Monday, February 22, 2021

BIDAR

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 4, 01 JAN 2021

     बीदर - क्राउन ऑफ़ कर्नाटक 


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बीदर का सल्तनतकालीन इतिहास 

   दिल्ली सल्तनतकाल के दौरान तुगलक वंश के संस्थापक ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र जूना खां, मुहम्मद बिन तुगलकशाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। अपने शासनकाल के दौरान उसने साम्राज्यवादी नीति को अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। दिल्ली सल्तनत की सीमायें भारत के उत्तर और पश्चिम में अब कांधार और करजाल, पूर्व में बंगाल और दक्षिण भारत के राज्यों को छूने लगीं थीं। मुहम्मद बिन तुगलक निसंदेह एक दूर की सोच रखने वाला सुल्तान था, उसने अपने साम्राज्य का काफी हद तक विस्तार किया किन्तु उसने अपने शासनकाल के दौरान जो योजनाएँ लागू कीं, वह विफल रहीं। इन्हीं में से एक योजना थी राजधानी परिवर्तन की। उसने अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरि स्थानांतरित की जो पूर्ण रूप से असफल रही और इस योजना के विफल हो जाने के बाद उसका राज्य छिन्न भिन्न हो गया। 

   हालांकि उसने देवगिरि को राजधानी के तौर पर इसलिए चुना ताकि देवगिरि से साम्राज्य की चारों दिशाओं में नियंत्रण स्थापित किया जा सके। उसका मुख्य उद्देश्य उत्तर भारत के साथ साथ दक्षिण भारत पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित रखना था किन्तु दिल्ली की जनता, देवगिरि जैसे सुदूर प्रदेश में नहीं ढल सकी और मजबूरन सुल्तान को फिर से राजधानी दिल्ली स्थानांतरित करनी पड़ी। देवगिरि से दिल्ली राजधानी परिवर्तन होने के बाद दक्षिण भारत के सामंतों ने विद्रोह कर दिया और स्वयं को तुगलक वंश का उत्तराधिकारी मानकर अपने नवीन वंशों की स्थापना की और स्वयं को सम्राट या सुल्तान घोषित किया। इन्हीं में से एक सामंत था हसन, जिसने दक्षिण भारत में बहमनी वंश की नींव रखी और देवगिरि के सिंहासन पर आसीन हुआ। 

   देवगिरि पर कुछ समय शासन करने के बाद उसने अपनी नई राजधानी गुलबर्गा को बनाया। 1422 ई. में अहमदशाह ने बहमनी सल्तनत की राजधानी गुलबर्गा से हटाकर बीदर में स्थानांतरित की और बीदर से ही राज्य का सञ्चालन आरम्भ किया। 1526 ई. में एक अमीर अलीबरीद ने आखिरी अयोग्य बहमनी सुल्तान को अपदस्थ कर स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और बीदर में फिर एक नए वंश बरीदशाही की स्थापना कर सुल्तान बन गया। बरीदशाही वंश के बाद बीदर पर मराठाओं का साम्राज्य स्थापित हो गया और बाद में चलकर यहाँ ब्रिटिश हुकूमत का राज रहा। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में लोकतंत्र स्थापित हुआ और बीदर की रियासत अब भारत का अभिन्न हिस्सा बन गई। बीदर महाराष्ट्र और तेलंगाना राज्यों का सीमावर्ती शहर है और कर्णाटक के सबसे शीर्ष पर स्थित होने के कारण यह कर्नाटक का मुकुट या ताज भी कहलाता है।  

Saturday, February 13, 2021

CHARMINAR

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग-3, 31 DEC 2020

नववर्ष पर हैदराबाद की एक शाम 


यात्रा दिनाँक  - 31 DEC 2020 

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अपने सही समय पर तेलांगना स्पेशल ने मुझे हैदराबाद पहुँचा दिया और स्टेशन बाहर निकलकर सबसे पहले मैंने उस वेटिंग रूम को देखा जहाँ पिछली बार मैं और माँ पूरी रात यहाँ रुके थे और सुबह होने पर तेलांगना एक्सप्रेस से ही अपने मथुरा को रवाना हुए थे। शाम हो चुकी थी और हैदराबाद का स्टेशन इस शाम के अँधेरे में अलग अलग रोशनी के रंगों से जगमगा रहा था। स्टेशन के ऐसे दृश्य को देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने स्टेशन के बाहर ड्यूटी कर रहे एक हैदराबाद पुलिस के सिपाही से अपना फोटो लेने के लिए कहा, उसने बिना हिचक मेरे दो तीन फोटो दिए, जब उसे लगा कि फोटो में अँधेरा ज्यादा आ रहा है, तो उसने मुझे थोड़ा हटकर खड़े होने को कहा और फिर से फोटो खींच दिया, वो बात अलग है कि वो फोटो खींचते समय बीच बीच में अपने सीनियर की ओर भी देख रहा था जो हमसे थोड़ी दूर अलग कुर्सी पर बैठा था और अपने काम में मशगूल था। 

फोटो खिंचवाकर मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो पहलीबार हैदराबाद की मेट्रो और स्टेशन पर नजर पहुँची। पिछली बार जब मैं और माँ यहाँ आये थे तब इसके निर्माण का कार्य चल रहा था। मुझे चारमीनार जाना था इसलिए मैंने मेट्रो की बजाय सिटी बस से जाना उचित समझा और रोड क्रॉस करके दूसरी साइड पहुँचा, यहाँ जितनी भी बसें आ रही थी सभी पर उसके स्थान  नाम तेलगु भाषा में लिखा था जो मेरी समझ से बहुत दूर थी इसलिए यहाँ बस का इंतज़ार कर रहे एक यात्री से मैंने चारमीनार जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उसने बताया कि चारमीनार के लिए 9c नंबर की बस जाती है। करीब आधा घंटे इंतज़ार करने के बाद 9c नंबर की बस आई और मैं चारमीनार के लिए रवाना हो गया। बस में से हैदराबाद शहर की इस शाम का नजारा देखने लायक था, यहाँ की सड़कें और बाज़ार सचमुच एहसास कराते हैं कि हम देश के एक बड़े शहर में हैं। 

Tuesday, February 9, 2021

TELANGANA SPECIAL : MTJ TO HYD

 UPADHYAY TRIPS PRESENT

कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग-2

मथुरा से हैदराबाद - तेलांगना स्पेशल से एक यात्रा 



यात्रा दिनाँक  - 30 DEC 2020 से 31 DEC 2020 

यात्रा की शुरुआत के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

   अभी हाल ही में रेलवे ने तेलांगना एक्सप्रेस का स्पेशल ट्रेन के रूप में संचालन किया है, जिसके कोचों को भी रेलवे ने नया रूप दिया है। इन सबके अलावा इस ट्रेन का समय भी रेलवे ने बदल दिया है जिसकारण मैंने जब से इस ट्रेन में अपना आरक्षण करवाया तब से प्रतिदिन रेलवे की तरफ से मुझे बदले हुए समय को लेकर एक एलर्ट सन्देश प्राप्त होता रहता था और यह तब तक आता रहा जब तक मेरी यात्रा का दिन नहीं आ गया।

   तेलांगना एक्सप्रेस नई दिल्ली से हैदराबाद के बीच चलती है और यह एक सुपरफ़ास्ट ट्रेन है जो अपना सफर 25 घंटे में पूरा कर लेती है। इस ट्रेन का नाम पहले आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस था जिसे जन भाषा में  ए.पी. एक्सप्रेस ज्यादा कहा जाता था। आंध्रप्रदेश के विभाजन के बाद जब 2014 में तेलांगना नामक नया राज्य बना तो इस ट्रेन का नाम बदलकर तेलांगना एक्सप्रेस कर दिया गया। 

   तेलांगना एक्सप्रेस का समय अब मथुरा जंक्शन पर शाम को साढ़े पाँच बजे का हो गया है, मैं ऑफिस से 3 बजे ही छुट्टी लेकर घर आ गया और अपनी यात्रा की समुचित तैयारी को एक बार फिर से भली भाँति जाँचा। कल्पना ने मेरी यात्रा के लिए गर्मागर्म पूड़ियाँ और आलू की सूखी सब्जी बनाकर यात्रा भोजन का प्रबंध कर दिया। माँ ने मुझे एकबार फिर से अपने बैग को भली भाँति देखने की सलाह दी कि कहीं मैं कुछ भूल तो नहीं रहा हूँ। 

Monday, February 8, 2021

KARNATAKA TRIP 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

उत्तरी कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा 

1 जनवरी 2021 से 7 जनवरी 2021 


कर्नाटक का यात्रा प्लान 

कोरोनाकाल के बाद जब यह साल 2020 अपने अंतिम कगार पर थी तब मैंने उत्तर भारत में बढ़ती हुई सर्दी को देखते हुए, दक्षिण भारत की यात्रा के बारे में सोचा। दक्षिण भारत के तमिलनाडू और आंध्रप्रदेश की यात्रा करने के बाद अब मेरा मन दक्षिण भारत के सुन्दर राज्य कर्नाटक की और अग्रसर हुआ। भारतीय इतिहास के हिसाब से कर्नाटक की धरती बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

यहाँ की धरती पर अनेक राजवंश हुए जिन्होंने अपने अपने धर्मों के अनुसार यहाँ अनेकों मंदिरों, मठों, गुफाओं और चैत्य विहारों का निर्माण करवाया। इसके अलावा कर्नाटक की धरती पर पुलकेशिन और कृष्णदेव राय जैसे हिन्दू सम्राटों ने हिन्दू धर्म की उन्नति का प्रचार किया। टीपू सुल्तान जैसे वीर योद्धाओं ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से बचाने के लिए वीरगति प्राप्त की। 

 इन सबके अलावा पौराणिक दृष्टि से भी कर्नाटक की भूमि पवित्र है जहाँ भगवान श्रीराम के चरण पड़े और उनकी हनुमान जी से प्रथम भेंट भी यहीं हुई। किंष्किन्धा नगरी, ऋषिमूक पर्वत, पम्पा सरोवर, मातंग ऋषि का आश्रम आदि स्थान कर्नाटक की भूमि पर ही स्थित हैं। इसलिए कर्नाटक पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य है। 

चूँकि मेरी कर्नाटक की यह यात्रा ऐतिहासिक स्थलों और यहाँ के प्रमुख राजवंशों की राजधानियों के भ्रमण पर आधारित थी, इसलिए मैंने अपनी यात्रा का कार्यक्रम अपने हिसाब से तैयार किया और अनेकों मित्रों को अपने साथ इस यात्रा पर चलने को आमंत्रित किया, परन्तु यात्रा बहुत दूर और कई दिनों की होने के कारण किसी मित्र ने इस यात्रा पर चलने के लिए सहमति नहीं जताई, इसलिए मुझे यह यात्रा अकेले ही पूरी करनी पड़ी और यकीन मानिये मैंने अकेले होने के बाबजूद भी इस यात्रा को बहुत ही शानदार तरीके से पूर्ण किया और अपने जीवन की यादगार यात्रा बनाया। 

Saturday, February 6, 2021

Trip With Jain sab

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से हाथरस बाइक यात्रा 

रसखान जी की समाधी पर 

NOV 2020,

सहयात्री - रूपक जैन साब 

     आज नवम्बर के महीने की आखिरी तारीख थी मतलब 30 नवम्बर और कल के बाद इस साल का आखिरी माह और शेष रह जायेगा। आज की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी आज मेरे भोपाल वाले मित्र रूपक जैन अपनी आगरा की चम्बल सफारी की यात्रा पूरी कर मथुरा लौट रहे थे। एक लम्बे समय के बाद आज हमारी मुलाकात होनी थी बस सुबह से यही सोचकर कि जैन साब के साथ मुझे कहाँ कहाँ जाना है, अपने सारे काम समाप्त किये। ऑफिस से भी मैंने आज की छुट्टी ले ली थी क्योंकि आज का सारा दिन मुझे जैन साब के साथ घूमने में जो गुजारना था। आज हम कहाँ जाने वाले थे इसका कोई निश्चित नहीं था हालाँकि जैन साब ने मुझसे फोन पर हाथरस घूमने की इच्छा व्यक्त की थी, मगर हाथरस में ऐसा क्या था जिसे देखने हम वहाँ जाएंगे। 

     अभी रूपक जैन जी आगरा में हैं कुमार के पास और उसके साथ वह मेहताब बाग़ देखने गए हैं जो ताजमहल के विपरीत दिशा में है। नदी के उसपार से ताजमहल को देखने के लिए अनेकों लोग मेहताब बाग़ जाते हैं, अनेकों फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ होती रहती है। मैंने भी जैन साब को मथुरा में दिखाने के लिए गोकुल को चिन्हित किया जो ब्रज में मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। गोकुल जाने के इरादे को दिल में लेकर मैं मथुरा के टाउनशिप चौराहे पर पहुँचा और अपने एक मित्र की दुकान पर बैठकर मैं जैन साब का आने का इंतज़ार करने लगा। जैनसाब अभी आगरा से चले नहीं थे, कुमार अपनी स्कूटी पर उन्हें ISBT तक लेकर आया और बस में बैठाकर उसने मुझे फोन कर दिया। इसके बाद मैंने अपनी लोकेशन जैन साब को भेज दी और उन्होंने अपनी लोकेशन मुझे भेज दी। इसप्रकार अब मुझे अपने मोबाइल में ही पता चल रहा था कि वह कहाँ तक पहुँच चुके हैं। 

Tuesday, January 26, 2021

RANEH WATER FALL

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 खजुराहो के आसपास के दर्शनीय स्थल 



विश्व धरोहर के रूप खजुराहो पूर्ण रूप से पर्यटन स्थल तो है ही, इसके आसपास के दर्शनीय स्थल भी पर्यटकों को खजुराहो में रुकने के लिए बाध्य करने में कम नहीं हैं। खजुराहो के निकट अनेकों ऐसे स्थल हैं जो यहाँ आने वाले सैलानियों को हर तरह के रोमांच से अवगत कराते हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है -

  • रानेह जल प्रपात 
  • केन घड़ियाल अभ्यारण्य 
  • पांडव जलप्रपात 
  • पन्ना टाइगर रिज़र्व 
  • कूटनी बाँध 
  • छतरपुर के राजमहल 
  • मस्तानी का महल 

खजुराहो के पूर्वी समूह के मंदिर देखने के बाद मैं और कुमार खजुराहो से लगभग 20 किमी दूर, रानेह जलप्रपात को देखने के लिए निकल पड़े। मुख्य रास्ते को छोड़कर आज हम इस किराये की प्लेज़र को लेकर बुंदेलखंड के दूरगामी ग्रामों में से होकर गुजर रहे थे। रास्ते के मनोहारी दृश्यों को देखने में एक अलग ही आनंद आ रहा था। कुछ समय बाद जब गाँव का संकीर्ण रास्ता समाप्त हो गया और रास्ते की जगह खेतों की ओर जाने वाली छोटी छोटी पगडंडियों ने ले ली तो कुमार के मन में शंका उत्पन्न होने लगी। उसने मुझसे कहा कि हम रास्ता भटक चुके हैं और मुझे नहीं लगता कि आगे कोई रास्ता रानेह जलप्रपात की ओर जायेगा, परन्तु मुझे अपने गूगल मैप पर पूरा भरोसा था जो अब भी हमें आगे बढ़ने का इशारा देते हुए रास्ता दिखाता चल रहा था। 

काफी देर बाद जब हम एक गाँव को पार करके पगडंडियों को भी खो बैठे तो अब मेरे मन में भी शंका उत्पन्न होने लगी क्योंकि रास्ता और पगडंडियां लगभग समाप्त चुकी थीं और अब हमारी गाडी खेतों में होकर गुजर रही थी जो कि कई बार चलते चलते स्लिप होकर गिर भी जाती थी। रास्ता तो अब कहीं हमें दिखाई नहीं दे रहा था, रास्ता पूछने के लिए दूर दूर तक कोई मानव भी हमें दिखाई नहीं दे रहा था परन्तु गूगल अब भी हमें रास्ता दिखाते हुए आगे बढ़ने पर विवश करने पर लगा हुआ था और गूगल की बात मानने के सिवा हमारे पास कोई रास्ता भी नहीं था। हम आगे बढ़ते रहे और आखिरकार हम खेतों में से होकर मुख्य रास्ते तक पहुँच ही गए। 

Saturday, January 23, 2021

KHAJURAHO

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खजुराहो के पर्यटन स्थल  - अनमोल भारतीय विरासत 



कोरोनाकाल और घुमक्कड़ी 

    इस वर्ष जब पूरे देश में लॉक डाउन लगा, तो इतिहास में पहली बार भारतीय रेलों के पहिये थम गए। सभी शहर और गाँव, बाजार एवं यातायात तक बंद हो चुका था। लोग कोरोना जैसे वायरस से बचने के लिए अपने ही घरों में कैद हो चुके थे। देश की आर्थिक व्यवस्था पूर्ण रूप से डूबने लगी थी। परन्तु इस सबका पर्यावरण पर बेहद गहरा प्रभाव पड़ा था, नदियों का जल एक दम स्वच्छ होने लगा था। अब शुद्ध वायु का प्रभाव साफ़ दिखलाई पड़ता था। इस बीच हम जैसे घुमक्कड़ लोगों की यात्रायें भी स्थगित हो गईं क्योंकि घर से बाहर निकलना, सरकार के आदेशों का उल्लंघन करना था।  

   सभी यातायात के साधन बंद थे, तीर्थ स्थान अनिश्चितकालीन बंद कर दिए गए थे। सभी ऐतिहासिक स्मारक भी पूर्ण रूप से बंद हो चुके थे और इसके अलावा गैर राज्य में जाना तो दूर अपने नजदीकी शहर में भी जाने पर सख्त प्रतिबन्ध था। इसलिए 24 मार्च 2020 से जून 2020 तक हम सभी अपने अपने घरों में बंद रहे। जून के बाद से सरकार ने देश में अनलॉक जारी कर दिया और भारत की अर्थव्यवस्था धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी। यह हमारे समय का कोरोना काल था जो काफी तबाही मचाकर भी अभी तक शांत नहीं हुआ है।   

रेल संचालन और यात्रा प्लान 

    अभी हाल ही में भारतीय रेलों का पुनः संचालन धीरे धीरे शुरू होने लगा था, दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लिए ट्रेनें स्पेशल नंबर के साथ शुरू हो चुकी थीं। इस बार रेल के सामान्य श्रेणी के कोच में भी आरक्षण की सुविधा उपलब्ध थी और ग़ैर आरक्षित टिकट अभी भी प्रतिबंधित थी। रेलवे ने कुरुक्षेत्र से मथुरा आने वाली ट्रेन को खजुराहो तक बढ़ा दिया था जो कि मध्य प्रदेश का एक मुख्य ऐतिहासिक स्थल है और यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में दर्ज है। 

    मैं पहले भी कई बार यहाँ जाने के रिजर्वेशन करवा चुका था किन्तु कभी जाने का मौका नहीं मिला पाया। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जो सरकारी अवकाश रहता है उसी अवकाश को मैंने खजुराहो जाने के लिए चुना और अपने दोस्त कुमार भाटिया जो कि आगरा में ही रेलवे में जॉब करता है, अपने साथ जाने को सहयात्री के रूप में चुना। रेलवे से मिलने वाली सुविधा के अंतर्गत उसने अपना और मेरा रिजर्वेशन दोनों तरफ से इसी ट्रेन में करवा लिया और यात्रा की तारीख आने पर हम खजुराहो की तरफ रवाना हो चले। 


Sunday, May 24, 2020

CHANDERI PART - 3

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

चंदेरी - एक ऐतिहासिक शहर,  भाग - 3



यात्रा को शुरू से ज़ारी करने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।

    अब हम चंदेरी शहर से बाहर आ चुके थे। चंदेरी से कटी घाटी जाने वाले मार्ग पर एक बार फिर हम एक जैन मंदिर पहुंचे। यह जैन अतिशय क्षेत्र श्री खंदारगिरी कहलाता है जो पहाड़ की तलहटी में बसा, हरे भरे पेड़ पौधों के साथ एक शांत एवं स्वच्छ वातावरण से परिपूर्ण स्थान है। यहाँ जैन धर्म के चौबीसबें और आखिरी प्रवर्तक भगवान महावीर स्वामी का दिव्य मंदिर है और साथ ही पहाड़ की तलहटी में ही चट्टान काटकर उकेरी गई उनकी बहुत बड़ी मूर्ति दर्शनीय है। इसके अलावा यहाँ पहाड़ की तलहटी में और भी ऐसे अन्य मंदिर स्थापित हैं। जैन धर्म का एक स्तम्भ भी यहाँ स्थित है जिसपर महावीर स्वामी से जुडी उनकी जीवन चक्र की घटनाएं चित्रों के माध्यम से उल्लेखित हैं।

Saturday, April 25, 2020

CHANDERI PART 2


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 2




पिछले भाग से जारी। ......

    उसकी नजर पहाड़ चढ़ती एक चींटी पर पड़ी जो बार बार चढ़ने का प्रयास करती और असफल होकर गिर पड़ती, चींटी ने यह प्रयास तब तक किया जब तक वह पहाड़ पर नहीं चढ़ गई। छोटी सी चींटी की इस कार्यविधि और उसके आत्मविश्वास को देखकर बाबर के मन में आई निराशा दूर हो गई और उसे चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग भी सूझ गया। उसने एक ही रात में अपने मार्ग में बाधा बनी पहाड़ी को काट कर रास्ता बनाने का आदेश अपनी सेना को दिया और उसकी सेना ने एक ही रात में पहाड़ी को काटकर चंदेरी में प्रवेश करने का मार्ग बना लिया।

   अगली सुबह बाबर ने अपनी सेना सहित चंदेरी के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। मेदिनीराय के नेतृत्व में राजपूतों ने अपार वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु वे परास्त हुए, चंदेरी के मुख्य दरवाजे पर भयंकर मारकाट हुई, असंख्य निर्दोषों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया जिसके बाद इस दरवाजे जो खुनी दरवाजा कहा जाने लगा।

Thursday, April 23, 2020

CHANDERI PART - 1


चंदेरी - एक ऐतिहासिक नगर भाग - 1




   मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के नजदीक स्थित चंदेरी एक पौराणिक और ऐतिहासिक नगर है। माना जाता है इसे महाभारतकालीन शासक शिशुपाल ने बसाया था जो भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे और उनकी बुआ के पुत्र थे। यह चंदेरी कालान्तर में बूढ़ी चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध है जिसके अवशेष वर्तमान अथवा नई चंदेरी कुछ दूरी पर देखने को मिलते हैं। चारों तरफ से छोटे बड़े पहाड़ों से घिरी चंदेरी शुरू से ही भारतीय स्थान में अपनी अमिट छाप बनाये हुए है और अपनी ऐतिहासिक धरोहरों से सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।


Saturday, April 18, 2020

AIRAKHERA 2020

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 विष्णु भाई का सगाई समारोह और ग्राम आयराखेड़ा की एक यात्रा 



26 जनवरी 2020 मतलब गणतंत्र दिवस पर अवकाश का दिन।

     पिछले वर्ष जब मैं माँ के साथ केदारनाथ गया था तब माँ के अलावा उनके गाँव के रहने विष्णु भाई और अंकित मेरे सहयात्री थे और साथ ही बाँदा के समीप बबेरू के रहने वाले मेरे मित्र गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी भी मेरी इस यात्रा में मेरे सहयात्री रहे थे। 

    आज ग्राम आयराखेड़ा में विष्णु भाई की सगाई का प्रोग्राम था जिसमें शामिल होने के लिए त्रिपाठी बाँदा से सुबह ही उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से मथुरा आ गए थे। सुबह पांच बजे मैं अपनी बाइक से उन्हें अपने घर ले आया और सुबह दस बजे तक आराम करने के बाद हम आयराखेड़ा की तरफ रवाना हो गए। 

Friday, April 17, 2020

SAI NAGAR SHIRDI



साईं नगर शिरडी 



6 जनवरी 2020                                                               इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

    हम करीब साढ़े नौ बजे शिरडी पहुँच गए थे, एक प्रसाद वाले की दुकान पर अपने बैग रखकर हम साईं बाबा के दर्शन करने लाइन में लग गए और दर्शन पर्ची लेकर साईं बाबा के दर्शन हेतु अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे। आज काफी सालों बाद मेरी और साधना की मुलाकात बाबा से होने वाली थी। बहुत दिन हो गए थे बाबा से बिना मिले इसलिए अब जब हमारी यह यात्रा अंतिम चरण में थी तो दिल ने सोचा क्यों ना बाबा के दर्शन कर चलें। आखिर कार हमारी यह यात्रा धार्मिक यात्रा भी तो थी। 

    महाराष्ट्र प्रान्त के गोदावरी नदी के समीप शिरडी नामक ग्राम स्थित है जहाँ 18 वीं सदी में साईंबाबा का प्रार्दुभाव एक वृक्ष के नीचे हुआ था। साईंबाबा के बारे में प्रचलित है कि इनका जन्म और इनकी बाल्यकाल अवस्था अज्ञात है। इनका सबसे प्रथम दर्शन शिरडी वासियों को ही हुआ था, जब उन्होंने एक वृक्ष के नीचे एक दिव्यतेज युवा को ध्यानमग्न अवस्था में देखा। 

Tuesday, April 14, 2020

AURANGABAD TO SHIRDI


औरंगाबाद से शिरडी रेल यात्रा 




5 - 6 जनवरी 2020                                                             इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

    श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद ऑटो वाले भाई ने हमें शाम को औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। अब हमारी यात्रा की अगली मंजिल शिरडी की तरफ थी जिसके लिए हमारा रिजर्वेशन औरंगाबाद पर रात को ढाई बजे आने वाली पैसेंजर ट्रेन में था जो सुबह 6 बजे के करीब हमें शिरडी के नजदीकी रेलवे स्टेशन कोपरगाँव उतार देगी। 

    अभी ढ़ाई बजने में बहुत वक़्त था, इसलिए स्टेशन के क्लॉक रूम पर रखे अपने बैगों को लेकर हम वेटिंग रूम पहुंचे। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम बहुत ही शानदार और साफ़ सुथरा था, अधिकतर यात्री यहाँ बेंचों पर बैठकर अपनी अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने यहाँ एक कोने में अपनी दरी और चटाई बिछाकर अपना बिस्तर लगाया और थोड़ी देर के लिए हम यहाँ आराम करने लेट गए। 

Monday, April 13, 2020

SHRI GHRISHNESHWAR JYOTIRLING


श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग 2020




5 जनवरी 2020                                                        इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

     एलोरा से थोड़ा सा आगे ही श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। मैं पहले भी एकबार माँ के साथ यहाँ आ चुका हूँ और आज दूसरी बार अपनी पत्नी को लेकर आया हूँ। ऑटो से उतरते ही मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर पूजा सामग्री की दुकानें लाइन से बनी हुई हैं। हमने सबसे पहली दुकान से ही पूजा सामग्री ले ली और जब थोड़ा सा आगे बढे तो पता चला सबसे शुरुआती दुकानदार अंदर वाले दुकानदारों की अपेक्षा काफी महँगा लगाकर सामान बेचते हैं इनमें अधिकतर सब महिलाएं ही थीं। मैंने मंदिर से लौटकर उस दुकानदार महिला को अपनी भाषा में अच्छी खासी सुनाई जिससे हमारे बाद आने वाले अन्य यात्रियों से वो इसप्रकार बेईमानी से सामान महँगा लगाकर न बेचे, और फिर भी बेचे तो वह उसका पाप ही होगा। 

Wednesday, April 8, 2020

KAILASH TEMPLE : ELLORA



कैलाश मंदिर : एलोरा गुफाएँ 




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5 जनवरी 2020 

    एलोरा गुफाओं का निर्माण राष्टकूट शासक कृष्ण प्रथम के शासनकाल में अजंता की गुफाओं को बनाने वाले कारीगरों के वंशजों ने किया था। एलोरा गुफाओं में के केवल बौद्ध ही नहीं अपितु हिन्दू और जैन धर्म से सम्बंधित अनेकों गुफाएं स्थित हैं। यह सभी गुफाएं अजंता की तरह ही चट्टानों को काटकर बनाई गईं हैं। 8वीं शताब्दी के मध्य एलोरा राष्ट्रकूट शासकों की राजधानी का मुख्य केंद्र रहा है जहाँ राष्ट्रकूट शासकों ने अनेकों गुफाओं का निर्माण कराया और हिन्दू होने के कारण उन्होंने यहाँ पहाड़ को काटकर एक ऐसे मंदिर का निर्माण कराया जिसका वर्णन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से युक्त है। इस मंदिर की शिल्पकारी और मूर्तिकारी को देखकर ही इसकी भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है और यह मंदिर है एलोरा का कैलाश मंदिर। 

Tuesday, April 7, 2020

AURANGZEB TOMB



खुलदाबाद - औरंगजेब का मक़बरा



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5 जनवरी 2020 

     दौलताबाद का किला देखने के बाद हम एलोरा गुफाओं की तरफ आगे बढ़ गए। यहाँ रास्ता बेहद ही शानदार था, रास्ते के दोनों तरफ बड़े बड़े छायादार घने वृक्ष लम्बी श्रृंखला में लगे हुए थे। दौलताबाद की सीमा समाप्त होते ही, घाट सेक्शन शुरू हो जाता है और ऑटो अब अपनी पूरी ताकत से इन पहाड़ियों पर गोल गोल घूमकर चढ़ता ही जा रहा था। कुछ समय बाद हम एक मुसलमानों की बस्ती में पहुंचे। यह नगर खुलदाबाद कहलाता है जिसे मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने बसाया था। यहां औरंगजेब का मकबरा एक साधारण सी मजार के रूप में स्थित है। इस स्थान के ऐतिहासिक महत्त्व को देखते हुए हम अपने धर्म के विपरीत इस स्थान को देखने गए।

Monday, April 6, 2020

DOULTABAD FORT


दौलताबाद का किला 


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5 जनवरी 2020 


   महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले से वेलूर स्थित एलोरा गुफाएं जाते समय रास्ते में एक शंक्वाकार आकार की पहाड़ी पर एक दुर्ग दिखाई देता है, यह दौलताबाद का किला है जिसे हिन्दू शासनकाल के दौरान देवगिरि के नाम से जाना जाता था। देवगिरि के इतिहास के अनुसार इस किले का निर्माण आठवीँ शताब्दी में यादव कुल के राजा भीमल ने कराया था। 8 वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक इस दुर्ग पर यादववंशीय शासकों का अधिकार रहा और उसके पश्चात् यह दिल्ली के सुल्तानों के अधीन आ गया। इस मजबूत किले से जुड़ा इतिहास काफी दुःखद और दयनीय है। 

Sunday, April 5, 2020

BIBI KA MAQBARA


बीबी का मक़बरा 



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यात्रा दिनाँक :- 5 जनवरी 2020

    विश्व प्रसिद्ध मुगलकालीन ईमारत ताजमहल की तर्ज पर बना बीबी का मकबरा, असल में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी महान शासक औरंगजेब की पत्नी, दिलरस बानो बेग़म का मक़बरा है जिनका देहांत मुमताज़ महल की ही तरह जज्चा संक्रमण की वजह से सन 1657 में हो गया था। इनके मरणोपरांत इन्हें राबिया उदौरानी के नाम से जाना गया जिसका हिंदी अनुवाद 'उस युग की राबिया' है। 

    कई लोग इसे सम्राट औरंगजेब का मकबरा भी समझ लेते हैं किन्तु यह गलत है। बेग़म की मृत्यु के पश्चाय सम्राट औरंगजेब ने यहाँ एक सादा कब्र का निर्माण कराया और बाद में औरंगजेब के पुत्र शहजादा आज़मशाह ने इसे ताजमहल से भी सुन्दर बनवाने की कोशिश की किन्तु अत्यधिक व्यय के चलते औरंगजेब ने ऐसा नहीं होने दिया। 

Saturday, April 4, 2020

PANCHAKKI : AURANGABAD


पहुर से औरंगाबाद और पनचक्की 



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5 जनवरी 2020 

    अजंता की गुफाएँ देखने के बाद हम लोग महाराष्ट्र परिवहन की एक बस द्वारा पहुर के लिए रवाना हुए। इस बस में अत्यधिक भीड़ थी इसलिए मुझे बैठने के लिए सीट नहीं मिल सकी परन्तु अपने सहयात्रियों को मैंने आराम से अलग अलग सीटों पर बैठा दिया। पहुर पहुंचकर बस अपने स्टैंड पर खड़ी हो गई, यहाँ से पहुर रेलवे स्टेशन की दूरी 2 किमी थी और यह बस रेलवे स्टेशन होते हुए ही जलगाँव की ओर जा रही थी। मैंने इस बस के कंडक्टर और ड्राइवर महोदय से विनती की, कि हमें रेलवे स्टेशन के नजदीक उतार दें, परन्तु उन्होंने हमारा अनुरोध स्वीकार नहीं किया और हमें बस स्टैंड पर ही उतार दिया। हम पैदल ही रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चले।

Friday, April 3, 2020

AJANTA CAVES


अजंता की गुफाएँ 



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यात्रा दिनाँक - 4 जनवरी 2020 
बौद्ध धर्म का उदय

भारतभूमि का इतिहास संसार की दृष्टि में अत्यंत ही गौरवशाली रहा है और अनेकों देशों ने भारत की संस्कृति, कला और धर्मक्षेत्र को अपनाया है। यह एक ऐसी भूमि है जहाँ विभिन्न तरह के परिधान, भाषा - बोली, संस्कृतियां और धर्म अवतरित होते रहे हैं। इसी भूमि पर भगवान विष्णु ने राम और कृष्ण के रूप में अवतरित होकर संसार को धर्म और मर्यादा का ज्ञान कराया, साथ ही महावीर जैन ने भी सत्य, अहिंसा और त्याग का ज्ञान देते हुए जैन धर्म का प्रसार किया। जैन धर्म के बाद एक ऐसे धर्म का उदय भारत भूमि पर हुआ जिसका ज्ञान लगभग जैन धर्म  के ही समान था और इसके प्रवर्तक विष्णु के ही अवतार माने गए और यह धर्म था - बौद्ध धर्म, जिसका ज्ञान गौतम बुद्ध ने संसार को दिया। 

Thursday, April 2, 2020

PAHUR RAILWAY STATION


अजन्ता की तरफ एक रेल यात्रा - मुंबई से पहुर



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3 जनवरी 2020

     मुंबई में दो दिवसीय यात्रा के बाद अब वक़्त हो चला था महाराष्ट्र प्रान्त के दर्शनीय स्थलों को देखने का, इसलिए बड़े बेरुखे मन से हमने मुंबई से विदा ली और हम लोकमान्य तिलक टर्मिनल स्टेशन से कुशीनगर एक्सप्रेस द्वारा पाचोरा के लिए रवाना हुए। कुशीनगर एक्सप्रेस में हमारा पाचोरा तक रिजर्वेशन कन्फर्म था और यह ट्रेन रात को दस बजे के आसपास पाचोरा के लिए रवाना हो गए। 

   आज हम पूरे दिन के थके हुए थे और अधिक से स्पॉटों को कवर करने के लिए हमने एक पल भी आराम नहीं किया था। इसलिए ट्रेन की सीट पर लेटते ही नींद ने हमें अपने आगोश में ले लिया और महानगर मुंबई से हम कब दूर हो गए पता ही नहीं चला।

Wednesday, April 1, 2020

KANHERI CAVES


कान्हेरी गुफाएँ


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    भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का उदय होने के बाद, भारतीय लोगों की इस धर्म के प्रति आस्था को देखते हुए अनेकों मठ, विहार स्थल, स्तूप और पर्वतों को काट छाँट कर गुफाओं का निर्माण हुआ। यह स्थल बौद्ध लोगों और भिक्षुयों के लिए रहने और महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार प्रचार हेतु बनाये गए थे। प्राचीन भारत के सबसे बड़े साम्राज्य, मगध में मौर्य वंश के दौरान से ही इन सभी का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। मौर्य वंश के पतन के पश्चात भी अनेकों राजवंशों ने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी आस्था बनाये रखी तथा इसे राजधर्म तक घोषित किया और ऐसे ही स्मारकों और गुफाओं का निर्माण होता रहा, जिनमें कुषाण और हर्षवर्धन का काल सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा। 

Tuesday, March 31, 2020

MUMBAI : 2020


मुंबई 2020 - नए साल की सैर


1 जनवरी 2020
 
   अपनी ऐतिहासिक यात्रा को आगे बढ़ाते हुए और भीमबेटकाउदयगिरि की गुफाओं के देखने के बाद अब मन में अन्य गुफाओं को देखने ललक जाग उठी थी। भारत की समस्त ऐतिहासिक गुफाओं की एक लिस्ट तैयार की गई और पाया कि ऐसी अधिकतर गुफाएँ महाराष्ट्र प्रान्त में है जो यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में भी दर्ज हैं जिनमें मुख्यतः एलिफेंटा, अजन्ता और एलोरा का मुख्य स्थान है। 

   इन गुफाओं को देखने के लिए यात्रा कार्यक्रम तैयार हुआ और हमने इस यात्रा कार्यक्रम को इस प्रकार बनाया कि यह ऐतिहासिक होने साथ साथ तीर्थ और पर्यटन यात्रा भी साबित हुई। इस यात्रा में रेलमार्ग को मुख्यता के रूप में चुना गया और इस यात्रा की शुरुआत हुई देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से।

Monday, March 30, 2020

KOTVAN FORT


कोटवन का किला



   यूँ यो भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली ब्रजधाम का प्रसार, उत्तरप्रदेश के मथुरा के जनपद के अलावा राजस्थान और हरियाणा में भी फैला हुआ है। ब्रजधाम केवल पौराणिक स्थल ही नहीं बल्कि यह ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों की धरोहरों को भी अपने आप में संजोये हुए है जिनमें यमुना नदी, यहाँ के हरे भरे वन, सैकड़ों कुंड, पर्वतमालाएं आदि शामिल हैं।

   ब्रजधाम का मथुरा जनपद प्राचीनकाल से ही एक महाजनपद और अनेकों शासकों की राजधानी रहा है। पूरे ब्रज और मथुरा जिले में अनेकों छोटे बड़े ऐतिहासिक कालीन स्मारक और किलों के खंडहर स्थित हैं और आज हम भी एक ऐसे ही किले के खंडहरों को देखने पहुंचे जो उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा पर राष्टीय राजमार्ग 2 पर दूर दे दिखाई देता हुआ अपनी गाथा कहता है और यह किला है कोटवन का किला।

Sunday, March 29, 2020

AGRA FORT : 2018



आगरा किला



26 जनवरी 2018 मतलब गणतंत्र दिवस, भारतीय इतिहास का वो दिन जब भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् देश का संविधान बनकर लागू हुआ। भारतीय संविधान को बनकर तैयार होने में कुल 2 साल 11 महीने 18 दिन का समय लगा और जब इसे लागू किया गया वह दिन भारतीय इतिहास में एक राष्ट्रीय पर्व बन गया और इसे आज हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश रहता है जिसे मनाने के लिए आज मैं अपनी पत्नी कल्पना को लेकर अपने शहर आगरा पहुंचा और अपने शहर को करीबी से देखने का मौका हासिल किया।

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ताजमहल पर आज के दिन काफी भीड़ रहती है, देश विदेश से हजारों पर्यटक इसे यहाँ देखने आते हैं अतः हमने इसे दूर से देखना ही उचित समझा और इसे देखने के लिए हम पहुंचे आगरा फोर्ट, जहाँ कभी अपने पुत्र औरंगजेब की कैद में रहकर मुग़ल सम्राट शाहजहाँ भी एक झरोखे में से इसे देखा करता था, जो उसने अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया था। यहीं इसी झरोखे से ताजमहल को निहारते हुए ही उसकी मृत्यु हो गई। आज आगरा फोर्ट में भी पर्यटकों की संख्या ज्यादा ही थी।

Saturday, March 28, 2020

AWAGARH FORT

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

अवागढ़ किला - एटा यात्रा




यात्रा दिनाँक :- 20 फरवरी 2018

इस फरवरी में जब शादियों का सीजन चल ही रहा है तो एक शादी का निमंत्रण हमारे पास भी आया और यह निमंत्रण था एटा में रहने वाली हमारी बुआजी की लड़की की शादी का। कुछ साल पहले मैं अपनी बहिन निधि के साथ उनके यहाँ एटा गया था तब से अब मुझे दुबारा एटा जाने का मौका मिला, परन्तु इसबार मेरे साथ मेरी बहिन नहीं बल्कि मेरी पत्नी कल्पना मेरी सहयात्री रही और यह यात्रा ट्रेन या बस ना होकर केवल बाइक से ही पूरी की गई। मथुरा से एटा की कुल दुरी 115 किमी के आसपास है और शानदार यात्रा में हमने बहुत ही एन्जॉय किया और इसे यादगार बनाया। 

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20 फरवरी मैं और मेरी पत्नी कल्पना अपनी बाइक द्वारा एटा के लिए रवाना हुए। मथुरा से निकलकर हमने अपना पहला स्टॉप बलदेव में लिया। बलदेव, ब्रजभूमि का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम और उनकी पत्नी रेवती जी का शानदार मंदिर स्थापित है। बलदेव से निकलकर हमारा दूसरा स्टॉप सादाबाद था। सादाबाद, हाथरस जनपद की प्रमुख तहसील है और हाथरस - आगरा मार्ग पर बहुत ही बड़ा क़स्बा है। यह एक जंक्शन पॉइंट है जहाँ से पाँच अलग अलग दिशाओं में रास्ते जाते हैं। यहाँ कुछ समय रूककर और एक प्रसिद्ध भल्ले की दुकान से भल्ला खाकर हम आगे बढ़ चले। 

Friday, March 27, 2020

RAWAL


राधारानी का जन्मस्थल - ग्राम रावल 



 गोकुल से 6 किमी दूर यमुना नदी के किनारे रावल ग्राम स्थित है जिसके बारे में प्रचलित है कि यह ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्री राधा रानी जन्म स्थल है। यह स्थान राधारानी का ननिहाल है जहाँ महाराज वृषभान की पत्नी कीर्ति प्रतिदिन यमुना स्नान करने के बाद सूर्यदेव की आराधना करती और एक पुत्री होने कामना करतीं। एक दिन यमुना में खिलने वाले कमल पर उन्हें एक सुन्दर कन्या की प्राप्ति हुई। यही कन्या आगे चलकर राधारानी के नाम से जानी गई और भगवान श्री कृष्ण की प्रिय बनी।

Thursday, March 26, 2020

RAMAN RETI - GOKUL


रमणरेती - गोकुल 



    भाद्रपद की अष्टमी की रात जब महाराज बसुदेव, भगवान कृष्ण को लेकर मथुरा से दूर यमुना पार करके बाबा नन्द के यहाँ गोकुल ग्राम पहुंचे और वहाँ बच्चे को जन्म देते ही गहरी नींद में सो जाने वाली यशोदा के बगल में छोड़ उनकी पुत्री योगमाया को वहाँ से उठा लाये और कारागार में वापस आ गए। अगली सुबह बाबा नन्द और यशोदा को अपने पुत्र होने का ज्ञान हुआ और तभी से भगवान श्री कृष्ण नन्दलाल और यशोदा नंदन कहलाने लगे।

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   भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन में जिस मिट्टी पर घुटुअन चलना सीखा, विभिन्न तरह के खेल खेले आज वह भूमि खेलनवन के नाम से जानी जाती है और इसे रमणरेती भी कहते हैं। इसी भूमि पर रहकर कान्हा ने अनेकों लीलाएँ की, अनेकों दैत्यों जैसे पूतना, तृणावर्त, कागासुर आदि का संहार किया और इसके साथ ही माखन की चोरी करना, गाय चराने जाना और रेतीली मिट्टी को खाकर इस ब्रज की रज को पूजनीय बना दिया। जिनका कभी धरती पर प्रार्दुभाव नहीं हुआ वे भोलेनाथ भगवान शिव भी कान्हा के बालस्वरूप के दर्शन करने कैलाश से यहाँ इस भूमि पर पधारे और अपने चरण रज से इसको पवित्र किया। 

Wednesday, March 25, 2020

BHOPAL CITY


भोपाल शहर और घर वापसी 



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भोजपुर से लौटने के बाद दिन ढल चुका था और भोपाल शहर ने काले रंग की शॉल से ओढ़ ली थी परन्तु मध्य प्रदेश की राजधानी होने के नाते इसकी चमक बरकरार थी जिससे यह लग ही नहीं रहा था कि शाम हो चुकी है और अँधेरा बढ़ने लगा है। जैनसाब, शाम के भोजन के लिए एक आलिशान रेस्टोरेंट में हमें लेकर पहुंचे। यहाँ उज्जैनी के प्रसिद्ध दाल फाफले मिलते हैं जो मैंने जीवन में पहली बार खाये थे। यह खाने में अत्यंत ही स्वादिष्ट थे और हमारे खाने के बाद रेस्टोरेंट की मैनेजर ने हमसे खाने की गुणवत्ता को लेकर फीडबैक भी लिया जो हमारी तरफ से शानदार था। 

Tuesday, March 24, 2020

SANCHI AND CANCER TROPIC


साँची के स्तूप और कर्करेखा 



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    अपनी कलिंग विजय के दौरान जब सम्राट अशोक ने रणभूमि में भयंकर रक्तपात देखा, दोनों ओर की सेनाओं के वीर सैनिकों के शव और चारों ओर मची शोकभरी चीत्कार सुनकर उसका हृदय काँप उठा और मानसिक रूप से विचलित हो उठा। भयंकर रक्तपात और नरसंहार ने उसका सुकून छीन सा लिया था। एक राजा के लिए युद्ध लड़ना आवश्यक नहीं बल्कि उसकी मजबूरी होता है फिर चाहे वो युद्ध साम्राज्य वाद के लिए हो, अपने राज्य की रक्षा के लिए हो या फिर किसी राज्य को लूटने के उद्देश्य से हो परन्तु सम्राट अशोक के लिए इस युद्ध के पीछे क्या कारण था यह अज्ञात है किन्तु इस युद्ध के बाद उसका हृदय परिवर्तित हो गया और उसने हिंसा का मार्ग छोड़कर अहिंसा का मार्ग अपनाया और जिस धर्म ने उसे अहिंसा का मार्ग दिखलाया वह था बौद्ध धर्म। जिसकी शुरआत सम्राट अशोक ने साँची का स्तूप बनवाकर की। 

Sunday, March 22, 2020

UDAIGIRI CAVES


उदयगिरि की गुफाएँ


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 अगला दिन - 22 DEC 2019

  मध्ययुगीन काल से पहले भी भारतभूमि में बाहरी प्रजाति के शासकों ने, भारत की भूमि पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए कई बारआक्रमण किये, जिनमें शक और हूणों का नाम मुख्यता से लिया जा सकता है। शकों के परास्त होने और हूणों को भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने से पहले भारत के एक ऐसे काल का उदय हुआ जो भारतीय इतिहास में स्वर्णिम काल के नाम से विख्यात है और यह काल था देश के महानतम और यशस्वी सम्राटों का काल - गुप्तकाल। 

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    गुप्तकाल की स्थापना का श्रेय 'श्रीगुप्त' को जाता है किन्तु इस काल के जिन महान सम्राटों ने भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वह थे - चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त। यह सभी शासक हिन्दुधर्म के अनुयायी थे और शैव धर्म तथा वैष्णव धर्म में विशेष आस्था रखते थे। इतिहासकारों के अनुसार इस काल का सबसे प्रतापी सम्राट और प्रजाहितकारी शासक 'चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य' था जिसकी अनेको कहानियां पुराणों में वर्णित हैं।

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Friday, March 6, 2020

Bhojpur Shiv Temple



भोजपुर शिव मंदिर 



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    भीमबेटका से लौटकर अब जैन साब के साथ हम भोजपुर शिव मंदिर की तरफ रवाना हुए। दिन ढलने की कगार पर था और शाम अब करीब आ चली थी। भोपाल से होशंगाबाद वाले इस राजमार्ग पर अभी मार्ग चौड़ीकरण का कार्य चल रहा था, आने वाले समय में यह रास्ता भोपाल से भीमबेटका या होशंगाबाद जाने वाले राहगीरों के लिए बहुत ही सुविधा जनक हो जाएगा। अब्दुल्लागंज आने पर जैनसाब ने गाडी सड़क के बाईं ओर खड़ी करके शुभ भाई को यहाँ की मशहूर दुकान से कचौड़ी लाने के लिए कहा जो कि दाल की बनी बेहद ही स्वादिष्ट और गर्मागर्म थीं जिन्हें शाम की चाय के साथ हमें खाने बहुत ही आनंद आया। 

Saturday, February 29, 2020

Bhimbetka Caves



आदिमानव का आश्रय स्थल - भीमबेटका गुफ़ाएँ



आदिमानव और उसका निवास 
    
     देश के मध्यभाग में स्थित और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 40 - 50 किमी दूर दक्षिण दिशा में विंध्यांचल पर्वत की विशाल श्रृंखला है जहाँ प्राचीन काल से ही ऋषिमुनियों के आश्रम तथा जीव जंतुओं का निवास रहा है और इसके साथ ही यह स्थान मानव के उस युग से सीधा सम्बन्ध रखता है जब मनुष्य को अपने मनुष्य होने का ज्ञान भी नहीं था, वह कौन था, किसलिए था इन सभी जानकारियों से परे शिकार करके जीवन निर्वाह करना और मौसम की मार से बचने के लिए प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय लेना ही उसकी मानवता को दर्शाती है। यह काल प्रागेतिहासिक काल के नाम से जाना गया और उस समय का मानव 'आदिमानव' के नाम से। 


Bhopal City and Jain Sab



मैं, कुमार और जैनसाहब से एक मुलाकात - झीलों के शहर भोपाल में  





  रूपकजैन साहब से मुलाकात होने के बाद हमारी एक दूसरे से काफी अच्छी मित्रता हो गई। जल्द ही जैन साब ने मुझे अपने शहर भोपाल घूमने के लिए आने को कहा। मेरी लिस्ट में भोपाल व उसके आसपास के दर्शनीय स्थल थे जो मुझे कभी ना कभी तो देखने ही थे इसलिए अब उन जगहों पर जाने का वक़्त आ चुका था। मैंने भोपाल का रिजर्वेशन करा लिया और साथ में कुमार को भी भोपाल घुमाने के लिए राजी कर लिया।

   उसने भी अपनी टिकट अपने पीटीओ पर बुक कर ली और साल के आखिरी माह में हमारी 2019 की आखिरी ट्रिप भोपाल फाइनल हो गई। मैंने और कुमार ने अपना रिजर्वेशन ग्रांडट्रक एक्सप्रेस में कराया था। हालांकि सर्दियों के दिन थे इसलिए ट्रैन का प्रतिदिन भोपाल पहुँचने का स्टेटस रूपकजैन साब मुझे फोन पर देते थे। मैं हैरान था कि भला कोई मेरा अपना भी ऐसा भी हो सकता है जो इतनी बेसब्री से मेरी प्रतीक्षा कर रहा हो।

Wednesday, February 26, 2020

Traveling and Friendship



घुमक्क्ड़ी ग्रुप और मेरी मित्रता 

     लोग कहते हैं जमाना बदल रहा है, टेक्नोलॉजी का समय आ गया है। आज के समय में सभी के हाथों में स्मार्ट फोन हैं जिन्होंने इंसान को इतना अकेला कर दिया है कि उसके पास सिवाय अपने फोन के, ना अपने परिजनों से बात करने समय है और नाही किसी रिश्तेदार या भाई बंधू का हालचाल जानने के लिए। आधुनिक युग में विज्ञान की प्रगति ने आज के मानव को इतना व्यस्त बना दिया है कि वो चाहकर भी किसी और के लिए क्या, अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाता और यही कारण है कि अन्य वर्षों की तुलना में अपने देश में रिश्तों में भारी गिरावट देखने को मिली है। मगर वहीँ इंटरनेट पर बनी सोशल साइटों के जरिये लोगों को एक दूसरे को पहचान बनाने का मौका मिला  और साथ ही इस पहचान को दोस्ती में बदलने का भी।

Tuesday, February 18, 2020

Safdarjung Tomb



सफदरजंग का मक़बरा 





नवंबर 2018 .
मैं आज दिल्ली में हूँ और दिल्ली के पुराने अतीत के जीवन को वर्तमान में पहचानने की कोशिश में हूँ।  मैं निकला था दिल्ली के प्राचीन शहर महरौली की तरफ जहाँ आज भी दिल्ली का सल्तनतकालीन  और उसके वंशजों द्वारा बनवाये गए किले, मकबरे और महल अपने भव्य समय की याद दिलाते हैं जिनमे सबसे मुख्य तो विश्व प्रसिद्ध कुतुबमीनार है जो आज दिल्ली की ही नहीं पूरे भारतवर्ष की शान है। इससे पहले दिल्ली की सरकारी बस में बैठकर मैं सफ़दरजंग के मकबरे पर पहुंचा। आज सफदरजंग केवल एक व्यक्ति का नाम ही नहीं रह गया है बल्कि यह नाम दिल्ली में एक जाना माना स्थान बन चुका है और इसी नाम पर दिल्ली का रेलवे स्टेशन और अस्पताल भी मुख्य हैं। 

Sunday, February 16, 2020

SOUNKH


कुषाण कालीन मथुरा - सौंख का टीला 



    ब्रजभूमि मथुरा केवल एक पौराणिक स्थान ही नहीं बल्कि पौराणिक होने की वजह से यह भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा पर अनेकों शाशकों ने शासन किया है और मध्ययुगीन काल से पहले यह जैन और बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र भी रहा है जिसकी पुष्टि यहाँ खुदाई में मिली बौद्ध मूर्ति और जैन धर्म की वस्तुएं से होती है।  मथुरा जिले के आसपास अनेकों मिट्टी के टीले पाए गए और जब इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं की निगरानी में इनकी खुदाई हुई तो इनमें से एक टीले के नीचे कुषाण कालीन अवशेषों की प्राप्ति हुई और आज टीला स्थित है मथुरा से 21 किमी दूर राजस्थान की सीमा पर स्थित सौंख में। 

   मथुरा से राजस्थान की तरफ चलने पर सौंख नामक क़स्बा पड़ता है जहाँ दूर से ही एक ऊँचे टीले के अवशेष दिखाई देते हैं। यह टीला भारतीय इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है जहाँ से खुदाई के दौरान ज्ञात हुआ कि प्राचीन काल में यहाँ तक कुषाण वंशीय सम्राट कनिष्क का साम्राज्य स्थापित था और उसके समय में मथुरा बौद्ध धर्म का एक मुख्य नगर था। सन 1969- 70 के आसपास प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता हर्बर्ट हर्टल के नेतृत्व की गई खुदाई के दौरान यहाँ कई प्राचीन काल की मूर्तियां और कलाकृतियां प्राप्त हुईं जो आज मथुरा के राजकीय संग्रहालय में देखने के लिए रखी हुईं हैं। 

   आज कंपनी के इवेंट के दौरान जब मैंने यहाँ कैंप लगाया, तो यह स्थान मेरे कैंप से कुछ ही दूरी पर स्थित था इसलिए मुझे आज यहाँ घूमने का मौका मिला और मैं इसे देखने गया तो मैंने पाया कि यह ऐतिहासिक स्थान आज अतिक्रमण का शिकार है परन्तु अतिक्रमण को बढ़ने से रोकने हेतु उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा यह पूर्णतः संरक्षण में ले लिया गया है। यहाँ प्राचीन अवशेष और उनकी दीवारें टीलों में दबी हुई दिखाई पड़ती हैं। इसके अलावा यहाँ एक ऊँचे टीले पर एक दरगाह या मजार भी बनी हुई है। 

   ब्रज की पौराणिक दृष्टि से देखा जाए तो यह स्थान गोवर्धन से 10 किमी दूर दक्षिण में स्थित है जहाँ भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी किसी भी लीलास्थली का वर्णन पुराणों में नहीं मिलता है। 


SONKH ROAD


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SONKH HISTORICAL TEELA

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MAZAAR AT SOUNKH

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