Wednesday, January 29, 2020

Sri Dungargarh Railway Station



मरुभूमि बीकानेर की तरफ़ - मथुरा से श्री डूँगरगढ़ 



यात्रा दिनाँक - 30 अगस्त 2019

      कभी कभी कुछ यात्रायें बिना किसी पूर्व विचार के भी बन जाया करती हैं और बिना किसी तैयारी के पूर्ण भी हो जाती हैं। ऐसी ही एक यात्रा मैंने भी की मरुभूमि बीकानेर की। दरअसल बीकानेर से कुछ पहले मेरे मामाजी की ससुराल एक ग्राम में है जिसका नाम है झंझेऊ। यह ग्राम मरुभूमि में रेगिस्तान के टीलों के बीच आगरा से बीकानेर मार्ग पर स्थित है। आजकल मामाजी यहीं थे और उन्होंने मुझे वहां बुलाया। आज से दस साल पहले भी यानी सन 2009 में भी मैं वहां उनके साथ जा चुका था और कई दिन वहां रहकर आया था। आज दस साल बाद मुझे फिर से वहां जाने का मौका मिल रहा था। प्लान गोगामेड़ी जाने का था कल्पना को लेकर, परन्तु अत्यधिक भीड़ के चलते कल्पना का प्लान कैंसिल हो गया और मुझे अकेले ही इस यात्रा पर निकलना पड़ा।

Saturday, January 11, 2020

Amarkantak


अमरकंटक की एक सैर 



अमरकंटक :-  मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों की सीमा तथा मैकाल पर्वत श्रृंखला पर स्थित प्राकृतिक वातावरण से भरपूर भगवान शिव और उनकी पुत्री श्री नर्मदा देवी जी का दिव्यधाम है। यहीं से श्री नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है और साथ ही सोन तथा जाह्नवी नदी का भी यह उद्गम स्थल है। प्राकृतिक वातावरण से भरपूर और एक पर्वतीय स्थल होने के कारण यह स्थान प्राचीनकाल से ही साधू संतो तथा ऋषि मुनियों केलिए साधना एवं तप करने योग्य उचित स्थान है और आज भी यहाँ अनेकों ऋषि मुनि अपनी तप और साधना में लग्न रहते हैं। यहाँ अनेकों आश्रम स्थित हैं जिनमें अच्छी सुविधा के साथ ठहरने की उचित व्यवस्था है। कुल मिलकर अमरकंटक एक दिव्य और पुण्य धाम तथा हिन्दुओं का धार्मिक केंद्र है।

अमरकंटक में दर्शनीय स्थल :- हालांकि समस्त अमरकंटक धाम दर्शनीय है किन्तु यहाँ अनेकों प्राचीन स्थान ऐसे हैं जिन्हें देखने के लिए दूर दूर से अनेकों तीर्थयात्री प्रतिदिन यहाँ आते हैं और कुछदिन यहाँ रहकर अपनी प्रतिदिन के व्यस्त जीवन और भागदौड़ से थोड़ा आराम पाते हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थल निम्न प्रकार हैं -

  • श्री नर्मदा जी का मंदिर तथा उद्गम स्थल 
  • कल्चुरी काल के ऐतिहासिक मंदिर जिनमे सबसे प्रमुख कर्ण मंदिर है। 
  • माई की बगिया 
  • माई का मंडप 
  • सोनमुड़ा  ( सोन नदी का उद्गम स्थल )
  • श्री यंत्र महामेरु मंदिर 
  • श्री मार्कण्डेय आश्रम 
  • श्री गायत्री मंदिर 
  • कपिल धारा 
  • दूध धारा 
  • श्री आदिनाथ जैन मंदिर 
  • श्री जालेश्वर मंदिर 
  • कबीर चबूतरा 
  • मैकाल पार्क 
अमरकंटक कैसे पहुंचे :- अमरकंटक धाम मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में मैकाल पर्वत पर छत्तीसगढ़ की सीमारेखा पर स्थित है। यहाँ ट्रेन द्वारा पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पेण्ड्रा रोड है जो कटनी से बिलासपुर रेलमार्ग पर स्थित है। स्टेशन के बाहर से ही अमरकंटक जाने के लिए टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं जो 80 रूपये पर व्यक्ति के हिसाब से किराया लेती हैं। नजदकी एयरपोर्ट बिलासपुर में स्थित है। 


Tuesday, June 4, 2019

Return from Shri Kedarnath

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

श्री केदारनाथ जी से मथुरा वापसी ( एक चमत्कारिक यात्रा )





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केदारनाथ नगर में भ्रमण :-
सुबह से शाम तक लाइन में लगे रहने के बाद आख़िरकार मुझे मेरे आराध्य भगवान शिव के केदारनाथ जी   के दर्शन हो ही गए।  दर्शन से मन को तृप्त करने के बाद मैंने भीमशिला के भी दर्शन किये जिसने त्रासदी के समय केदारनाथ मंदिर जी रक्षा की थी और फिर मैंने केदारनाथ नगर का भ्रमण किया जो मात्र साल में छः महीने ही गुलजार रहता है बाकी छः महीने यह बर्फ के आगोश में छिप जाता है। त्रासदी के समय यहाँ अत्यधिक विनाश हुआ था जिसके निशाँ उस दर्द की कहानी आज भी बयां करते नजर आते हैं। नगर भ्रमण करने के बाद अब मुझे भूख भी लग आई थी, राजस्थान वालों का यहाँ विशाल भंडारा चल रहा था जिसमे स्वादिष्ट भोजन और कुछ जलेबी खाकर अब मैं वापस अपने घर की तरफ लौट लिया था किन्तु मुझे क्या पता था कि घर अभी बहुत दूर था।

केदारनाथ जी से वापसी :-
केदारनाथ से लिंचोली तक आते आते अब मैं बहुत ही बुरी तरह से थक चुका था, पहाड़ उतरते समय आज मुझे पहली बार एहसास हुआ कि पहाड़ से उतरना, पहाड़ पर चढ़ने से भी ज्यादा मुश्किल होता है। इन खाली घोड़ों को यूँ नीचे की तरफ जाते देख कभी कभी मन करता की क्यों ना इन्हीं एक घोड़े पर बैठकर मैं भी निकल जाऊं परन्तु जब जेब का ख्याल आता तो पता चला कि पैसे तो पैदल चलने के लायक भी नहीं बचे थे आज, जो आखिरी बीस रूपये थे उसका भी मैं प्रसाद ले आया था, अब तो बस मेरी मंजिल माँ ही थी जो इसवक्त भीमबली में थी और शायद मेरे अन्य सहयात्री विष्णु भाई और त्रिपाठी जी भी मुझे वहीँ मिले। शाम हो चुकी थी और अब सूर्य का प्रकाश धीरे धीरे घाटी में से प्रस्थान कर रहा था और अँधेरे का आगमन शुरू हो चुका था। अँधेरे में ये पहाड़ और भी खतरनाक हो जाते हैं और मुझे फिर इन पहाड़ों से डर लगने लगता है।

Shri Kedarnath Jyotirling

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग यात्रा 2019 


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   पर्वतराज हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों पर साक्षात् ईश्वर का वास माना जाता रहा है, इसलिए हिमालय  देवभूमि कहलाता है। हिमालय के उत्तराखंड राज्य में हिन्दुओं के मुख्य तीर्थ स्थल चार धाम स्थित हैं जिनमें श्री बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी, गंगोत्री और यमुनोत्री हैं। इनके अलावा यहाँ हर कोस पर किसी न किसी देवता का मंदिर भी स्थित है। श्री केदारनाथ जी भारतवर्ष के मुख्य बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं जिनका दिव्य मंदिर हिमालय की केदार नामक ऊँची चोटी पर स्थित है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के मंदिर के बारे में विख्यात है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था जो पर्वत की 11750 फुट की ऊँचाई पर स्थित है।

Monday, June 3, 2019

Gourikund to Lincholi

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 श्री केदारनाथ मार्ग और मेरे अनुभव - गौरीकुंड से बड़ी लिंचोली



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   अब चढ़ाई शुरू हो चुकी थी और मेरा संपर्क अब प्रकृति के साथ हो चला था, भोलेनाथ के भक्तों की भीड़ के साथ साथ अब मैं भी भोलेनाथ के दरबार की तरफ बढ़ने लगा था कि अचानक मुझे याद आया कि माँ का पर्स और उनका बैग तो मेरे पास ही रह गया था जिसका मतलब था कि अब उनके पास एक पैसा भी नहीं था जिससे वो कहीं किसी दुकान पर चाय पी लें या कुछ खा लें, जब कि वो तो डायबिटीज की मरीज हैं उन्हें भूख बहुत ही जल्द लग आती है, अब कैसे होगा, क्या होगा बस कुछ ऐसे ही विचारों को अपने दिमाग में सोचते हुए मैं आगे बढ़ रहा था, एक तरफ मुझे माँ से बिछड़कर दुःख भी हो रहा था और दूसरी तरफ मन ये सोच कर खुश भी था कि जो भी हो अब मेरी माँ घोड़े पर बैठकर मंदिर तक तो पहुँच ही जाएगी। 

   मैं भी मंदिर पर पहुँच जाऊंगा जहाँ मेरी मुलाकात माँ से हो जाएगी बस चिंता इसी बात की रहेगी कि उनके पास पैसे नहीं हैं परन्तु हो सकता है भोलेनाथ कोई चमत्कार ही कर दें, मेरे अन्य सहयात्री जो कल के भोलेनाथ से मिलने गए हुए हैं उनकी भेंट माँ से हो जाए और फिर उन्हें कोई परेशानी ना हो।

Sunday, June 2, 2019

Sonprayag



केदारनाथ यात्रा 2019  -  सोनप्रयाग से गौरीकुण्ड


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    स्टेटबैंक के एटीएम के बाहर रातभर जमीन पर सोने के बाद मेरी आँख सुबह जल्दी ही खुल गई, दरअसल मैं रात को ठीक से सो ही नहीं सका और सुबह होने की प्रतीक्षा करता रहा था, दिल में भोलेनाथ से मिलने की लालसा अब उनके द्वार पर आकर और भी तीव्र हो चली थी, अब बस ऐसा लग रहा था कि बस जल्दी से चढ़ाई शुरू कर दूँ और केदारनाथ बाबा के मंदिर पर जाकर माथा टेकूँ, बस ऐसा सोच ही रहा था कि सबसे पहले नहा धोकर तैयार आचार्य विष्णुजी ने बताया कि ऊपर चढ़ाई शुरू करने से पहले रजिस्ट्रेशन करवाना होगा, तभी चढ़ाई शुरू होगी। रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए और अपनी

   आगे की यात्रा को अंतिम पड़ाव तक पहुँचाने केलिए हम सभी सोनप्रयाग स्थित रजिस्ट्रेशन काउंटर पर पहुंचे। यह सोनप्रयाग में केदारनाथ मार्ग में स्थित है। यहाँ पहुंचकर देखा तो बहुत ही लम्बी लाइन लगी हुई थी, माँ को चाय की दुकान पर बैठाकर हम रजिस्ट्रेशन हेतु लाइन में लग गए, एक घंटे लाइन में लगे रहने के बाद हमें पता चला कि यह रजिस्ट्रेशन हम अपने मोबाइल में भी स्वतः ही कर सकते हैं, लाइन से हटकर हमने अपना अपना रजिस्ट्रेशन किया और जय बाबा केदारनाथ का जयकारा लगाकर हम गौरीकुंड के लिए बढ़ चले।

Saturday, June 1, 2019

Haridwar : 2019


केदारनाथ यात्रा 2019 - हरिद्वार से सोनप्रयाग बस यात्रा


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शाम को गंगा स्नान करने  के बाद हम धर्मशाला पहुंचें और अपने अपने घरों से जो कुछ हम खाने को लाये थे उसे ही खाकर अपने बिस्तर लगाकर सो गए।  त्रिपाठी जी धर्मशाला की सबसे  ऊपर की छत पर जाकर सो गए जहाँ इस जून के महीने में भी हमें  ठंडी हवा रात को लगी रही थी। सुबह तड़के ही हम सब उठकर नहाधोकर बस स्टैंड की तरफ निकल गए। बस स्टैंड पहुंचकर देखा तो बद्रीनाथ जाने वाली उत्तराखंड की एकमात्र रोडवेज बस निकल चुकी थी, इसलिए बस स्टैंड के बाहर से ही चलने वाली एक प्राइवेट बस में हमने अपनी अपनी सीट बुक कर लीं। 

सुबह आठ बजे  के आसपास बस हरिद्वार से रवाना हो चली, यह बस अगस्तमुनि तक ही जा रही थी। अगस्तमुनि रुद्रप्रयाग से आगे केदारनाथ जाने वाले मार्ग में पड़ता है। ऋषिकेश निकलने के पश्चात् बस अब पहाड़ों की तरफ अपना रुख कर रही थी। यही वो पहाड़ थे जिनमें जाने का सपना मैं काफी समय से देख रहा था। गोलाकार घुमावदार सड़कों पर बस में बैठकर यात्रा करने का आनंद ही कुछ और होता है, गंगा नदी अब काफी नीचे गहरी घाटी में बहती हुई दिखाई दे रही थी। जितना यहाँ यात्रा करने में आनंद आता है उतना ही बस की खिड़की से गंगा ज की गहरी घाटी को देखकर डर भी लगता है। यह उत्तराखंड के पहाड़ हैं और उत्तराखंड एक देवभूमि है यहां जहाँ कहीं भी नजर जाती है वहीँ ईश्वरीय शक्ति आभास अनायास ही होने लगता है। 

Friday, May 31, 2019

Ujjaini Express Trip


केदारनाथ यात्रा 2019 - मथुरा से हरिद्वार रेल यात्रा 




   वक़्त बस गुजरता ही जा रहा था और मैं अभी भी हरिद्वार से ऊपर पहाड़ों में अपने आराध्यों के दर्शन करने नहीं जा पाया था। मेरे अन्य घुमक्क्ड़ साथियों ने उत्तराखंड का चप्पा चप्पा छान रखा था और मैं अभी सिर्फ हरिद्वार और ऋषिकेश तक ही सीमित था, कारण था कि मैं पहली बार वहां अकेला नहीं जा सकता था, मेरे साथ मेरी माँ अधिकांशतः मेरी सहयात्री रही हैं और उनके साथ मैंने 12 ज्योतिर्लिंग पूरे करने का प्रण लिया है जिसमे से दस ज्योतिर्लिंग हम कर चुके हैं। सबसे ज्यादा मुश्किल और कठिन यात्रा जिस ज्योतिर्लिंग की मुझे लगती थी वो श्री बाबा केदारनाथ जी थे क्योंकि यहाँ अधिकतर पैदल और ऊँचाई सहित ट्रैकिंग है, जो मुझे माँ के लिए पर्याप्त नहीं लग रही थी किन्तु जब प्रण लिया है तो जाना तो पड़ेगा ही अगर बाबा नहीं भी बुलाएँगे तो भी हम जायेंगे। बस ऐसा ही सोचकर मैंने एक गलत महीना यात्रा के लिए निश्चित किया और ये महीना जून था। 

Mathura to Haridwar By Ujjaini Express

 Mathura to Haridwar By Ujjaini Express


The time was just passing by and I still was not able to visit my worshipers in the mountains above Haridwar. My other nomadic colleagues searched the city of Uttarakhand and I was still confined to Haridwar and Rishikesh, the reason why I could not go there alone for the first time, my mother with me was mostly my hitchhiker and I accompanied her We have pledged to complete 12 Jyotirlingas, out of which we have done ten Jyotirlingas.The most difficult and difficult journey Jyotirlinga I used to think of was Sri Baba Kedarnath ji because most of the trekking here is on foot and with height, which I did not find enough for my mother, but when I have pledged, then I will have to go. Even if we do not call, we will go. Thinking just like that, I decided to travel a wrong month and this month was June.


Listening to the journey of Shri Kedarnath ji, some of my companions along with me agreed to walk with me as my fellow traveler, one of whom is Ganga Prasad Tripathi ji with whom I had last visited Kalinjar Fort and another brother Acharya Shri Vishnu Sharan Bhardwaj Is a resident of my mother's village Airakheda and is a revered Bhagavatacharya.Along with Vishnu, he has another friend whose name is Ankit, he is also a resident of the same village. On 31 May 2019, I reached Mathura Junction with my mother. Tripathi ji had arrived here from Banda in the morning and was ready to wash his bath in the waiting room.Vishnu along with his co-passenger Ankit reached Mathura station from the village before the arrival of the train and now together we five people were waiting for the train going to Haridwar at Mathura Junction for the journey of Baba Shri Kedarnath.

In a short time Ujjaini Express going to Haridwar on its scheduled time also came, most of our seats were waiting which was now confirmed and we got our seats in different coaches. Tripathi ji had come for the journey of the night, so he found enough seat for himself and he went to sleep on it.After some time from Mathura, Tran reached Faridabad and then Nizamuddin. Today examinations were held for any job in Meerut and Saharanpur, so most of the boys were boarded in this train from Delhi and the train seemed to be overloaded, but the train is a train no matter how much it is loaded. . After Delhi, Ghaziabad completed the task of crowdfunding. Now there was no space left from the seat to the bathroom in Tran's reservation coach.

After leaving Ghaziabad, the train stopped coming to Meerut. It was summer, the crowds in the train were also numerous and the air was not known. The wings of the train were seen moving like firkni, but even the air comes out of them, it was not even realized. The shortage of water was heard throughout the train as soon as the train stopped at a station, empty bottles of water started to appear from the windows of the train, and just a glance towards any window, the water in that window The eyes of the riders sitting with empty bottles could clearly see two sips of water.

So I used to travel on the foot of the train and as soon as the train stopped at a station, I quickly collected bottles and started filling them at the water tap. Now only two bottles were filled that the sound of the engine in the train started and we used to leave the water and stand at the foot of the train. After Meerut, Muzaffarnagar was seen by a sevadal of water givers who would go to the window of the train and fill the bottles of the people and get rid of the scarcity of water. The same sequence continued till Haridwar.

Finally in the evening we reached our first floor Haridwar. Everyone got a sigh of relief as soon as they got off the train, because after getting off the train, for a moment it felt as if they were freed from a prison. The water coming from the taps at the railway station of Haridwar is very sweet and cold, after drinking, the thirst of births has been quenched. Haridwar means the Gate of God. That is, if you want to attain God, then you will have to come to Haridwar and then only the elevated God is sitting in the high mountains above here. Lord Shiva resides in Kedarnath ji, therefore, devotees of Shiva also call it Hardwar and Shri Badrinath is inhabited by Lord Hari (Vishnu), hence it is called Haridwar. Mother Ganga comes out of the mountains here into the earth and the people who go to the Lord's Dham bath in the Ganges and complete their journey ahead.

After leaving the station, we looked for a Dharamshala for a night stay and finally we found a room in a Dharamshala to stay right on the second floor. After putting our luggage here and taking the necessary goods, we all reached the ghat of Ganga ji in the evening. Due to the delay, we could not see the Ganga Aarti, but in the evening, that wonderful view of Hari's Paadi, which is difficult to describe in words. It can only be experienced by someone who has come here once. A man must come to work once in a lifetime, if not again and again, and should feel his culture and his faith. Ganga is not the only river, it is our faith. Coming to the banks of the Ganges, we automatically start feeling like our ancestors, we realize that we are Hindus and we feel proud that we are the people of India who have given us a river like Ganges and a city like Haridwar.


Kedarnath ji is far away, so the journey will continue in the next part .....

Friday, April 19, 2019

Nagrota Sooriyan



नगरोटा सूरियाँ और घर वापसी



यात्रा दिनांक - 19 अप्रैल 2019

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    नगरोटा का बस स्टैंड एक बहुत सुन्दर स्थान है, यहाँ से धौलाधार श्रेणी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। रेलवे स्टेशन भी यहाँ से आधा किमी की दूरी पर ही है। मुझे यहाँ से जल्द ही एक काँगड़ा की बस मिल गई जिससे कुछ समय बाद मैं फिर से काँगड़ा बस स्टैंड पहुँच गया। बस से उतारते ही मैंने काँगड़ा के नजदीक स्थित मशहूर शैल चट्टान मंदिर 'मशरूर' के बारे में बस वाले से पूछा किन्तु वो मुझे इसका स्पष्ट विवरण नहीं दे सका कि ये कहाँ है और मुझे यहाँ किस प्रकार पहुँचना होगा। मैंने अपने मोबाइल से गूगल मैप में चैक किया और इसके अनुसार मैं बस में बैठकर चल दिया। एक पठानकोट जाने वाली बस ने मुझे कोटला फोर्ट से पहलर बत्तीस मील नामक एक चौराहे पर उतार दिया जहाँ से लुंज तक मुझे दूसरी बस तैयार खड़ी हुई मिली।   

CHAMUNDA DEVI : 2019


हिमानी चामुण्डा की खोज में



यात्रा दिनांक - 19 अप्रैल 2019

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    आज की सुबह मेरा यात्रा लक्ष्य हिमानी चामुंडा की ओर था, सुबह सुबह माँ बज्रेश्वरी देवी को प्रणाम करके मैं बाहर रोड पर आ गया और चामुंडा जाने वाली बस का इंतज़ार करने लगा, जब काफी देर तक कोई बस नहीं आई तो मैंने एक बस वाले से चामुंडा जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उसने बस स्टैंड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि चामुंडा जाने वाली बस तुम्हें वहाँ से मिलेगी, जबकि पिछली बार मैं यहाँ आया था तो हम सभी यहीं से बस में बैठकर चामुंडा गए थे। खैर मैं बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा और जल्द ही मुझे चामुंडा जाने वाली बस मिल गई।

Thursday, April 18, 2019

KANGRA : 2019

नगरकोट धाम में एक रात 



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   बैजनाथ पपरोला से एक्सप्रेस ट्रेन द्वारा मैं काँगड़ा पहुँचा, चूँकि यह ट्रेन काँगड़ा मंदिर स्टेशन पर नहीं रूकती है इसलिए मैं पहली बार कांगड़ा स्टेशन पर उतरा। आज हमारे मथुरा और आगरा में लोकसभा के चुनाव भी थे, मेरा नाम अभी भी एनरोलमेंट लिस्ट में नहीं था इसलिए इस छुट्टी को मैंने काँगड़ा में आकर मनाया था। मैंने फेसबुक पर वोट देने  सभी मित्रों बधाई दी और उसके बाद कांगड़ा स्टेशन के सामने जाती हुई एक सड़क पर  चलकर मैं नीचे मुख्य सड़क पर पहुँचा। कुछ ही समय बाद यहाँ काँगड़ा शहर जाने वाली बस आई जिससे मैं कांगड़ा मंदिर जाने वाले मुख्य द्वार पर उतर गया। 

BAIJNATH PAPROLA : 2019

बैजनाथ धाम और बिनबा नदी



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      पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मैं काँगड़ा से बैजनाथ पपरोला तक चलने वाली एकमात्र एक्सप्रेस ट्रेन से बैजनाथ पपरोला स्टेशन पहुँच गया। अब यह ट्रेन शाम को यहाँ से 4:30 बजे पठानकोट के लिए प्रस्थान करेगी इसलिए अभी बैजनाथ में घूमने के लिए मेरे पास पर्याप्त समय था। मैं पहले भी यहाँ 2 या 3 बार आ चुका हूँ और जब आज से 6 साल पहले जब मैं यहाँ आया था तब पिताजी के साथ यहाँ बहने वाली बिनवा नदी में स्नान भी करने गया था। इसलिए आज सबसे मेरा लक्ष्य था इस नदी स्नान करना। बैजनाथ से आगे रेलवे लाइन जोगिन्दर नगर तक जाती है और एक शानदार घुमाव साथ बिनवा नदी को पार करती है।

Kangra Valley Express



काँगड़ा वैली एक्सप्रेस से एक सफ़र 



   अभी हाल ही में दिनांक 6 फरवरी से काँगड़ा वैली रूट पर एक एक्सप्रेस ट्रेन का संचालन किया गया है। यह काफी लम्बा समय था जब इस 164 किमी लम्बे रूट पर कोई एक्सप्रेस ट्रेन चली है। हालाँकि यह अभी पठानकोट से बैजनाथ पपरोला तक ही अपनी सेवा देती है। परन्तु इस 141 किमी लम्बी यात्रा को एक एक्सप्रेस ट्रेन द्वारा पूरा करना कम रोमांचकारी नहीं है। पठानकोट से चलने के बाद इसका अगला स्टॉप ज्वालामुखी रोड स्टेशन पर है। इस बीच में अनेकों छोटे छोटे स्टेशन आते हैं और जब यह ट्रेन उन स्टेशन पर बिना रुके गुजरती है तो उसके आनंद का एहसास केवल उसे ही हो सकता है जिसने इस ट्रेन में बैठकर यात्रा की हो। 

Friday, March 22, 2019

Bateshwar Temaple Group



बटेश्वर मंदिर समूह - मध्य प्रदेश


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विमल के कहे अनुसार अब हम अपने अपने घरों की तरफ बढ़ रहे थे। दोपहर के तीन बज चुके थे और कुछ ही समय बाद शाम होने वाली थी। विमल और लोकेश को आगरा निकलना था और मुझे मथुरा। पढ़ावली से निकलकर पीछे की ओर एक रास्ता जाता है जो बटेश्वर के प्राचीन मंदिर समूह तक पहुंचाता है। यह हमारा आखिरी पड़ाव था जिसके बाद हमें घर के लिए रवाना होना ही था। पढ़ावली से बटेश्वर मंदिर समूह की दूरी केवल 1 किमी है। हम जल्द ही यहाँ पहुँच गए। अपनी बाइक बाहर ही खड़ी करके हम अंदर पहुंचे तो एक खूबसूरत बगीचा हमारे सामने था और उसके सामने था प्राचीन मंदिरों का वो समूह जिसे देखने के लिए ही हम यहाँ इतनी दूर आये थे। 

Padhavali Fort


पढ़ावली - दशवीं शताब्दी का एक खंडित शिव मंदिर 


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     मितावली से ही कुछ दूर ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ सी दिखने लगी थीं। किसी ने हमें बताया कि उन पहाड़ियों के उसपार ग्वालियर की सीमा शुरू हो जाती है और मुरैना की समाप्त।  ये सुनते ही विमल मुझपर झर्राया - तू हमें आखिर धीरे धीरे करके ग्वालियर तक ले ही आया, अब बहुत हो चुका अब सीधे घर का रास्ता पकड़ते हैं। मैं जानता था अभी यहाँ बहुत ऐसा है जिसे ढूँढना और देखना बाकी था और मैं किसी भी हालत में इस खोज को अधूरा छोड़कर जाने वाला नहीं था परन्तु अपने दोस्त को विश्वास दिलाना और उसकी चिंता समाप्त करना भी मेरा ही कर्तव्य था, इसलिए मैंने उसे गूगल में हाईवे तक पहुँचने का रास्ता दिखाया जो ठीक उन पहाड़ियों के बराबर से हाईवे तक जा रहा था। घर की तरफ जाने वाले रास्ते को देखकर विमल संतुष्ट हो गया और उसे यकीन हो गया कि हम घर की तरफ ही बढ़ रहे हैं बस रास्ते में जो भी ऐसी जगह मिलेगी उसे देखते हुए जायेंगे। 

Mitaoli


चौंसठ योगिनी - इकत्तरसो महादेव मंदिर 


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      काकनमठ मंदिर की यात्रा करने के बाद अब हमारा अगला लक्ष्य था मुरैना के मितावली स्थित इकत्तरसो महादेव मंदिर को देखना जो चौंसठ योगिनी मंदिर में से एक है तथा इसकी संरचना के आधार पर ही आज हमारे देश की संसद भवन का निर्माण हुआ है। यह मंदिर काकनमठ से दूर पूर्व - दक्षिण दिशा में करीब 20 किमी दूर स्थित है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले हम सिहोनिया वापस लौटे और सिहोनिया से ख़राब से दिखने वाले एक वीरान रास्ते पर चल पड़े। होली का समय था इसलिए रास्तों में आने वाले गाँवों में ग्रामवासी रास्तों में होली खेल रहे थे, इनसे बाल बाल बचते हुए हम अपनी मंजिल  तरफ बढ़ते ही रहे। 

Kankanmath Temple



मैं काकनमठ हूँ 



      चम्बल नदी के आसपास के बीहड़ों में प्राचीनकाल से ही मानवों का बसेरा रहा है चाहे ये बीहड़ देखने में कितने  भयावह क्यों ना लगें परन्तु मनुष्य एक ऐसी प्रजाति है जो धरती के  किसी भी भाग में अपने जीवन यापन की राह ढूंढ ही लेता है। सदियों से चम्बल के बीहड़ों में अनेकों सभ्यताओं का जन्म हुआ, अनेकों शासकों ने अपने किले, अपने महल और अपने राज्य यहाँ स्थापित किये और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने और आने वाली पीढ़ियों को अपने वजूद, अपने काल और अपनी संस्कृति का सन्देश देने के लिए अनेकों मंदिरों, भवनों और इमारतों का निर्माण कराया।

     इन्हीं वंशों में एक काल था कछवाहा वंश के राजाओं का, जिन्होंने चम्बल के दूसरी तरफ एक विशाल राज्य का निर्माण किया और अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया। गुजरते हुए वक़्त के साथ राजा, उनकी सेना और उनका राज्य समाप्त हो गया किन्तु उनके बनवाये हुए मंदिर और इमारतें आज भी उनकी बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण बनकर जीवित हैं। 

Sunday, March 3, 2019

Bhusaval Junction AND Goa Express

भुसावल जंक्शन और गोवा एक्सप्रेस 


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     मैं जामनेर से मारुती ओमनी वन से भुसावल पहुँचा। इस वक़्त दोपहर के बारह बजे हुए थे और मेरी वापसी की ट्रेन गोवा एक्सप्रेस जिसमे मैंने तत्काल में रिजर्वेशन कराया था 1 घंटे बाद आने वाली थी। वैन वाले ने मुझे स्टेशन के नजदीक ही उतारा था और यहीं स्टेशन के बराबर में बस स्टैंड भी था। मैं जब रेलवे स्टेशन के सामने पहुँचा तो मेरी नजर अपने देश के लहराते हुए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगें पर पड़ी, बिना देर किये मेरा हाथ अपने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने के लिए उठ गया और मन एक बार फिर प्रसन्न हो गया। मेरा जूता आगे से काफी उधड़ चुका था इसलिए एक मोची की दुकान पर अपने जूतों की सिलाई कराइ 40 मिनट बर्बाद हुए। 

      अब ट्रेन आने में मात्र 20 मिनट ही बचे थे जबकि मुझे अभी नहा धोकर तैयार भी होना था क्योंकि मैं कल अमरावती में ही नहाया था, महाराष्ट्र की इस भीषण गर्मी में बिना नहाये हुए 24 घंटे से भी ऊपर हो चुके थे। मैं सीधे स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में गया और नहा धोकर तैयार होने ही वाला था कि तभी एनाउंस हुआ कि गोवा एक्सप्रेस 4 नंबर प्लेटफॉर्म पर आ चुकी है। मैं बिना बेल्ट बांधे ही और बिना बैग तैयार किये सीधे 4 नंबर प्लेटफोर्म पर पहुँचा। ट्रेन अपने निर्धारित समय पर स्टेशन पर पहुँच चुकी थी। मेरा रिजर्वेशन एस 8 कोच में था। सीट पर पहुंचकर मैं पूर्ण रूप से तैयार हुआ और स्वयं को तरोताजा महसूस किया। 

Jamner

पाचोरा से जामनेर नैरोगेज रेल यात्रा 




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     मच्छरों की वजह से रात भर सो नहीं सका इसलिए सुबह भी जल्द ही उठ गया और रेलवे पुल से उतर कर स्टेशन के बाहर आया। चाय वालों ने अपनी अपनी दुकानें खोल लीं थी और चाय की महक आसपास के वातावरण में इसकदर फैला दी थी कि कभी चाय ना पीने वाला इंसान भी उस महक को सूँघकर एकबार चाय पीने अवश्य आये। मैं तो प्रतिदिन सुबह की चाय पीता हूँ तो इस महक के साथ मैं भी खिंचा चला गया एक चाय की दुकान पर और देखा आजकल 1 घूँट वाले कप बाजार में उपलब्ध हैं जिनमें चाय की कीमत 7 रूपये तो लाजमी है कहीं गलती से आपने कह दिया कि एक कप स्पेशल चाय,  तो इसी कप की कीमत सीधे दस रूपये पर पहुँच जाती है। 

Pachora Junction

पाचोरा जंक्शन पर एक रात  




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     अब वक़्त हो चला था अपनी नई मंजिल की तरफ बढ़ने का, मतलब अब मुझे पाचोरा की तरफ प्रस्थान करना था। इसलिए मैं मुर्तिजापुर के बाजार से घूमकर स्टेशन वापस लौटा तो मैंने उन्हीं साईं रूप धारी बाबा को देखा जो कुछ देर पहले मेरे साथ अचलपुर वाली ट्रेन से आये थे। वो बाबा बाजार में जाकर मदिरा का सेवन करके स्टेशन लौटे और एक खम्भे से टकराकर गिर पड़े। स्थानीय लोगों ने उनकी मदद करने की कोशिश  बाबा ने वहीँ लेटे रहकर आराम करना उचित समझा। हालाँकि खम्भे से टकराकर बाबा का काफी खून भी निकला था  अंगूर की बेटी सारे गम भुला देती है।

Saturday, March 2, 2019

Shakuntla Railway

शकुंतला रेलवे की एक यात्रा 


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      अब वक़्त हो चला था नैरो गेज की इस ट्रेन में यात्रा करने का जिसके लिए ही मैं यहाँ आया था, इस रुट पर यात्रा करने का एक अलग ही उत्साह मेरे मन में था। टिकटघर से 15 रूपये देकर मुर्तिजापुर की टिकट लेकर मैं ट्रेन में सवार हो गया और एक लम्बी सीटी बजाकर और एक जोरदार झटका लेकर ट्रेन अचलपुर से रवाना हो चली। टोपी वाला रेलवे कर्मचारी ट्रेन के चलने से पहले ही स्टेशन से थोड़ी दूर स्थित रेलवे फाटक पर पहुँच चुका था जो अचलपुर-परतपाड़ा मार्ग पर स्थित था। उसे यहीं रह जाते देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि अब कोई मुझे फोटो खींचने से रोकने वाला नहीं होगा। 

Achalpur Railway Station


अचलपुर रेलवे स्टेशन 





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      अचलपुर किले से निकलने के बाद ऑटो वाले भाई ने मुझे अचलपुर रेलवे स्टेशन के बाहर छोड़ दिया। ऑटो वाले भाई से काफी देर बात करने के बाद एक अपनेपन जैसा नाता सा जुड़ गया था और इसका एहसास तब हुआ जब हम दोनों एक दूसरे दूर होने लगे थे। उसके जाने से पहले ही मैंने स्टेशन पर बने टिकटघर में बैठे बाबू से पूछ लिया था कि ट्रेन कितने बजे तक आयेगी। बाबू ने कहा अभी दस बजे हैं दो घण्टे बाद, मतलब बारह बजे तक। टिकटबाबू के इतना कहते ही मेरे दिल वो सुकून प्राप्त हुआ जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। अब मुझे पक्का यकीन हो गया था कि ट्रेन तो आएगी और आखिरकार मेरे यहाँ आने का मकसद पूर्ण हो गया था। ऑटो वाले भाई को विदा कर मैं स्टेशन पर आकर बैठ गया। 

Achalpur Fort



अचलपुर किला 


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     मैं अमरावती से अचलपुर के लिए बस द्वारा रवाना हो चुका था और इस बस ने मात्र एक घंटे में मुझे अचलपुर पहुँचा दिया। अचलपुर, महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त में अमरावती से 50 किमी उत्तर दिशा में स्थित है। यह एक प्राचीन शहर है जो एक किले के परकोटे के अंदर बसा हुआ है, ब्रिटिश कालीन समय में अंग्रेज़ इसे एलिचपुर कहा करते थे जो कालांतर में अचलपुर कहलाता है। अचलपुर से 5 किमी दूर परतपाड़ा इसका जुड़वाँ शहर है जो अमरावती से चिकलधरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, यहाँ से सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखला भी दिखाई देने लगती है जिसपर मेलघाट के जंगल और मध्य प्रदेश की सीमा स्थित है। बस ने मुझे अचलपुर के मुख्य चौराहे पर छोड़ दिया और वापस अमरावती जाने के लिए खड़ी हो गई। मुझे यहाँ से रेलवे स्टेशन जाना था परन्तु उससे पहले मैं यहाँ स्थित किला देखना चाहता था। 

Amravati

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

  यात्रा का केंद्र बिंदु  - अमरावती 


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     अकोला से मैं अमरावती एक्सप्रेस में बैठ गया और इमरजेंसी खिड़की वाली सीट पर अपना स्थान ग्रहण किया। रेलवे के क्रिस ऍप में जब शकुंतला रेलवे का कोई भी टाइम शो नहीं हुआ तो मुझे लगा कि शायद अचलपुर जाने वाली नेरोगेज की ट्रेन बंद गई होगी परन्तु मुझे अपने बनाये यात्रा रूट के हिसाब से ही चलना था। अगला स्टेशन मुर्तिजापुर ही है और जब ट्रेन यहाँ पहुँची तो मेरी नजरों ने उस नेरोगेज की ट्रेन को तलाश करना शुरू कर दिया। वो सामने ही खड़ी थी पर पता नहीं जाएगी भी कि नहीं, बस यही सोचकर मैं ट्रेन से नहीं उतरा और इसी ट्रैन से अमरावती तक जाने का फैसला कर लिया। 

Akola Railway Station


अकोला रेलवे स्टेशन पर एक सुबह
2 मार्च 2019

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     मैं रात को गोंदिया से 12812 हटिया - मुंबई एक्सप्रेस में बैठा और सुबह चार बजे अकोला पहुँच गया। ट्रेन से उतरा तो ठण्ड सी लगने लगी, सीधे चाय की स्टाल पर गया। चाय पीते पीते मेरी नजर एक तेंदुए पर पड़ी। एक बार को तो मुझे लगा कि असली है पर उसके आसपास लगी रेलिंग देखकर मैं समझ गया यह एक तेंदुएं का बुत है जो काटेपूर्णा सेंचुरी में पर्यटकों को स्वागत पर बुलाता है। देखने में एकदम असली लगने वाले इस बुत को मैं देखता ही रहा और जब मन भर गया तो आगे चल पड़ा। स्टेशन की दीवारों पर मेलघाट टाइगर रिज़र्व के शानदार चित्र बने हुए हैं, इन्हें देखने पर एक बार को तो यही लगता है कि हम रेलवे स्टेशन पर नहीं बल्कि मेलघाट के जंगलों में हैं।   

Friday, March 1, 2019

Nagbhir to Gondia



विदर्भ की यात्रायें 
नागभीड़ से गोंदिया पैसेंजर रेल यात्रा 

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    इतवारी से आई हुई नेरो गेज पैसेंजर का इंजिन आगे से हटाकर पीछे लगा दिया गया और यह वापस इतवारी  जाने के लिए तैयार थी। अब मैं यहाँ से बल्लारशाह से आने वाली ब्रॉड गेज की लाइन की पैसेंजर से गोंदिया तक  जाऊँगा, जो यहाँ साढे चार बजे आयेगी और अभी 2 बजे हैं, यानी पूरा ढाई घंटा है अभी मेरे पास। नागभीड स्टेशन शहर से दूर एकांत क्षेत्र में स्थित है यह किसी ज़माने में नेरो गेज लाइन का मुख्य जंक्शन स्टेशन था जहाँ से ट्रेन नागपुर, गोंदिया और राजोली तक जाती थी, बाद में इसे चंदा फोर्ट तक बढ़ा दिया गया। सन 1992  इसे चंदा फोर्ट से लेकर गोंदिया तक नेरो गेज से ब्रॉड गेज में बदल दिया गया परन्तु नागपुर से नागभीड रेल खंड आज भी नेरो गेज ही है। कुछ साल पहले नागपुर से इतवारी बीच नैरो गेज ट्रैक को ब्रॉड गेज में बदल दिया गया और नागपुर से नागभीड जाने वाली नैरो गेज की ट्रेनों का इतवारी से संचालन किया जाने लगा।

Nagpur & Nagbhir

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से नागपुर और नागभीड़  रेल यात्रा 

    आज मैं फिर से एक साल बाद अपनी दक्षिण यात्रा पर रवाना हुआ, इस बार मेरी यह यात्रा विदर्भ की ओर थी। महाराष्ट्र राज्य में नागपुर, चंद्रपुर, गोंदिया, अमरावती, यवतमाल और अकोला के आसपास का क्षेत्र भारत का विदर्भ प्रान्त कहलाता है और इसबार मेरी यात्रा लगभग इन्ही जिलों में पूरी होनी थी। इसबार मेरी यात्रा का उद्देश्य सिर्फ रेल यात्रा पर आधारित था, जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख में नैरो गेज रेलवे लाइन्स का वर्णन किया था जिनमे तीन नैरो गेज लाइन ऐसी थीं जो आज भी महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त में पूर्ण रूप से सुचारु हैं। मुझे इन्ही तीनों रेलवे लाइन पर यात्रा करनी है और यही मेरी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी है। 

Thursday, February 28, 2019

भारत में नैरो गेज रेलवे


भारत में नैरो गेज रेलवे 


     इस नई साल में यह दूसरा अवसर था जब मुझे फिर से कोई यात्रा करनी थी किन्तु अबकी बार की यह यात्रा किसी एक स्थान की ना होकर केवल रेल यात्रा को ही समर्पित थी, भारतीय रेलवे के मानचित्र के अनुसार मैंने उन सभी स्थानों खोज की जहाँ आज भी नैरो गेज और मीटर गेज की रेलवे लाइन सुचारु थीं। जब मैंने इन रेलवे लाइन की खोज की तो पाया कि पहले के मुकाबले नैरोगेज बहुत ही सिमट कर रह गई है और उसकी जगह या तो बड़ी लाइन मतलब ब्रॉड गेज ले चुकी है या फिर वो फाइनल ही बंद हो चुकी है। मीटर गेज  की लाइन तो पूर्ण रूप से समाप्त  होने की कगार पर है जिसका कभी देश के अधिकांश इलाकों में जाल बिछा रहता था। मैं इस बार हेरिटेज लाइनों को छोड़कर उन सभी नैरो गेज पर यात्रा करना चाहता था जिनका संचालन अब अल्पकालीन है। 
जिनमें प्रमुख कुछ नैरोगेज रेलवे लाइन  निम्न लिखित हैं -

मीटर गेज के साथ मेरे अनुभव

मीटर गेज के साथ मेरे अनुभव 

    भारत में कभी मीटर गेज की ट्रेनों का बोलबाला था इनका जाल उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैला हुआ था इनमें अधिकतर कुछ ऐसी ट्रेनें भी थीं जो बहुत लम्बी दूरी की यात्रा करती थीं जिनमें राजस्थान की राजधानी जयपुर से चलकर दुसरे दिन महाराष्ट्र के पूर्णा जाने वाली मीनाक्षी एक्सप्रेस प्रमुख थी। मैंने कभी इस ट्रेन में यात्रा नहीं की थी, किन्तु आज भारतीय रेलवे के इतिहास में इस ट्रेन का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। मैं बचपन से आगरा में ही रहा हूँ और मैंने आगरा फोर्ट से गोंडा जाने वाली गोकुल एक्सप्रेस में अनगिनत यात्रायें की हैं, आगरा फोर्ट से चलने वाली मीटर गेज की निम्न ट्रेनों को कभी नहीं भूल सकता जो निम्न हैं -

Wednesday, January 23, 2019

Kumud Van



कदर वन या कुमुद वन 

यूँ तो ब्रज का एक एक भाग भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से परिपूर्ण है किन्तु ब्रज में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसी दिव्य लीलाएँ की हैं जिनसे वह स्थान ब्रज के मुख्य धाम कहलाते हैं, इनमें से ही एक हैं ब्रज के द्वादश वन अर्थात बारह वन। 
ब्रज के बारह वन निम्न प्रकार हैं -

  1. मधुवन   
  2. तालवन 
  3. कुमुदवन 
  4. बहुलावन 
  5. काम्यवन 
  6. खदिर वन 
  7. वृन्दावन 
  8. भद्रवन 
  9. भांडीर वन 
  10. बेलवन 
  11. लोहवन 
  12. महावन 
इन सभी वनों में भगवान श्रीकृष्ण ने अलग अलग दिव्य लीलाएँ की हैं। बहुलावन की यात्रा मैं पहले ही कर चुका  था इसलिए अब मुझे तलाश थी कुमुदवन की। मैंने सुन रखा था कि कुमुदवन मथुरा से सौंख जाने वाले रास्ते पर कहीं है, मैं कई बार कुमुदवन की तलाश में वहां गया भी, मगर बड़े ही आश्चर्य की बात है भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े इस स्थान के बारे में ब्रजवासियों को ही नहीं पता था कि उनके आसपास कोई कुमुदवन नाम का स्थान भी है। मैंने कई बार गूगल मैप में इसे खोजने की कोशिश की, परन्तु वहां भी कुमुदवन का कोई जिक्र नहीं था परन्तु मेरा मन नहीं माना, मुझे जितनी असफलताएँ मिलती जा रही थी, उतना ही मेरा कुमुदवन को खोजने विश्वास मजबूत होता जा रहा था और वो कहते हैं ना कि विश्वास मजबूत हो तो ढूँढने से भगवान भी मिल जाते हैं अंत में आखिरकार मैंने कुमुदवन को खोज ही लिया। 

कुमुदवन :- कुमुदवन को आज कदरवन के नाम से जाना जाता है और यह मथुरा जिले का एक ग्राम है। प्राचीनकाल में यहाँ कुमुद के फूल बहुतायात मात्रा में पाये जाते थे जिनकी सुगंध के कारण यहाँ का वातावरण काफी रमणीक और सुगन्धित होता था। यह स्थान प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है, भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अपने बड़े भाई दाऊ भैया और ग्वालवालों के साथ गौचारण करते समय नित्य नई नई क्रीड़ाएँ किया करते थे। इस वन के अंदर अनेक तरह के वृक्ष तथा कुंड स्थित थे जिससे यहाँ का वातावरण सदैव हराभरा और रमणीय रहता था। आज भी यहाँ आकर और यहाँ के वातावरण को देखकर मन को असीम आनंद प्राप्त होता है। 

यहाँ आज बहुत बड़ा कुंड स्थित है जिसे कुमुदकुण्ड कहा जाता है। ब्रज विकास ट्रस्ट द्वारा इसका शानदार  सुंदरीकरण कराया गया है।  मैं इस कुंड के किनारे एक नीम के पेड़ के नीचे काफी देर तक बैठा रहा और सोचता रहा कि आज मैं उस स्थान पर हूँ जहाँ कभी मेरे आराध्य भगवान कृष्ण ने अपने ग्वालवालों के साथ नए नए खेल खेले होंगे और शायद आज भी बालरूप में यहाँ आकर अपने उनदिनों की यादों को ताजा कर लेते होंगे। मैं ऐसा सोच ही रहा था कि तभी एक गाड़ी मेरे नजदीक आकर रुकी और इसमें से कुछ महिलायें और वृद्ध जन बाहर आये और कुमुदवन को निहारने लगे। यह गुजराती लोग थे जो गुजरात से यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों का भृमण कर रहे थे। 

कुमुदकुण्ड के अलावा यहाँ कुमुदबिहारी जी का शानदार मंदिर स्थित है जो कुमुदकुण्ड के नजदीक ही बना हुआ है और इसके ठीक बराबर में कपिलमुनि का मंदिर भी स्थित है। माना जाता है कि कपिल मुनि ने इस स्थान पर बैठकर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया था और काफी समय कुमुदवन में रहकर व्यतीत किया था। कहते हैं ब्रज में ही सारे तीर्थ स्थित हैं इसलिए कहा भी जाता है कि 'चारों धामों से निराला ब्रजधाम कि दर्शन करि लेओ जी'। कपिल मुनि के यहाँ तपस्या करने के कारण कुमुदवन को गंगासागर की महत्ता प्राप्त हुई। अगर कोई मनुष्य अपने जीवनकाल में गंगासागर की यात्रा पर नहीं जा पाता और वो अगर ब्रज में आकर कुमुदवन के दर्शन कर ले तो उसे गंगासागर की यात्रा के समान ही पुण्य प्राप्त होता है। 

इसके अलावा यहाँ महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक भी है और उसके ठीक सामने चैतन्य महाप्रभु जी की भी बैठक स्थित है। इसप्रकार दोनों महाप्रभुओं के अनुयायी यहाँ आकर अपने अपने महाप्रभुओं की भक्ति में लीन  हो सकते हैं और कुछ समय यहाँ रहकर सेवा भी कर सकते हैं। 

कुमुदवन की पहली लोकेशन 

कुमुदवन की ओर 

कुमुदकुण्ड 

कुमुदकुण्ड 

कुमुदकुण्ड 


कुमुदकुण्ड 

कपिलमुनि जी का मंदिर 

महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक 



श्री कुमुदबिहारी जी मंदिर 

चैतन्य महाप्रभु जी की बैठक 

* कुमुद का फूल 


  

धन्यवाद 

*विषय उपयोगिता हेतु गूगल से लिया गया। 


ब्रज के अन्य दार्शनिक स्थल