैं इसलिए इसे चौबीस खम्भा मंदिर बोलते हैं। माता के दर्शनों के पश्चात हम शीघ्र ही उस पते पर पहुँच गए जो हमें रूपक जैन जी ने बताया था किन्तु यहाँ जाने से पूर्व हम, इससे थोड़ा सा आगे रामघाट पर पहुंचे जो क्षिप्रा नदी का एक प्रमुख घाट है। 

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   उज्जैन में यह मेरी दूसरी यात्रा थी, इससे पूर्व आज से 10 वर्ष पहले मैं यहाँ अपनी माँ के साथ आया था और तब मैंने माँ के साथ उज्जैन के समस्त दर्शनीय स्थलों को देखा था जिनमें से एक यह रामघाट भी था। तब उस समय क्षिप्रा नदी में इतना जल और साफ़ सफाई यहाँ देखने को नहीं मिली थी जो आज यहाँ दिखाई दे रही थी। आज क्षिप्रा नदी, माँ गंगा के समान और रामघाट, हरिद्वार की हरि की पैड़ी के समान प्रतीत हो रहा था। 

क्योंकि यह मानसून का मौसम है, सावन का महीना चल रहा है अतः यहाँ नदी के जल का प्रवाह भी खूब था और घाट पर भक्तों की भीड़ भी खूब थी। यहाँ अनेकों प्राचीन मंदिर और धर्मशालाएँ थीं, नदी के दूसरी तरफ गुरुद्वारा भी दिखलाई पड़ रहा था, साथ ही यहाँ क्षिप्रा आरती स्थल के साथ साथ नदी के दोनों तरफ पक्के घाट बने हुए थे। 

हमने यहीं एक घाट पर उचित स्थान देखकर क्षिप्रा नदी में स्नान किया और स्नान्न पश्चात दूसरे वस्त्र पहनकर, घाट पर बनी चाय की दुकान पर चाय नाश्ता किया। 

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   स्नान करने के पश्चात हम जैन साब के बताये गए पते पर पहुंचे। रामघाट रोड पर ही हमें यह पता मिल गया था, दरअसल यह पता निवासी, रूपक जैन जी के रिश्तेदार थे और उन्होंने हमारे आने की सुचना इन्हें पहले से ही दे दी थी अतः जब हम यहाँ पहुंचे तो वह हमसे मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने हमारा आतिथ्य सत्कार बहुत अच्छे और प्रभावशाली ढंग से किया। 

हमें भी उनके व्यवहार और आतिथ्य सत्कार को देखकर बहुत प्रसन्नता हुई और अब हमें एक पल के लिए भी यह आभास नहीं हो रहा था कि हम अपने घर से दूर किसी पराये नगर में थे। हमें यहाँ अपने घर में होने जैसा ही अनुभव हो रहा था। 

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   हमने उन्हें अपने आने का कारण बताया और उनसे अपनी आगामी यात्रा के लिए बाइक की मांग की। प्रथमतया उन्होंने हमें बाइक से इतनी लम्बी दूरी की यात्रा ना करने के हिदायत दी किन्तु हमारा यात्रा कार्यक्रम बिना बाइक के अधूरा था इसलिए हमने उनकी हिदायत को नहीं माना और उन्हें आश्वासन दिया कि हम अपनी यात्रा अपने अनुभव  पर बहुत ही सरल और सुगम तरीके से पूर्ण करते हैं। लम्बी दूरी को बाइक से तय करना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है और हम शीघ्र ही बाइक लेकर वापस लौट आएंगे। 

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   उन्होंने हमें बाइक तो दे दी किन्तु मैं उनकी अनबन को भलीभाँति समझता रहा था इसलिए मैंने रूपक जैन जी से इस बारे में फोन पर बात की। जैन साब की तरफ से मुझे संतोषजनक उत्तर मिला, उन्होंने कहा कि आप और हम एक घुमक्कड़ हैं किन्तु वह लोग हमारी तरह नहीं हैं अतः निःसंकोच आप अपनी यात्रा पूर्ण करो। रूपक जैन जी की बात सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई और हम अपनी यात्रा पर बढ़ चले। 

हालांकि सोहन भाई अभी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे, वह इस बाइक से चल अवश्य रहे थे किन्तु अब भी वह यही चाह रहे थे कि हमें कोई बाइक किराये पर ले लेनी चाहिए और इसलिए हम बाइक रेंट वाली दुकान की लोकेशन की तरफ गए जिससे हम बिना संकोच किराये की बाइक से हम कहीं भी घूम सकते थे। जब हम रेंटल बाइक की लोकेशन पर पहुंचे तो यहाँ हमें ऐसी कोई दुकान नहीं दिखी जहाँ हमें बाइक किराये पर मिल जाती। अब अंततः हमने इसी बाइक से अपनी मंजिलों पर पहुँचने का निर्णय लिया। 

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   महाकाल मंदिर में विशेष भीड़ थी अतः महाकाल बाबा को बाहर से ही प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लेकर हम इंदौर की तरफ रवाना हो चले। अब हम अवंतिका से मालवा की तरफ बढ़ रहे थे, उज्जैन नगर पीछे छूट गया था और लगभग एक दो घंटे के अंतराल के पश्चात हम इंदौर नगर के नजदीक पहुंचे।


 यहाँ हमारी बाइक में पहला पंचर हुआ और इसे ठीक कराने के पश्चात हम इंदौर के एक रेस्टोरेंट पर रुके जिसका नाम था रशियन ढ़ाबा। यह नाम से ढ़ाबा अवश्य था किन्तु यहाँ का वातावरण किसी शाही रेस्टोरेंट से कम नहीं था। हमने यहाँ अपना मोबाइल चार्जिंग में लगाया और आज के भोजन का आनंद प्राप्त किया। 

यात्रा क्रमशः .....      


मथुरा रेलवे स्टेशन पर मैं, नंदू कुंतल, बीच में सोहन भाई और मानवेंद्र सिंह 

नागदा पर आगमन 

नागदा पर सुबह का चाय नाश्ता 

मैं और इंटरसिटी एक्सप्रेस 

श्री चौबीस खम्भा माता का प्राचीन मंदिर 




रामघाट पर जाट देवता सोहन सिंह 

रामघाट पर भक्तों की भीड़ 



एक प्राचीन मंदिर 

क्षिप्रा आरती स्थल और मैं 

जाट मुसाफिर सोहन सिंह और रूपक जी द्वारा उपलब्ध बाइक 

रशिया ढ़ाबा पर मैं और सोहन भाई 

इंदौर स्थित रशिया ढ़ाबा और मैं 

अगले भाग में :- पातालपानी झरना और रेलवे स्टेशन 

धन्यवाद 

🙏

Tuesday, February 11, 2025

KALPANA BIRTHDAY : AGRA 2023


 आगरा की एक दिवसीय यात्रा और कल्पना का जन्मदिन 


                             

5 जून 2023 

आज 5 जून है यानी मेरी पत्नी कल्पना का जन्मदिवस। इसलिए आज हमने इस दिन को विशेष बनाने के लिए अपने पूर्व गृहनगर आगरा को चुना। वैसे भी काफी समय बीत चुका था, अपने पूर्व गृहनगर आगरा गए हुए। 

दरअसल मैं बचपन से ही आगरा में रहा हूँ, वहां हम आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के समीप रेलवे कॉलोनी में रहते थे क्योंकि मेरे पिताजी वहां रेलवे में कार्यरत थे। आगरा में रहकर ही मैंने बहुत कुछ सीखा और अपनी शिक्षा पूरी की। युवावस्था में मेरा विवाह मथुरा निवासी कल्पना से हुआ और उसे पत्नी के रूप में पहली बार मैं आगरा ही लेकर आया। इसप्रकार आगरा शहर मेरे और कल्पना के लिए विशेष महत्त्व रखता है। यहाँ आकर हमारी वो समस्त पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। 

हम अपनी बाइक से ही मथुरा से आगरा के निकल पड़े। यह दूरी 50 किमी के लगभग थी जिसे पूरा करने में मात्र एक घंटा काफी है। स्प्लेंडर एक अच्छी बाइक होने के साथ साथ अच्छा माइलेज भी देती है, अतः हमें आगरा पहुँचने में ज्यादा विलम्ब नहीं हुआ। आगरा - मथुरा के बीच रैपुरा नामक स्थान है, यह दोनों नगरों का मध्य केंद्र भी है अतः यहाँ हम थोड़ी देर रुके और गन्ने का जूस पिया क्योंकि यह ग्रीष्म ऋतू है और इस ऋतू में जितना भी शीतल पेय लिया जाए, फायदेमंद ही होता है। 

इस स्थान से एक बाईपास रोड भी गुजरता है जो आगरा शहर को बाईपास करता है। यह दिल्ली - कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग को आगरा - मुंबई राजमार्ग से जोड़ता है। अतः धौलपुर , ग्वालियर की तरफ जाने के लिए यह मार्ग उपयोगी है। इसी मार्ग के पुल के नीचे हम गन्ने का जूस पीकर थोड़ी देर रुके और फिर अपने पुराने नगर की तरफ बढ़ चले। 



मेरे सफर के साथी 

आगरा शहर पहुंचकर सर्वप्रथम हम ओमेक्स मॉल पहुंचे। यह काफी बड़ा और अच्छा मॉल है और साथ ही इसमें एक अच्छा मल्टीप्लेक्स सिनेमा है जिसमें कई सारी फ़िल्में एक ही समय पर चलती हैं। हमें यहाँ द केरला स्टोरी मूवीज की टिकट मिली। यह मूवीज केरल से सम्बंधित थी इसलिए हमें अच्छी भी लगी क्योंकि इसी माह में हमारी अगली यात्रा केरला की ही निर्धारित थी। 

फिल्म में मुख्य भूमिका में अभिनेत्री अदा शर्मा हैं जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से इस फिल्म को और शानदार बना दिया। वैसे मुझे अदा शर्मा की सभी फिल्में बहुत पसंद हैं क्योंकि वह अपने अभिनय से फिल्म के किरदार को बखूबी निभाती हैं। 

मूवीज देखने के बाद हमने थोड़ी देर इस मॉल को घूमकर देखा, अनेकों बड़ी बड़ी दुकानों और शोरूमों से यह मॉल और भी शानदार लग रहा था। मॉल घूमने के बाद हम अपने पुराने आवास आगरा कैंट की तरफ रवाना हो गए। 











आगरा कैंट पहुंचकर सर्वप्रथम हमने अपने उस रेल आवास को देखा जहाँ कभी कल्पना प्रथम बार अपने मातापिता का घर छोड़कर अपने नए घर में आई थी। इस समय इस रेल आवास में कोई अन्य रेल कर्मचारी निवास कर रहे थे। हमें यूँ घर की तरफ देखते हुए उन्होंने हमसे इसका कारण पूछा तो कारण जानने के बाद वह बहुत प्रसन्न हुए और अनजान होते हुए भी उन्होंने हमें अंदर बुलाया। 

काफी सालों बाद आज अपने पुराने घर को देखकर मन में बचपन की यादें और वैवाहिक यादें एक बार फिर से ताजा हो गईं। यह आज भी वैसा ही था जैसा हम इसे छोड़कर गए थे, इस घर की हरेक जगह से मेरी यादें जुडी हुईं थी। मैंने इस घर के नए मालिक का आभार व्यक्त किया और उन्हें धन्यवाद कहकर हम आगरा के शाहगंज बाजार की तरफ बढ़ चले। 

आगरा में शाहगंज एक बड़ा बाजार है जो आगरा कैंट के नजदीक ही है। शाहगंज के समीप कोठी मीना बाजार का बड़ा मैदान है। इस मैदान में हमेशा कुछ ना कुछ नया देखने को मिलता है जैसे कभी यहां सर्कस चलता है या काफी यहाँ हस्त शिल्प बाजार लगता है। 

अभी फ़िलहाल यहाँ डिस्नी लैंड मेला चल रहा था। यह अधिकतर गर्मियों  के दिनों में ही यहाँ लगता है। अभी जून का महीना है इसलिए हमें यह यहाँ देखने को मिला। मैंने इस मेले की दो टिकट लीं और कल्पना को यह मेला दिखाया। 

इस मेले में अनेकों दुकाने और झूले लगे थे, एक दो झूलों पर हम भी झूले और एकबार पुनः बचपन की मस्ती में खो गए। अब शाम करीब हो चली थी और दिन ढलने  की कगार पर था अतः एक दो घंटे यहाँ घूमने  के बाद अब हम अपने वर्तमान नगर मथुरा की ओर प्रस्थान कर गए। 

















डिस्नी लैंड मेला देखने के बाद हम मथुरा की तरफ प्रस्थान कर चुके थे किन्तु अभी हमारी यात्रा समाप्त नहीं हुई थी। आज कल्पना का जन्मदिन था इसलिए मैं इस शाम को भी विशेष बनाना चाहता था अतः हम मथुरा से पहले ही मैकडॉनल्ड के रेस्रोरेन्ट पहुंचे और यहाँ शाम का भोजन किया। कल्पना को आज का दिन बहुत ही अच्छा लगा और वह बहुत खुश थी। मैंने उसके चेहरे पर यही ख़ुशी देखना चाहता था। इस प्रकार हमने आज के दिन को एक यात्रा का रूप दे दिया और कल्पना का बर्थडे भी मन गया। 







धन्यवाद 

🙏


Saturday, January 14, 2023

MAKAR SAKARANTI TRIP 2023


 रिश्तों के सफ़र पर - मकर सक्रांति यात्रा 2023 

नववर्ष की शुरुआत हो चुकी थी, सर्दियाँ भी अपने जोरों पर थीं। तमिलनाडु से लौटे हुए एक सप्ताह गुजर चुका था, अब अपनों से मिलने की ख्वाहिश मन में उठी और एक बाइक यात्रा का प्लान फाइनल किया। प्रत्येक साल पर पहला हिन्दू पर्व  मकर सक्रांति होता है, दान के हिसाब से इस पर्व का अत्यधिक महत्त्व है जिसमें गुड़ और तिल से बनी गज़कखाने और दान देने की परंपरा है, इसलिए मैंने भी 10 - 15 डिब्बे गजक के खरीद लिए और अगले दिन मकर सक्रांति को मैं अपनी बाइक लेकर रिश्तों के सफर पर निकल चला। 

Saturday, March 19, 2022

NARESHWAR TEMPLES : GWALIOR 2022

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

गुर्जर प्रतिहार कालीन - नरेश्वर मंदिर समूह 


     छठवीं शताब्दी के अंत में,सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का पूर्ण पतन प्रारम्भ हो गया। भारतभूमि पर पुनः वैदिक धर्म अपनी अवस्था में लौटने लगा था, नए नए मंदिरों के निर्माण और धार्मिक उत्सवों की वजह से लोग वैदिक धर्म के प्रति जागरूक होने लगे थे। सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ होते ही अखंड भारत अब छोटे छोटे प्रांतों में विभाजित हो गया और इन सभी प्रांतों के शासक आपस में अपने अपने राज्यों की सीमाओं का  विस्तार करने की होड़ में हमेशा युद्धरत रहते थे।

भारतभूमि में इसप्रकार आपसी द्वेष और कलह के चलते अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों की नजरें अब हिंदुस्तान को जीतने का ख्वाब देखने लगी थीं और इसी आशा में वह हिंदुस्तान की सीमा तक भी आ पहुंचे थे किन्तु शायद उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि बेशक भारत अब छोटे छोटे राज्यों में विभाजित हो गया हो, बेशक इन राज्यों के नायक आपसी युद्धों में व्यस्त रहते हों परन्तु इन नायकों की देशप्रेम की भावना इतनी सुदृढ़ थी कि अपने देश की सीमा में विदेशी आक्रांताओं की उपस्थिति सुनकर ही उनका खून खौल उठता था और वह विदेशी आक्रमणकारियों को देश की सीमा से कोसों दूर खदेड़ देते थे। 

इन शासकों का नाम सुनते ही विदेशी आक्रांता भारतभूमि पर अपनी विजय का स्वप्न देखना छोड़ देते थे। भारत भूमि के यह महान वीर शासक राजपूत कहलाते थे और भारत का यह काल राजपूत काल के नाम से जाना जाता था। राजपूत काल के दौरान ही सनातन धर्म का चहुंओर विकास होने लगा क्योंकि राजपूत शासक वैदिक धर्म को ही राष्ट्र धर्म का दर्जा देते थे और वैदिक संस्कृति का पालन करते थे। राजपूत शासक अनेक राजवंशों में बंटे थे जिनमें गुर्जर प्रतिहार शासकों का योगदान सर्वोपरि है। 

Saturday, February 5, 2022

SHRI KAILADEVI TEMPLE : KARAULI 2022


 श्री राजराजेश्वरी कैलादेवी मंदिर - करौली 


यात्रा दिनाँक :- 05 फरवरी 2022 

     भारतवर्ष में अनेकों हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर हैं जिनमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग, भगवान विष्णु के चार धाम और आदि शक्ति माँ भवानी के 51 शक्तिपीठ विशेष हैं। इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है माँ कैलादेवी का भवन, जो राजस्थान राज्य के करौली जिले से लगभग 25 किमी दूर अरावली की घाटियों के बीच स्थित है। माँ कैलादेवी के मन्दिर का प्रांगण बहुत ही भव्य और रमणीय है। जो यहाँ एकबार आ जाता है उसका फिर लौटने का मन नहीं करता किन्तु सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के चलते भक्तों का यहाँ आने और जाने का सिलसिला निरंतर चलता ही रहता है। 

Monday, May 3, 2021

HAMPI : KARNATAKA 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

विजय नगर साम्राज्य और होसपेट की एक रात 

7 JAN 2021

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

कुकनूर से कोप्पल होते हुए रात साढ़े नौ बजे तक, बस द्वारा मैं होस्पेट पहुँच गया था। बस ने मुझे होसपेट के मुख्य बस स्टैंड पर उतारा था जो कि बहुत बड़ा बस स्टैंड था किन्तु रात्रि व्यतीत करने हेतु मुझे कोई स्थान तो चाहिए था आखिरकार आज मैं सुबह से यात्रा पर था और आज एक ही दिन में अन्निगेरी, गदग, डम्बल, लकुण्डी और इत्तगि की यात्रा करके थक भी चुका था। हालांकि मैंने हम्पी में एक होटल में अपना बिस्तर बुक कर रखा था किन्तु इस वक़्त हम्पी जाने के लिए कोई बस या साधन अभी यहाँ से उपलब्ध नहीं था। मैंने सीधे अपना रुख रेलवे स्टेशन की ओर किया और वहीँ रात बिताने के इरादे से मैं होसपेट रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चला। 

होसपेट बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन एक या दो किमी के आसपास है, इसलिए मैं पैदल ही स्टेशन की ओर जा रहा था। रास्ते में एक अच्छा खाने का रेस्टोरेंट मुझे दिखाई दिया जहाँ तंदूरी रोटियां भी सिक रहीं थीं। आज काफी दिनों बाद मुझे उत्तर भारतीय भोजन की महक आई थी, मुझे भूख भी जोरों से लगी थी, इसलिए मैंने बिना देर किये दाल फ्राई और तंदूरी रोटी का आर्डर दिया। खाना महँगा जरूर था किन्तु बहुत ही स्वादिष्ट था।

 खाना खाने के बाद मैं रेलवे स्टेशन की ओर रवाना हो चला। होसपेट में एक से एक होटल हैं परन्तु मेरे बजट के हिसाब से कोई नहीं था क्योंकि पिछले आठ दिवसीय कर्नाटक यात्रा में अब मेरा बजट भी समाप्त होने की कगार पर था और जो शेष था उससे मुझे अभी घर भी पहुंचना था इसलिए मैंने होसपेट में कोई कमरा लेना उचित नहीं समझा। 

Saturday, February 6, 2021

Trip With Jain sab

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से हाथरस बाइक यात्रा 

रसखान जी की समाधी पर 

NOV 2020,

सहयात्री - रूपक जैन साब 

     आज नवम्बर के महीने की आखिरी तारीख थी मतलब 30 नवम्बर और कल के बाद इस साल का आखिरी माह और शेष रह जायेगा। आज की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी आज मेरे भोपाल वाले मित्र रूपक जैन अपनी आगरा की चम्बल सफारी की यात्रा पूरी कर मथुरा लौट रहे थे। एक लम्बे समय के बाद आज हमारी मुलाकात होनी थी बस सुबह से यही सोचकर कि जैन साब के साथ मुझे कहाँ कहाँ जाना है, अपने सारे काम समाप्त किये। ऑफिस से भी मैंने आज की छुट्टी ले ली थी क्योंकि आज का सारा दिन मुझे जैन साब के साथ घूमने में जो गुजारना था। आज हम कहाँ जाने वाले थे इसका कोई निश्चित नहीं था हालाँकि जैन साब ने मुझसे फोन पर हाथरस घूमने की इच्छा व्यक्त की थी, मगर हाथरस में ऐसा क्या था जिसे देखने हम वहाँ जाएंगे। 

     अभी रूपक जैन जी आगरा में हैं कुमार के पास और उसके साथ वह मेहताब बाग़ देखने गए हैं जो ताजमहल के विपरीत दिशा में है। नदी के उसपार से ताजमहल को देखने के लिए अनेकों लोग मेहताब बाग़ जाते हैं, अनेकों फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ होती रहती है। मैंने भी जैन साब को मथुरा में दिखाने के लिए गोकुल को चिन्हित किया जो ब्रज में मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। गोकुल जाने के इरादे को दिल में लेकर मैं मथुरा के टाउनशिप चौराहे पर पहुँचा और अपने एक मित्र की दुकान पर बैठकर मैं जैन साब का आने का इंतज़ार करने लगा। जैनसाब अभी आगरा से चले नहीं थे, कुमार अपनी स्कूटी पर उन्हें ISBT तक लेकर आया और बस में बैठाकर उसने मुझे फोन कर दिया। इसके बाद मैंने अपनी लोकेशन जैन साब को भेज दी और उन्होंने अपनी लोकेशन मुझे भेज दी। इसप्रकार अब मुझे अपने मोबाइल में ही पता चल रहा था कि वह कहाँ तक पहुँच चुके हैं। 

Saturday, April 18, 2020

AIRAKHERA 2020

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 विष्णु भाई का सगाई समारोह और ग्राम आयराखेड़ा की एक यात्रा 



26 जनवरी 2020 मतलब गणतंत्र दिवस पर अवकाश का दिन।

     पिछले वर्ष जब मैं माँ के साथ केदारनाथ गया था तब माँ के अलावा उनके गाँव के रहने विष्णु भाई और अंकित मेरे सहयात्री थे और साथ ही बाँदा के समीप बबेरू के रहने वाले मेरे मित्र गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी भी मेरी इस यात्रा में मेरे सहयात्री रहे थे। 

    आज ग्राम आयराखेड़ा में विष्णु भाई की सगाई का प्रोग्राम था जिसमें शामिल होने के लिए त्रिपाठी बाँदा से सुबह ही उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से मथुरा आ गए थे। सुबह पांच बजे मैं अपनी बाइक से उन्हें अपने घर ले आया और सुबह दस बजे तक आराम करने के बाद हम आयराखेड़ा की तरफ रवाना हो गए।