Friday, March 22, 2019

Bateshwar Temaple Group



बटेश्वर मंदिर समूह - मध्य प्रदेश


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विमल के कहे अनुसार अब हम अपने अपने घरों की तरफ बढ़ रहे थे। दोपहर के तीन बज चुके थे और कुछ ही समय बाद शाम होने वाली थी। विमल और लोकेश को आगरा निकलना था और मुझे मथुरा। पढ़ावली से निकलकर पीछे की ओर एक रास्ता जाता है जो बटेश्वर के प्राचीन मंदिर समूह तक पहुंचाता है। यह हमारा आखिरी पड़ाव था जिसके बाद हमें घर के लिए रवाना होना ही था। पढ़ावली से बटेश्वर मंदिर समूह की दूरी केवल 1 किमी है। हम जल्द ही यहाँ पहुँच गए। अपनी बाइक बाहर ही खड़ी करके हम अंदर पहुंचे तो एक खूबसूरत बगीचा हमारे सामने था और उसके सामने था प्राचीन मंदिरों का वो समूह जिसे देखने के लिए ही हम यहाँ इतनी दूर आये थे। 

Padhavali Fort


पढ़ावली - दशवीं शताब्दी का एक खंडित शिव मंदिर 


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     मितावली से ही कुछ दूर ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ सी दिखने लगी थीं। किसी ने हमें बताया कि उन पहाड़ियों के उसपार ग्वालियर की सीमा शुरू हो जाती है और मुरैना की समाप्त।  ये सुनते ही विमल मुझपर झर्राया - तू हमें आखिर धीरे धीरे करके ग्वालियर तक ले ही आया, अब बहुत हो चुका अब सीधे घर का रास्ता पकड़ते हैं। मैं जानता था अभी यहाँ बहुत ऐसा है जिसे ढूँढना और देखना बाकी था और मैं किसी भी हालत में इस खोज को अधूरा छोड़कर जाने वाला नहीं था परन्तु अपने दोस्त को विश्वास दिलाना और उसकी चिंता समाप्त करना भी मेरा ही कर्तव्य था, इसलिए मैंने उसे गूगल में हाईवे तक पहुँचने का रास्ता दिखाया जो ठीक उन पहाड़ियों के बराबर से हाईवे तक जा रहा था। घर की तरफ जाने वाले रास्ते को देखकर विमल संतुष्ट हो गया और उसे यकीन हो गया कि हम घर की तरफ ही बढ़ रहे हैं बस रास्ते में जो भी ऐसी जगह मिलेगी उसे देखते हुए जायेंगे। 

Mitaoli


चौंसठ योगिनी - इकत्तरसो महादेव मंदिर 


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      काकनमठ मंदिर की यात्रा करने के बाद अब हमारा अगला लक्ष्य था मुरैना के मितावली स्थित इकत्तरसो महादेव मंदिर को देखना जो चौंसठ योगिनी मंदिर में से एक है तथा इसकी संरचना के आधार पर ही आज हमारे देश की संसद भवन का निर्माण हुआ है। यह मंदिर काकनमठ से दूर पूर्व - दक्षिण दिशा में करीब 20 किमी दूर स्थित है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले हम सिहोनिया वापस लौटे और सिहोनिया से ख़राब से दिखने वाले एक वीरान रास्ते पर चल पड़े। होली का समय था इसलिए रास्तों में आने वाले गाँवों में ग्रामवासी रास्तों में होली खेल रहे थे, इनसे बाल बाल बचते हुए हम अपनी मंजिल  तरफ बढ़ते ही रहे। 

Kankanmath Temple



मैं काकनमठ हूँ 



      चम्बल नदी के आसपास के बीहड़ों में प्राचीनकाल से ही मानवों का बसेरा रहा है चाहे ये बीहड़ देखने में कितने  भयावह क्यों ना लगें परन्तु मनुष्य एक ऐसी प्रजाति है जो धरती के  किसी भी भाग में अपने जीवन यापन की राह ढूंढ ही लेता है। सदियों से चम्बल के बीहड़ों में अनेकों सभ्यताओं का जन्म हुआ, अनेकों शासकों ने अपने किले, अपने महल और अपने राज्य यहाँ स्थापित किये और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने और आने वाली पीढ़ियों को अपने वजूद, अपने काल और अपनी संस्कृति का सन्देश देने के लिए अनेकों मंदिरों, भवनों और इमारतों का निर्माण कराया।

     इन्हीं वंशों में एक काल था कछवाहा वंश के राजाओं का, जिन्होंने चम्बल के दूसरी तरफ एक विशाल राज्य का निर्माण किया और अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया। गुजरते हुए वक़्त के साथ राजा, उनकी सेना और उनका राज्य समाप्त हो गया किन्तु उनके बनवाये हुए मंदिर और इमारतें आज भी उनकी बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण बनकर जीवित हैं। 

Sunday, March 3, 2019

Bhusaval Junction AND Goa Express

भुसावल जंक्शन और गोवा एक्सप्रेस 


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     मैं जामनेर से मारुती ओमनी वन से भुसावल पहुँचा। इस वक़्त दोपहर के बारह बजे हुए थे और मेरी वापसी की ट्रेन गोवा एक्सप्रेस जिसमे मैंने तत्काल में रिजर्वेशन कराया था 1 घंटे बाद आने वाली थी। वैन वाले ने मुझे स्टेशन के नजदीक ही उतारा था और यहीं स्टेशन के बराबर में बस स्टैंड भी था। मैं जब रेलवे स्टेशन के सामने पहुँचा तो मेरी नजर अपने देश के लहराते हुए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगें पर पड़ी, बिना देर किये मेरा हाथ अपने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने के लिए उठ गया और मन एक बार फिर प्रसन्न हो गया। मेरा जूता आगे से काफी उधड़ चुका था इसलिए एक मोची की दुकान पर अपने जूतों की सिलाई कराइ 40 मिनट बर्बाद हुए। 

      अब ट्रेन आने में मात्र 20 मिनट ही बचे थे जबकि मुझे अभी नहा धोकर तैयार भी होना था क्योंकि मैं कल अमरावती में ही नहाया था, महाराष्ट्र की इस भीषण गर्मी में बिना नहाये हुए 24 घंटे से भी ऊपर हो चुके थे। मैं सीधे स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में गया और नहा धोकर तैयार होने ही वाला था कि तभी एनाउंस हुआ कि गोवा एक्सप्रेस 4 नंबर प्लेटफॉर्म पर आ चुकी है। मैं बिना बेल्ट बांधे ही और बिना बैग तैयार किये सीधे 4 नंबर प्लेटफोर्म पर पहुँचा। ट्रेन अपने निर्धारित समय पर स्टेशन पर पहुँच चुकी थी। मेरा रिजर्वेशन एस 8 कोच में था। सीट पर पहुंचकर मैं पूर्ण रूप से तैयार हुआ और स्वयं को तरोताजा महसूस किया। 

Jamner

पाचोरा से जामनेर नैरोगेज रेल यात्रा 




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     मच्छरों की वजह से रात भर सो नहीं सका इसलिए सुबह भी जल्द ही उठ गया और रेलवे पुल से उतर कर स्टेशन के बाहर आया। चाय वालों ने अपनी अपनी दुकानें खोल लीं थी और चाय की महक आसपास के वातावरण में इसकदर फैला दी थी कि कभी चाय ना पीने वाला इंसान भी उस महक को सूँघकर एकबार चाय पीने अवश्य आये। मैं तो प्रतिदिन सुबह की चाय पीता हूँ तो इस महक के साथ मैं भी खिंचा चला गया एक चाय की दुकान पर और देखा आजकल 1 घूँट वाले कप बाजार में उपलब्ध हैं जिनमें चाय की कीमत 7 रूपये तो लाजमी है कहीं गलती से आपने कह दिया कि एक कप स्पेशल चाय,  तो इसी कप की कीमत सीधे दस रूपये पर पहुँच जाती है। 

Pachora Junction

पाचोरा जंक्शन पर एक रात  




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     अब वक़्त हो चला था अपनी नई मंजिल की तरफ बढ़ने का, मतलब अब मुझे पाचोरा की तरफ प्रस्थान करना था। इसलिए मैं मुर्तिजापुर के बाजार से घूमकर स्टेशन वापस लौटा तो मैंने उन्हीं साईं रूप धारी बाबा को देखा जो कुछ देर पहले मेरे साथ अचलपुर वाली ट्रेन से आये थे। वो बाबा बाजार में जाकर मदिरा का सेवन करके स्टेशन लौटे और एक खम्भे से टकराकर गिर पड़े। स्थानीय लोगों ने उनकी मदद करने की कोशिश  बाबा ने वहीँ लेटे रहकर आराम करना उचित समझा। हालाँकि खम्भे से टकराकर बाबा का काफी खून भी निकला था  अंगूर की बेटी सारे गम भुला देती है।

Saturday, March 2, 2019

Shakuntla Railway

शकुंतला रेलवे की एक यात्रा 


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      अब वक़्त हो चला था नैरो गेज की इस ट्रेन में यात्रा करने का जिसके लिए ही मैं यहाँ आया था, इस रुट पर यात्रा करने का एक अलग ही उत्साह मेरे मन में था। टिकटघर से 15 रूपये देकर मुर्तिजापुर की टिकट लेकर मैं ट्रेन में सवार हो गया और एक लम्बी सीटी बजाकर और एक जोरदार झटका लेकर ट्रेन अचलपुर से रवाना हो चली। टोपी वाला रेलवे कर्मचारी ट्रेन के चलने से पहले ही स्टेशन से थोड़ी दूर स्थित रेलवे फाटक पर पहुँच चुका था जो अचलपुर-परतपाड़ा मार्ग पर स्थित था। उसे यहीं रह जाते देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि अब कोई मुझे फोटो खींचने से रोकने वाला नहीं होगा। 

Achalpur Railway Station


अचलपुर रेलवे स्टेशन 





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      अचलपुर किले से निकलने के बाद ऑटो वाले भाई ने मुझे अचलपुर रेलवे स्टेशन के बाहर छोड़ दिया। ऑटो वाले भाई से काफी देर बात करने के बाद एक अपनेपन जैसा नाता सा जुड़ गया था और इसका एहसास तब हुआ जब हम दोनों एक दूसरे दूर होने लगे थे। उसके जाने से पहले ही मैंने स्टेशन पर बने टिकटघर में बैठे बाबू से पूछ लिया था कि ट्रेन कितने बजे तक आयेगी। बाबू ने कहा अभी दस बजे हैं दो घण्टे बाद, मतलब बारह बजे तक। टिकटबाबू के इतना कहते ही मेरे दिल वो सुकून प्राप्त हुआ जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। अब मुझे पक्का यकीन हो गया था कि ट्रेन तो आएगी और आखिरकार मेरे यहाँ आने का मकसद पूर्ण हो गया था। ऑटो वाले भाई को विदा कर मैं स्टेशन पर आकर बैठ गया। 

Achalpur Fort



अचलपुर किला 


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     मैं अमरावती से अचलपुर के लिए बस द्वारा रवाना हो चुका था और इस बस ने मात्र एक घंटे में मुझे अचलपुर पहुँचा दिया। अचलपुर, महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त में अमरावती से 50 किमी उत्तर दिशा में स्थित है। यह एक प्राचीन शहर है जो एक किले के परकोटे के अंदर बसा हुआ है, ब्रिटिश कालीन समय में अंग्रेज़ इसे एलिचपुर कहा करते थे जो कालांतर में अचलपुर कहलाता है। अचलपुर से 5 किमी दूर परतपाड़ा इसका जुड़वाँ शहर है जो अमरावती से चिकलधरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, यहाँ से सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखला भी दिखाई देने लगती है जिसपर मेलघाट के जंगल और मध्य प्रदेश की सीमा स्थित है। बस ने मुझे अचलपुर के मुख्य चौराहे पर छोड़ दिया और वापस अमरावती जाने के लिए खड़ी हो गई। मुझे यहाँ से रेलवे स्टेशन जाना था परन्तु उससे पहले मैं यहाँ स्थित किला देखना चाहता था। 

Amravati

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

  यात्रा का केंद्र बिंदु  - अमरावती 


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     अकोला से मैं अमरावती एक्सप्रेस में बैठ गया और इमरजेंसी खिड़की वाली सीट पर अपना स्थान ग्रहण किया। रेलवे के क्रिस ऍप में जब शकुंतला रेलवे का कोई भी टाइम शो नहीं हुआ तो मुझे लगा कि शायद अचलपुर जाने वाली नेरोगेज की ट्रेन बंद गई होगी परन्तु मुझे अपने बनाये यात्रा रूट के हिसाब से ही चलना था। अगला स्टेशन मुर्तिजापुर ही है और जब ट्रेन यहाँ पहुँची तो मेरी नजरों ने उस नेरोगेज की ट्रेन को तलाश करना शुरू कर दिया। वो सामने ही खड़ी थी पर पता नहीं जाएगी भी कि नहीं, बस यही सोचकर मैं ट्रेन से नहीं उतरा और इसी ट्रैन से अमरावती तक जाने का फैसला कर लिया। 

Akola Railway Station


अकोला रेलवे स्टेशन पर एक सुबह
2 मार्च 2019

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     मैं रात को गोंदिया से 12812 हटिया - मुंबई एक्सप्रेस में बैठा और सुबह चार बजे अकोला पहुँच गया। ट्रेन से उतरा तो ठण्ड सी लगने लगी, सीधे चाय की स्टाल पर गया। चाय पीते पीते मेरी नजर एक तेंदुए पर पड़ी। एक बार को तो मुझे लगा कि असली है पर उसके आसपास लगी रेलिंग देखकर मैं समझ गया यह एक तेंदुएं का बुत है जो काटेपूर्णा सेंचुरी में पर्यटकों को स्वागत पर बुलाता है। देखने में एकदम असली लगने वाले इस बुत को मैं देखता ही रहा और जब मन भर गया तो आगे चल पड़ा। स्टेशन की दीवारों पर मेलघाट टाइगर रिज़र्व के शानदार चित्र बने हुए हैं, इन्हें देखने पर एक बार को तो यही लगता है कि हम रेलवे स्टेशन पर नहीं बल्कि मेलघाट के जंगलों में हैं।   

Friday, March 1, 2019

Nagbhir to Gondia



विदर्भ की यात्रायें 
नागभीड़ से गोंदिया पैसेंजर रेल यात्रा 

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    इतवारी से आई हुई नेरो गेज पैसेंजर का इंजिन आगे से हटाकर पीछे लगा दिया गया और यह वापस इतवारी  जाने के लिए तैयार थी। अब मैं यहाँ से बल्लारशाह से आने वाली ब्रॉड गेज की लाइन की पैसेंजर से गोंदिया तक  जाऊँगा, जो यहाँ साढे चार बजे आयेगी और अभी 2 बजे हैं, यानी पूरा ढाई घंटा है अभी मेरे पास। नागभीड स्टेशन शहर से दूर एकांत क्षेत्र में स्थित है यह किसी ज़माने में नेरो गेज लाइन का मुख्य जंक्शन स्टेशन था जहाँ से ट्रेन नागपुर, गोंदिया और राजोली तक जाती थी, बाद में इसे चंदा फोर्ट तक बढ़ा दिया गया। सन 1992  इसे चंदा फोर्ट से लेकर गोंदिया तक नेरो गेज से ब्रॉड गेज में बदल दिया गया परन्तु नागपुर से नागभीड रेल खंड आज भी नेरो गेज ही है। कुछ साल पहले नागपुर से इतवारी बीच नैरो गेज ट्रैक को ब्रॉड गेज में बदल दिया गया और नागपुर से नागभीड जाने वाली नैरो गेज की ट्रेनों का इतवारी से संचालन किया जाने लगा।

Nagpur & Nagbhir

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मथुरा से नागपुर और नागभीड़  रेल यात्रा 

    आज मैं फिर से एक साल बाद अपनी दक्षिण यात्रा पर रवाना हुआ, इस बार मेरी यह यात्रा विदर्भ की ओर थी। महाराष्ट्र राज्य में नागपुर, चंद्रपुर, गोंदिया, अमरावती, यवतमाल और अकोला के आसपास का क्षेत्र भारत का विदर्भ प्रान्त कहलाता है और इसबार मेरी यात्रा लगभग इन्ही जिलों में पूरी होनी थी। इसबार मेरी यात्रा का उद्देश्य सिर्फ रेल यात्रा पर आधारित था, जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख में नैरो गेज रेलवे लाइन्स का वर्णन किया था जिनमे तीन नैरो गेज लाइन ऐसी थीं जो आज भी महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त में पूर्ण रूप से सुचारु हैं। मुझे इन्ही तीनों रेलवे लाइन पर यात्रा करनी है और यही मेरी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी है। 

Thursday, February 28, 2019

भारत में नैरो गेज रेलवे


भारत में नैरो गेज रेलवे 


     इस नई साल में यह दूसरा अवसर था जब मुझे फिर से कोई यात्रा करनी थी किन्तु अबकी बार की यह यात्रा किसी एक स्थान की ना होकर केवल रेल यात्रा को ही समर्पित थी, भारतीय रेलवे के मानचित्र के अनुसार मैंने उन सभी स्थानों खोज की जहाँ आज भी नैरो गेज और मीटर गेज की रेलवे लाइन सुचारु थीं। जब मैंने इन रेलवे लाइन की खोज की तो पाया कि पहले के मुकाबले नैरोगेज बहुत ही सिमट कर रह गई है और उसकी जगह या तो बड़ी लाइन मतलब ब्रॉड गेज ले चुकी है या फिर वो फाइनल ही बंद हो चुकी है। मीटर गेज  की लाइन तो पूर्ण रूप से समाप्त  होने की कगार पर है जिसका कभी देश के अधिकांश इलाकों में जाल बिछा रहता था। मैं इस बार हेरिटेज लाइनों को छोड़कर उन सभी नैरो गेज पर यात्रा करना चाहता था जिनका संचालन अब अल्पकालीन है। 
जिनमें प्रमुख कुछ नैरोगेज रेलवे लाइन  निम्न लिखित हैं -

मीटर गेज के साथ मेरे अनुभव

मीटर गेज के साथ मेरे अनुभव 

    भारत में कभी मीटर गेज की ट्रेनों का बोलबाला था इनका जाल उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैला हुआ था इनमें अधिकतर कुछ ऐसी ट्रेनें भी थीं जो बहुत लम्बी दूरी की यात्रा करती थीं जिनमें राजस्थान की राजधानी जयपुर से चलकर दुसरे दिन महाराष्ट्र के पूर्णा जाने वाली मीनाक्षी एक्सप्रेस प्रमुख थी। मैंने कभी इस ट्रेन में यात्रा नहीं की थी, किन्तु आज भारतीय रेलवे के इतिहास में इस ट्रेन का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। मैं बचपन से आगरा में ही रहा हूँ और मैंने आगरा फोर्ट से गोंडा जाने वाली गोकुल एक्सप्रेस में अनगिनत यात्रायें की हैं, आगरा फोर्ट से चलने वाली मीटर गेज की निम्न ट्रेनों को कभी नहीं भूल सकता जो निम्न हैं -

Wednesday, January 23, 2019

Kumud Van



कदर वन या कुमुद वन 

यूँ तो ब्रज का एक एक भाग भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से परिपूर्ण है किन्तु ब्रज में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसी दिव्य लीलाएँ की हैं जिनसे वह स्थान ब्रज के मुख्य धाम कहलाते हैं, इनमें से ही एक हैं ब्रज के द्वादश वन अर्थात बारह वन। 
ब्रज के बारह वन निम्न प्रकार हैं -

  1. मधुवन   
  2. तालवन 
  3. कुमुदवन 
  4. बहुलावन 
  5. काम्यवन 
  6. खदिर वन 
  7. वृन्दावन 
  8. भद्रवन 
  9. भांडीर वन 
  10. बेलवन 
  11. लोहवन 
  12. महावन 
इन सभी वनों में भगवान श्रीकृष्ण ने अलग अलग दिव्य लीलाएँ की हैं। बहुलावन की यात्रा मैं पहले ही कर चुका  था इसलिए अब मुझे तलाश थी कुमुदवन की। मैंने सुन रखा था कि कुमुदवन मथुरा से सौंख जाने वाले रास्ते पर कहीं है, मैं कई बार कुमुदवन की तलाश में वहां गया भी, मगर बड़े ही आश्चर्य की बात है भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े इस स्थान के बारे में ब्रजवासियों को ही नहीं पता था कि उनके आसपास कोई कुमुदवन नाम का स्थान भी है। मैंने कई बार गूगल मैप में इसे खोजने की कोशिश की, परन्तु वहां भी कुमुदवन का कोई जिक्र नहीं था परन्तु मेरा मन नहीं माना, मुझे जितनी असफलताएँ मिलती जा रही थी, उतना ही मेरा कुमुदवन को खोजने विश्वास मजबूत होता जा रहा था और वो कहते हैं ना कि विश्वास मजबूत हो तो ढूँढने से भगवान भी मिल जाते हैं अंत में आखिरकार मैंने कुमुदवन को खोज ही लिया। 

कुमुदवन :- कुमुदवन को आज कदरवन के नाम से जाना जाता है और यह मथुरा जिले का एक ग्राम है। प्राचीनकाल में यहाँ कुमुद के फूल बहुतायात मात्रा में पाये जाते थे जिनकी सुगंध के कारण यहाँ का वातावरण काफी रमणीक और सुगन्धित होता था। यह स्थान प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है, भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अपने बड़े भाई दाऊ भैया और ग्वालवालों के साथ गौचारण करते समय नित्य नई नई क्रीड़ाएँ किया करते थे। इस वन के अंदर अनेक तरह के वृक्ष तथा कुंड स्थित थे जिससे यहाँ का वातावरण सदैव हराभरा और रमणीय रहता था। आज भी यहाँ आकर और यहाँ के वातावरण को देखकर मन को असीम आनंद प्राप्त होता है। 

यहाँ आज बहुत बड़ा कुंड स्थित है जिसे कुमुदकुण्ड कहा जाता है। ब्रज विकास ट्रस्ट द्वारा इसका शानदार  सुंदरीकरण कराया गया है।  मैं इस कुंड के किनारे एक नीम के पेड़ के नीचे काफी देर तक बैठा रहा और सोचता रहा कि आज मैं उस स्थान पर हूँ जहाँ कभी मेरे आराध्य भगवान कृष्ण ने अपने ग्वालवालों के साथ नए नए खेल खेले होंगे और शायद आज भी बालरूप में यहाँ आकर अपने उनदिनों की यादों को ताजा कर लेते होंगे। मैं ऐसा सोच ही रहा था कि तभी एक गाड़ी मेरे नजदीक आकर रुकी और इसमें से कुछ महिलायें और वृद्ध जन बाहर आये और कुमुदवन को निहारने लगे। यह गुजराती लोग थे जो गुजरात से यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों का भृमण कर रहे थे। 

कुमुदकुण्ड के अलावा यहाँ कुमुदबिहारी जी का शानदार मंदिर स्थित है जो कुमुदकुण्ड के नजदीक ही बना हुआ है और इसके ठीक बराबर में कपिलमुनि का मंदिर भी स्थित है। माना जाता है कि कपिल मुनि ने इस स्थान पर बैठकर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया था और काफी समय कुमुदवन में रहकर व्यतीत किया था। कहते हैं ब्रज में ही सारे तीर्थ स्थित हैं इसलिए कहा भी जाता है कि 'चारों धामों से निराला ब्रजधाम कि दर्शन करि लेओ जी'। कपिल मुनि के यहाँ तपस्या करने के कारण कुमुदवन को गंगासागर की महत्ता प्राप्त हुई। अगर कोई मनुष्य अपने जीवनकाल में गंगासागर की यात्रा पर नहीं जा पाता और वो अगर ब्रज में आकर कुमुदवन के दर्शन कर ले तो उसे गंगासागर की यात्रा के समान ही पुण्य प्राप्त होता है। 

इसके अलावा यहाँ महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक भी है और उसके ठीक सामने चैतन्य महाप्रभु जी की भी बैठक स्थित है। इसप्रकार दोनों महाप्रभुओं के अनुयायी यहाँ आकर अपने अपने महाप्रभुओं की भक्ति में लीन  हो सकते हैं और कुछ समय यहाँ रहकर सेवा भी कर सकते हैं। 

कुमुदवन की पहली लोकेशन 

कुमुदवन की ओर 

कुमुदकुण्ड 

कुमुदकुण्ड 

कुमुदकुण्ड 


कुमुदकुण्ड 

कपिलमुनि जी का मंदिर 

महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी की बैठक 



श्री कुमुदबिहारी जी मंदिर 

चैतन्य महाप्रभु जी की बैठक 

* कुमुद का फूल 


  

धन्यवाद 

*विषय उपयोगिता हेतु गूगल से लिया गया। 


ब्रज के अन्य दार्शनिक स्थल 


Tuesday, January 1, 2019

Manali Trip 2019


  हिम की तलाश में - मनाली यात्रा 



सहयात्री - शारुख खान 

       आज पूरा देश नए साल के जश्न में खुश था, परन्तु मैं कहीं ना कहीं दिल से बहुत दुखी था। पिछले महीने मैंने अपने आप को पूरे माह काम में व्यस्त रखा परन्तु अब मैं थक चुका था शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी। इसलिए मैं कहीं दूर जाना चाहता था, एक ऐसी जगह जहाँ जाकर मैं अपनी रोजाना दौड़ भाग वाली जिंदगी को कुछ समय के लिए भूल जाऊँ, मुझे निजी जिंदगी की भी तकलीफ को कुछ समय के लिए अपने  दिमाग से दूर करना था, कुल मिलाकर मैं अपने दिल और दिमाग दोनों को फ्रेश करना चाहता था इसलिए मुझे एक ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ मुझे पूर्णरूपेण शांति मिल सके इसलिए मेरे मन में इसबार हिमालय का खयाल आया। मैंने अपनी जिंदगी में कभी बर्फ पड़ते हुए नहीं देखी थी इसलिए मैंने शिमला जाने का विचार बनाया।

Monday, December 17, 2018

Jait

                                                                                              

अघासुर का वधस्थल - जय कुण्ड   
नाग मंदिर 

       वृन्दावन के नजदीक हाइवे पर स्थित जैंत ग्राम, ब्रज के चौरासी कोस की परिक्रमा में आने वाला एक प्रमुख ग्राम है। यहाँ प्राचीन समय का जयकुंड स्थित है। कहा जाता है यही वो स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए कंस ने अघासुर नाम के दैत्य को भेजा था जो रिश्ते में पूतना राक्षसी का भाई भी था। अघासुर एक विशालकाय अजगर था जो इस इस स्थान पर आकर छुप गया और जब श्री कृष्ण गाय चराते हुए अपने ग्वाल वालों के साथ यहाँ पहुँचे तो अघासुर ने समस्त ग्वालवालों को निगलना शुरू कर दिया। भगवान श्री कृष्ण, अघासुर की इस चतुराई को समझ गए और अघासुर का निवाला बनने के लिए उसके सम्मुख आ गए। अघासुर ने बिना कोई पल गंवाए श्री कृष्ण को निगलना शुरू कर दिया। 

Tuesday, December 4, 2018

Kalinger Fort



कालिंजर किले की तरफ एक सफर





सहयात्री - गंगा प्रसाद त्रिपाठी जी

       पिछली साल जब सासाराम गया था तब वहां मैंने शेरशाह सूरी के शानदार मकबरे को देखा था और वहीँ से मुझे यह जानकारी भी प्राप्त हुई थी कि उसने अपना यह शानदार मक़बरा अपने जीवनकाल के दौरान ही बनबा लिया था। सम्पूर्ण भारत पर जब मुग़ल साम्राज्य का वर्चस्व कायम हो रहा था उनदिनों मुग़ल सिंहासन पर हुमाँयु का शासनकाल चल रहा था और उन्हीं दिनों हूमाँयु के पिता और मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने बिहार में एक आम सैनिक को अपनी सेना में भर्ती किया, इस सैनिक की युद्ध नीति और कुशलता को देखते हुए बाबर ने इसे अपना सेनापति और बिहार का सूबेदार नियुक्त कर दिया था। तब बाबर ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि यही आम सैनिक आगे चलकर बाबर द्वारा स्थापित किये गए मुग़ल साम्राज्य को समाप्त कर अपना राज्य स्थापित करेगा और उसके बेटे हूमाँयु को हिंदुस्तान छोड़ने पर मजबूर कर देगा।

Saturday, November 17, 2018

Bala Fort



अलवर के ऐतिहासिक स्थल और बाला किला



      करीब 2 महीने पैर में चोट लगने और प्लास्टर चढ़ा रहने के कारण मैं कहीं की यात्रा करना तो दूर अपने घर से बाहर निकल भी नहीं पा रहा था, पर आज जब दो महीने बाद मुझे प्लास्टर से मुक्ति मिली तो मैं खुद को यात्रा पर जाने से नहीं रोक पाया। दीपावली निकल चुकी थी, पिछले दिनों अपनी ननिहाल आयराखेड़ा से लौटा था और आज जब शनिवार की छुट्टी हुई तो सर्दियों में सुबह की इस सुनहरी धुप में मैंने अपनी बाइक राजस्थान की तरफ दौड़ा दी। आज संग में जाने के लिए कोई भी सहयात्री मुझे अपने साथ नहीं मिला तो मैं अकेला ही रवाना हो गया।

Saturday, September 8, 2018

Fatehpur Sikari



फतेहपुर सीकरी और सलीम चिश्ती की दरग़ाह




पिछली यात्रा - लोहागढ़ दुर्ग 

     पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान की सीमा पर स्थित आगरा शहर दुनियाभर में ताजमहल के कारण जाना जाता है परन्तु भारतीय इतिहास के अनुसार गौर किया जाये तो पता चलता है कि आगरा का अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व मुग़ल सम्राट अक़बर की वजह से है जिन्होंने ना सिर्फ यहाँ एक मजबूत किले का निर्माण कराया बल्कि इसे अपनी राजधानी भी बनाया, साथ ही अपनी मृत्यु के बाद भी उन्होंने आगरा की ही धरती को पसंद किया और अपने मरने से पूर्व ही अपना मकबरा बनवा लिया। चूँकि आगरा शहर की स्थापना सिकंदर लोदी ने की थी परन्तु आगरा का मुख्य संस्थापक सम्राट अकबर को माना गया है।

Lohagarh Fort




लोहागढ़ दुर्ग की एक यात्रा

लोहिया गेट, भरतपुर 


     मथुरा शहर से थोड़ी दूरी पर राजस्थान में भरतपुर शहर है जिसे लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, इसका प्रमुख कारण है यहाँ स्थित मजबूत दीवारों वाला किला जो हमेशा ही अजेय रहा। दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाला और हमेशा ही उनकी पहुँच दूर रहने के कारण ही इसे अजेय कहा जाता है। भरतपुर रियासत जाट राजाओं का प्रमुख गढ़ है और यहाँ बना हुआ यह किला उनकी सुरक्षा और विजय का मुख्य कारण रहा है।

     कहा जाता है इस किले की दीवारें लोहे के समान मजबूत हैं इसी वजह से इसे लोहागढ़ कहा जाता है। भरतपुर जाने वाली सरकारी बसें भी लोहागढ़ आगार के नाम से ही चलती हैं। अनेकों आक्रमण सहने के बाद भी यह किला आज भी अपनी उचित अवस्था में खड़ा हुआ है। भरतपुर को राजस्थान का पूर्वी सिंह द्धार  या प्रवेश द्धार भी कहा जाता है। 

     भरतपुर की स्थापना रुस्तम जाट द्वारा की गई थी, सन 1733 में महाराजा सूरजमल ने इस पर अधिकार कर लिया और नगर के चारों ओर एक सुरक्षित चारदीवारी का निर्माण करवाया। इसलिए भरतपुर का मुख्य संस्थापक महाराजा सूरजमल को माना जाता है और लोहागढ़ दुर्ग का निर्माणकर्ता भी। चूँकि भरतपुर का अधिकांश क्षेत्र ब्रजभूमि के अंतर्गत शामिल है इसलिए ब्रज और उसके आसपास के क्षेत्र पर महाराज सूरजमल का राज होने कारण शत्रुओं ने कभी इसतरफ अपना रुख करना उचित नहीं समझा और जिन्होंने इस तरफ रुख किया वो कहीं और रुख करने लायक ही नहीं रहे इसलिए महाराजा सूरजमल को जाट जाति का प्लेटो या अफलातून भी कहा जाता है।

Saturday, September 1, 2018

Ranthambhore Fort


रणथंभौर किला 

किला  ए रणथम्भौर 

पिछली यात्रा - शिवाड़ दुर्ग और बारहवाँ ज्योतिर्लिंग 

      शिवाड़ से लौटने के बाद मैं सवाई माधोपुर स्टेशन पहुंचा और यहाँ से बाहर निकलकर मैंने तलाश की  रणथम्भौर जाने वाले किसी साधन की। एक दुकान पर मैंने अपनी शेव बनवाई और उसी दुकानदार से रणथम्भौर जाने वाली बस के बारे में पूछा तो दुकानदार ने थोड़ा आगे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वो सामने जीपें खड़ी हैं वही रणथम्भौर जाती हैं। मैं इन जीपों तक पहुँचा तो जीप वाले ने कहा जैसे ही कुछ सवारियाँ और आजायेंगी तभी हम चल पड़ेंगे। जबतक मैं अपनी प्रिय कोल्ड्रिंक थम्सअप लेने गया तब तक काफी सवारियां जीप वाले के पास आ चुकी थी। मैंने अपना बैग पहले ही जीप की आगे वाली सीट पर रख दिया था इसलिए वहां कोई नहीं बैठा और हम रवाना हो गए ऐतिहासिक महादुर्ग रणथम्भौर की ओर। 

Shiwar Fort



शिवाड़ किला और घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग



       मानसून बीतता ही जा रहा था और इस वर्ष मेरी राजस्थान की यात्रा अभी भी अधूरी ही थी इसलिए पहले यात्रा के लिए उपयुक्त दिन निश्चित किया गया और फिर स्थान।  परन्तु इस बार मैं घर से ज्यादा दूर जाना नहीं चाहता था, बस यूँ समझ लीजिये मेरे पास समय का काफी अभाव था। यात्रा भी आवश्यक थी इसलिए इसबार रणथम्भौर जाने का प्लान बनाया मतलब सवाई माधोपुर की तरफ। यहाँ काफी ऐसी जगह थीं जो मेरे पर्यटन स्थलों की सैर की सूची में दर्ज थे। इसबार उनपर घूमने का समय आ चुका था इसलिए मैं रात को एक बजे घर से मथुरा स्टेशन के लिए निकल गया। बाइक को स्टैंड पर जमा कर मैं प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। कुछ ही समय में निजामुद्दीन से तिरुवनंतपुरम जाने वाली एक एक्सप्रेस आ गई जिससे मैं सुबह पांच बजे सवाई माधोपुर पहुँच गया।

Sunday, August 5, 2018

Bateshwar


तीर्थराज भांजा बटेश्वर धाम - आगरा 


बटेश्वर रेलवे स्टेशन 


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       अब शाम करीब ही थी और मैं अभी भी आगरा से 72 किमी दूर बाह में ही था। नौगांवा किले से लौटने के बाद अब हम भदावर की प्राचीन राजधानी बाह में थे। मैंने सुना था कि यहाँ भी एक विशाल किला है परन्तु कहाँ है यह पता नहीं था। बस स्टैंड के पास पहुंचकर राजकुमार भाई को भूख लग आई पर उनका एक उसूल था कि वो जब तक मुझे कुछ नहीं खिलाएंगे खुद भी नहीं खाएंगे इसलिए मजबूरन मुझे भी कुछ न कुछ खाना ही पड़ता था। रक्षा बंधन का त्यौहार नजदीक था इसलिए मिठाइयों की दुकानें घेवरों से सजी हुई थीं। मैंने अपने लिए घेवर लिया और भाई ने वही पुरानी समोसा और कचौड़ी। दुकानदार से ही हमने किले के बारे में और बटेश्वर के लिए रास्ता पूछा। उसने हमें बाजार के अंदर से होकर जाती हुई एक सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये रास्ता सीधे बटेश्वर के लिए गया है इसी रास्ते पर आपको बाह का किला भी देखने को मिल जायेगा। 

Noungawa Fort


नौगँवा किला - एक पुश्तैनी रियासत




पिछली यात्रा - पिनाहट किला 
   
     अटेर किला न जा पाने के कारण अब हमने बाह की तरफ अपना रुख किया। पिनाहट से एक रास्ता सीधे भिलावटी होते हुए बाह के लिए जाता है। इस क्षेत्र में अभी हाल ही में रेल सेवा शुरू हुई है जो आगरा से इटावा के लिए नया रेलमार्ग है। इस रेल लाइन का उद्घाटन भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई के समय में हुआ था किन्तु कुछ साल केंद्र में विपक्ष की सरकार आने की वजह से इस रेल मार्ग को बनाने का काम अधूरा ही रहा। अभी हाल ही में ही रेल लाइन पर रेल सेवा शुरू हुई है। यह रेल मार्ग अब हमारे सामने था, जिसे पार करना हमें मुश्किल दिखाई दे रहा था। रेलवे लाइन के नीचे से सड़क एक पुलिया के जरिये निकलती है जिसमे अभी बहुत अत्यधिक ऊंचाई तक पानी भरा हुआ था इसलिए मजबूरन हमें बाइक पटरियों के ऊपर से उठाकर निकालनी  पड़ी और हम भिलावटी गांव पार करते हुए बाह के रेलवे स्टेशन पहुंचे। 

Pinahat Fort


चम्बल किनारे स्थित -  पिनाहट किला

पिनाहट किला 


    आज मेरा जन्मदिन था और आज सुबह से बारिश भी खूब अच्छी हो रही थी इसलिए आज मैं कहीं घूमने जाना चाहता था इसलिए मैंने भिंड में स्थित अटेर दुर्ग को देखने का प्लान बनाया। परन्तु मैं वहाँ अकेला नहीं जाना चाहता था इसलिए मैंने अपने साथ किसी मित्र को ले जाने के बारे में सोचा। आगरा में मेरे एक मित्र भाई है जिनका नाम है राजकुमार चौहान, मैंने आज कई सालों बाद उन्हें फोन किया तो मेरा फोन आने पर उन्हें कितनी ख़ुशी हुई ये मैं बयां नहीं कर सकता। उनके पास मेरा नंबर नहीं था और आगरा से मथुरा आने के बाद मैंने उनके पास कभी फोन नहीं किया, आज अचानक मेरा फोन आने से वो बहुत खुश हुए। 

Monday, July 23, 2018

MT. ABU


आबू पर्वत की एक सैर



     महीना मानसून का चल रहा था और ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि मानसून आ चुका हो और हम यात्रा पर ना निकलें हों। जुलाई के इस पहले मानसून में मैंने राजस्थान के सबसे बड़े और ऊँचे पर्वत, आबू की सैर करने का मन बनाया। इस यात्रा में अपने सहयात्री के रूप में कुमार को फिर से अपने साथ लिया और आगरा से अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में दोनों तरफ से मतलब आने और जाने का टिकट भी बुक करा लिया। 23 जुलाई को कुमार आगरा फोर्ट से ट्रेन में बैठा और मैं अपनी बाइक लेकर भरतपुर पहुंचा और वहीँ से मैं भी इस ट्रेन में सवार हो लिया और हम दोनों आबू पर्वत की तरफ निकल पड़े।

Saturday, July 14, 2018

Mariam Tomb



मरियम -उज़ -जमानी का मक़बरा 

     सन 1527 में बाबर ने जब फतेहपुर सीकरी से कुछ दूर उटंगन नदी के किनारे स्थित खानवा के मैदान में अपने प्रतिद्वंदी राजपूत शासक राणा साँगा को हराया तब उसे यह एहसास हो गया था कि अगर हिंदुस्तान को फतह करना है और यहाँ अपनी हुकूमत स्थापित करनी है तो सबसे पहले हिंदुस्तान के राजपूताना राज्य को जीतना होगा, इसके लिए चाहे हमें ( मुगलों ) को कोई भी रणनीति अपनानी पड़े। बाबर एक शासक होने के साथ साथ एक उच्च कोटि का वक्ता तथा दूरदर्शी भी था। इस युद्ध के शुरुआत में राजपूतों द्वारा जब मुग़ल सेना के हौंसले पस्त होने लगे तब बाबर के ओजस्वी भाषण से सेना में उत्साह का संचार हुआ और मुग़ल सेना ने राणा साँगा की सेना को परास्त कर दिया और यहीं से बाबर के लिए भारत की विजय का द्धार खुल गया। इस युद्ध के बाद बाबर ने गाज़ी की उपाधि धारण की।  


Friday, June 29, 2018

Nadrai Bridge


काठगोदाम से मथुरा - आखिरी पड़ाव नदरई पुल, कासगंज। 




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   सोरों देखने के बाद हम अपने आखिरी पड़ाव कासगंज पहुंचे। वैसे तो कासगंज कुछ समय पहले तक एटा जिले का ही एक भाग था परन्तु अप्रैल 2008 में इसे उत्तर प्रदेश का 71वां जिला बना दिया गया। बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक कांशीराम की मृत्यु वर्ष 2006 में हो गई थी उन्हीं की याद में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने इसे कांशीराम नगर के नाम से घोषित किया गया। कासगंज पूर्वोत्तर रेलवे का एक मुख्य जंक्शन स्टेशन है जहाँ से बरेली, पीलीभीत, मैलानी तथा फर्रुखाबाद, कानपुर और लखनऊ के लिए अलग से रेलवे लाइन गुजरती हैं। हालाँकि कासगंज गंगा और यमुना के दोआब में स्थित होने के कारण काफी उपजाऊ शील जिला है यहाँ की मुख्य नदी काली नदी है। 

Soron Sookar Kshetra


काठगोदाम से मथुरा - सोरों शूकर क्षेत्र




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     गंगा स्नान के बाद हमारा अगला पड़ाव सोरों शूकर क्षेत्र था।  इस क्षेत्र को शूकर क्षेत्र इसलिए कहते हैं क्योंकि यहाँ भगवान विष्णु के दूसरे अवतार श्री वराह भगवान का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। भगवान विष्णु ने पृथ्वी को दैत्यराज हिरण्याक्ष से बचाने के लिए ब्रह्मा जी की नाक से वराह के रूप में प्रकट होकर पृथ्वी की रक्षा की थी। जब दैत्यराज हिरण्याक्ष पृथ्वी को समुद्र के रसातल में छुपा आया तब भगवान वराह ने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगाया और समुद्र में जाकर हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को अपने दाँतों पर रखकर बाहर आये।

Ganga in Kachhla


काठगोदाम से मथुरा - कछला घाट 



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      कछला घाट पहुंचकर देखा तो रेलवे ने अपना वाला पुराना मार्ग बंद कर दिया है जहाँ से कभी रेलमार्ग और सड़कमार्ग एक होकर गंगा जी को पार करते थे। सड़क मार्ग अलग हो गया, मीटरगेज मार्ग भी बंद हो गया परन्तु पब्लिक है कि आज भी रेलवे के बिज के नीचे ही गंगा जी में नहाना पसंद करती है।  लोग आज भी अपनी उस आदत को नहीं बदला पाए जिसपर वर्षों से वे और उनके पूर्वज चलते आ रहे थे।  इसलिए जब रेलवे ही बदल गई तो मजबूरन लोगों की रेलवे ब्रिज की तरफ जाने की आदत को रेलवे ने ब्लॉक् कर दिया। अब मजबूरन लोगों को कछला नगर की तरफ से होकर ही गंगाजी में स्नान करने जाना पड़ता है और हमें भी जाना पड़ा। 

Kathgodam to Mathura Bike Trip



काठगोदाम से मथुरा की ओर

THANKS VISIT FOR UTTRAKHAND



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      रात को काफी देर से सोने के बाद भी मेरी आँख सुबह जल्दी खुल गई, वेटिंग रूम से बाहर निकलकर देखा तो यात्रियों का आना शुरू हो चुका था। मैंने जल्दी ही अपनी बाइक प्लेटफोर्म से हटाकर बाहर खड़ी कर दी और फिर वापस आकर कल्पना को जगाया। घड़ी में सुबह के पांच बज चुके थे। हम तैयार होकर साढ़े पांच बजे तक फ्री हो गए और मैंने सही साढ़े पांच बजे अपनी बाइक काठगोदाम से मथुरा के लिए रवाना कर दी। काठगोदाम के बाद हल्द्वानी उत्तराखंड का प्रमुख नगर है। यहाँ मैंने इस स्टेशन के भी कुछ फोटो लिए और फिर आगे बढ़ चला। 

Thursday, June 28, 2018

Kathgodam Railway Station



काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर एक रात 




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     नौकुचियाताल के बाद अब हमने घर वापस लौटने की तैयारी शुरू कर ली थी, मैं घर पर माँ को बताकर नहीं आया था कि मैं नैनीताल बाइक से ही जा रहा हूँ, इस यात्रा के दौरान मैं उनसे यही कहता रहा कि मैं ट्रेन से ही आया हूँ हालाँकि मैं यहाँ से और आगे की यात्रायें भी कर सकता था परन्तु अब मुझसे अपनी माँ से सच नहीं छिपाया जा रहा था और मैं इससे अधिक उनसे झूठ भी नहीं बोल सकता था। अब मेरे मन और दिल ने मुझे धिक्कारना शुरू कर दिया था इसीलिए मैंने अब वापसी की राह ही चुनी। मैं शीघ्र से शीघ्र घर लौट जाना चाहता था इसलिए नौकुचिया के बाद मेरी बाइक का रुख अब घर की तरफ हो चला था। 

Bhimtal & Noukuchiyatal



भीमताल और नौकुचियाताल



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    भुवाली से निकलकर मैं वापस पहाड़ों की तरफ चढ़ने लगा था, तभी अचानक मेरी नजर एक स्टीम इंजन पर पड़ी जो सड़क के किनारे खड़ा हुआ था, आश्चर्य की बात थी इतनी ऊंचाई पर रेलवे का स्टीम इंजन। फिर मेरी नजर उसके पास लगे एक बोर्ड पर पड़ी जिसपर लिखा था "WELCOME TO COUNTRY INN". ये वही होटल है जो मथुरा के पास कोसीकलां से कुछ आगे भी हाईवे पर स्थित है और वहां पर भी इसी प्रकार का एक स्टीम इंजन खड़ा हुआ है।  मतलब यह इंजन इस होटल की खास पहचान है, जहाँ कहीं भी ऐसा इंजन आपको ऐसे टूरिस्ट स्थलों पर देखने को मिले तो समझ जाना यह रेलवे की संपत्ति नहीं, कंट्री इन होटल की संपत्ति है।  हालाँकि इस होटल में बड़े बड़े लोगो का ही आना जाना होता है, हम जैसे मुसाफिरों का यहाँ क्या काम।  इसलिए इस इंजन के फोटो खींचे और आगे बढ़ चला।

Kainchi Dham



पर्वतीय फल बाजार भुवाली और कैंची धाम


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     श्री नैना देवी जी के दर्शन करने के पश्चात् दोपहर करीब दो बजे हम खाना खाकर नैनीताल से कैंचीधाम की तरफ निकल पड़े। कैंची धाम से पहले हम नैनीताल से कुछ दूर स्थित भुवाली पहुंचे।  भुवाली समुद्र तल से 1106 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बहुत बड़ा पर्वतीय फल बाजार है। यहाँ से एक रास्ता अल्मोड़ा और रानीखेत के लिए गया है दूसरा मुक्तेश्वर की ओर , तीसरा भीमताल की तरफ और चौथा नैनीताल की तरफ जिस पर से हम अभी होकर आये हैं। सबसे पहले मैंने अपनी बाइक को अल्मोड़ा की तरफ मोड़ दिया जहाँ से मैं रानीखेत जाना चाहता था परन्तु समय की कम उपलब्धता की वजह से कैंची धाम तक ही सफर पूरा किया। भुवाली में पर्यटन दृष्टि से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु यहाँ की सुंदरता और प्राकृतिक वातावरण हर सैलानी को यहाँ आने के लिए विवश कर देते हैं।  

Nainital



नैनीताल की सैर



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       उत्तराखंड राज्य के कुमाँयू मंडल में समुद्र तल से 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित नैनीताल विश्व पर्यटन के मानचित्र पर एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहाँ सबसे अधिक झीलें हैं। नैनीताल उत्तराखंड का एक काफी बड़ा जिला है जिसकी स्थापना 1891 ईसवी में हुई। नैनीताल नगर तीन ओर से टिफिन टॉप, चाइनापीक, स्नोव्यू आदि ऊँची इंची पहाड़ियों से घिरा है। नैनीताल का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है।  वर्ष 1990 में नैनीताल के मल्लीताल में राजभवन या सचिवालय भवन की स्थापना की गई जिसका उत्तर प्रदेश की ग्रीष्म कालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता था। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद 9 नवंबर 2000 को इस भवन को उत्तराखंड के उच्च न्यायालय के रूप में परवर्तित कर दिया गया।