UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
हल्दीघाटी - एक प्रसिद्ध रणभूमि
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मैं और मेरी पत्नी कल्पना ,चेतक की समाधी पर |
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आज हमारा विचार हल्दीघाटी जाने का बना, जीतू ने आज छुटटी ले थी साथ ही एक बाइक का इंतजाम भी कर दिया। मैं ,कल्पना, दिलीप, जीतू और उसका बेटा अभिषेक दो बाइकों से चल दिए एक प्रसिद्ध रणभूमि की तरफ जिसका नाम था हल्दीघाटी। यूँ तो हल्दीघाटी के बारे में हम कक्षा चार से ही पढ़ते आ रहे हैं, और एक कविता भी आज तक याद है जो कुछ इसतरह से थी,
रण बीच चौकड़ी भर भर कर , चेतक बन गया निराला था।
महाराणा प्रताप के घोड़े से , पड़ गया हवा का पाला था ।।
हल्दीघाटी के मैदान में आज से पांच सौ वर्ष पूर्व मुग़ल सेना और राजपूत सेना के बीच ऐसा भीषण संग्राम हुआ जिसने हल्दीघाटी को इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर दिया और साबित कर दिया कि भारत देश के वीर सपूत केवल इंसान ही नहीं, जानवर भी कहलाते हैं जो अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने मालिक के प्रति सच्ची वफ़ादारी का उदाहरण पेश करते हैं और ऐसा ही एक उदाहरण हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक ने अपनी जान देकर दिया। ऐसे वीर घोड़े को सुधीर उपाध्याय का शत शत नमन।