Sunday, January 27, 2013

MEWAR TO MARWAR NG TRIP

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कांकरोली से मारवाड़ मीटर गेज पैसेंजर ट्रेन यात्रा




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     मैं राजनगर से कांकरोली स्टेशन पहुंचा, अपने निर्धारित समय पर ट्रेन भी आ पहुंची, सर्दियों के दिन थे इसलिए मुझे धुप बहुत अच्छी लग रही थी। कांकरोली से आगे यह मेरा पहला सफ़र था, मुझे इस लाइन को देखना था, मेवाड़ से ट्रेन मारवाड़ की ओर जा रही थी, मेरे चारों तरफ सिर्फ राजस्थानी संस्कृति ही थी। ट्रेन लावा सरदारगढ़ नामक एक स्टेशन पर पहुंची, यहाँ भी मार्बल की माइंस थीं, और एक किला भी बना हुआ था, शायद उसी का नाम था सरदारगढ़। ट्रेन इससे आगे आमेट पहुंची, आमेट के स्टेशन का नाम चार भुजा रोड है, यहाँ से एक रास्ता चारभुजा जी के लिए जाता है, इससे आगे एक स्टेशन आया नाम था दौला जी का खेडा।

Friday, January 18, 2013

राजसमन्द - 2013

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

राजसमन्द में एक बार फिर

अपनी छत पर पतंग उड़ाते धर्मेन्द्र भाई 


     इस बार आगरा में सर्दी काफी तेज थी और इन सर्दियों में, मैं फ़ालतू घर पर बैठा था। कल्पना भी अपने मायके गई हुई थी इसलिए अपने आपको फ़ालतू और अकेला महसूस कर रहा था। कंप्यूटर भी इन दिनों खराब पड़ा था, सिवाय टीवी देखने के मेरे पास कोई काम नहीं था, लेकिन टीवी भी बेचारी कब तक मेरा मन लगाती।तभी जीतू का फोन आया तो उसे मैंने अपनी परेशानी बताई, उसने मुझे अपने पास आने की कहकर मेरी परेशानी मिनटों में हल कर दी ।मे 

     माँ की आज्ञा लेकर मैं सीधे स्टेशन गया और अनन्या एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा लिया । दुसरे दिन मैं राजसमन्द के लिए गया। ट्रेन सही समय पर आगरा फोर्ट पर आ गई और मैंने अपनी सीट ढूँढी, देखा तो ऊपर की थी।कमबख्त से मांगी तो साइड लोअर थी पर नसीब में ऊपर वाली ही लिखी थी। ट्रेन सवाई माधोपुर होते हुए जयपुर पहुंची । यहाँ मेट्रो का काम तेजी पर चल रहा था, ट्रेन दुर्गापुरा स्टेशन पर काफी देर खड़ी रही उसके बाद जयपुर स्टेशन पर पहुंची। यहाँ मुझे चाय पीने का मौका मिल गया, ट्रेन की चाय से यह चाय कई गुना बेहतर थी।

Monday, April 2, 2012

कुम्भलगढ़ और परशुराम महादेव

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कुम्भलगढ़ और परशुराम महादेव  




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     कल हम हल्दीघाटी घूमकर आये थे, आज हमारा विचार कुम्भलगढ़ जाने की ओर था और ख़ुशी की बात ये थी कि आज धर्मेन्द्र भाई भी हमारे साथ थे। राजनगर से कुम्भलगढ़ करीब पैंतालीस किमी दूर है, भैया ने मेरे लिए एक बाइक का इंतजाम कर दिया।  भैया, भाभी अपने बच्चों के साथ अपनी बाइक पर, जीतू अपनी पत्नी - बच्चों और दिलीप के साथ अपनी बाइक पर और तीसरी बाइक पर मैं और कल्पना थे। 

    पहाड़ी रास्तो से होकर हम कुम्भलगढ़ की तरफ बढ़ते जा रहे थे, मौसम भी काफी सुहावना सा हो गया था , जंगल और ऊँचे नीचे पहाड़ों के इस सफ़र का अलग ही आनंद आ रहा था, मैं बाइक चला रहा था और कल्पना मोबाइल से विडियो बना रही थी। यहाँ काफी दूर तक बाइक बिना पेट्रोल के ही चल रही थी, ढ़लान के रास्तों पर जो करीब तीन किमी लम्बे होते थे ।

हल्दीघाटी - एक प्रसिद्ध रणभूमि

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हल्दीघाटी - एक प्रसिद्ध रणभूमि


मैं और मेरी पत्नी कल्पना ,चेतक की समाधी पर 



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   आज हमारा विचार हल्दीघाटी जाने का बना, जीतू ने आज छुटटी ले थी साथ ही एक बाइक का इंतजाम भी कर दिया। मैं ,कल्पना, दिलीप, जीतू और उसका बेटा अभिषेक दो बाइकों से चल दिए एक प्रसिद्ध रणभूमि की तरफ जिसका नाम था हल्दीघाटी। यूँ तो हल्दीघाटी के बारे में हम कक्षा चार से ही पढ़ते आ रहे हैं, और एक कविता भी आज तक याद है जो कुछ इसतरह से थी,
             
                        रण बीच चौकड़ी भर भर कर , चेतक बन गया निराला था।
                         महाराणा प्रताप के घोड़े से   , पड़  गया  हवा का पाला था ।।

    हल्दीघाटी के मैदान में आज से पांच सौ वर्ष पूर्व मुग़ल सेना और राजपूत सेना के बीच ऐसा भीषण संग्राम हुआ जिसने हल्दीघाटी को इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर दिया और साबित कर दिया कि भारत देश के वीर सपूत केवल इंसान ही नहीं,  जानवर भी कहलाते हैं जो अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने मालिक के प्रति सच्ची वफ़ादारी का उदाहरण पेश करते हैं और ऐसा ही एक उदाहरण हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक ने अपनी जान देकर दिया। ऐसे वीर घोड़े को सुधीर उपाध्याय का शत शत नमन।

Sunday, April 1, 2012

राजसमंद और कांकरोली

                                                      UPADHYAY TRIPS PRESENT'S                                                                                    
                                                                                                                                  
राजसमंद और कांकरोली
                                                          

कांकरोली स्टेशन पर जीतू 



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      श्री नाथजी के दर्शन करके हम राजनगर की ओर रवाना हो लिए, दिलीप एक मारुती वन में बैठ गया, मैं ,जीतू और कल्पना बाइक पर ही चल दिए। रात हो चली थी , राष्ट्रीय राजमार्ग - 8  पर आज हम बाइक से सफ़र कर रहे थे, सड़क के दोनों तरफ मार्बल की बड़ी बड़ी दुकाने और गोदाम थे और रास्ता भी बहुत ही शानदार था।
थोड़ी देर में हम कांकरोली पहुँच गए, यहाँ हमें दिलीप भी मिल गया और हम फिर जीतू के घर गए , भईया को अभी पता नहीं था कि मैं कांकरोली में आ गया हूँ, मेरा संपर्क सिर्फ जीतू के ही साथ था । जीतू और धर्मेन्द्र भैया मेरे बड़े मामा जी के लड़के हैं। दोनों ही यहाँ मार्बल माइंस में नौकरी करते हैं, इसलिए अपने परिवार को लेकर दोनों यहीं रहते हैं, मैं पहले भी कई बार कांकरोली और राजनगर आ चुका हूँ, कल्पना और दिलीप पहली बार आये थे। 

Saturday, March 31, 2012

झीलों की नगरी - उदयपुर

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झीलों की नगरी - उदयपुर

उदयपुर रेलवे स्टेशन 

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      अनन्या एक्सप्रेस ने हमें रात को तीन बजे ही हमें उदयपुर सिटी स्टेशन पहुँचा दिया। रेलवे सुरक्षा बल के सिपाहियों ने मुझे जगाया और कहा कि क्या ट्रेन में ही सोने का इरादा है ? यह ट्रेन आगे नहीं जाती। मैंने देखा ट्रेन उदयपुरसिटी पर खड़ी हुई है, जो दो चार सवारियां ट्रेन में थीं ,पता नहीं कब चली गई। मैंने जल्दी से कल्पना को जगाया और दिलीप को भी जगा दिया था ।

     ट्रेन से उतरकर हम वेटिंग रूम में गए, वहां से नहा धोकर उदयपुर घूमने निकल पड़े, यहाँ से राजमहल करीब तीन किमी था, सुबह सुबह हम पैदल ही राजमहल की ओर निकल पड़े, थोड़ी देर में हम राजमहल के करीब थे , अभी इसके खुलने में काफी समय था इसलिए पास ही के एक पहाड़ पर स्थित किले को देखने के लिए चल पड़े। यूँ तो उदयपुर की विशेषता का वर्णन मैं क्या कर सकता हूँ, इसकी विशेषता का एहसास तो खुद ही यहाँ आकर हो ही जाता है। हम पहाड़ पर पहुंचे, यहाँ एक करणी माता का मंदिर भी है, और एक पुराने किले के अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं, यहाँ से पूरे उदयपुर शहर का नजारा स्पष्ट दिखाई देता है।

Friday, March 30, 2012

दरगाह अजमेर शरीफ़

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ख्वाज़ा गरीब नवाज के दर पर




      मैं ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर हाजिरी देने अजमेर जाता हूँ, इन्हें अजमेर शरीफ़ भी कहा जाता है। इस साल मेरे साथ मेरी पत्नी कल्पना और मेरा मौसेरा भाई दिलीप भी था। मैंने अपनी शादी से पहले ही सियालदाह-अजमेर एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा रखा था, इस ट्रेन का समय आगरा फोर्ट पर रात को आठ बजे है किन्तु आज यह ट्रेन रात की बजाय सुबह चार बजे आगरा फोर्ट पहुंची। आज हमारी पूरी रात इस ट्रेन के इंतजार में खराब हो गयी, खैर जैसी ख्वाजा जी की मर्जी। मैं आज पहली बार अपनी पत्नी की साथ यात्रा कर रहा था, एक अजीब सी ख़ुशी मेरे दिल में थी, मैं अपनी शादी के बाद अपनी पत्नी को भी सबसे पहले ख्वाजा जी के दर पर ले जाना चाहता था और आज मेरा यह सपना पूरा होने जा रहा था । 

Tuesday, October 11, 2011

ईदगाह से बाँदीकुई डीएमयू यात्रा


ईदगाह से बाँदीकुई डीएमयू यात्रा 

ईदगाह आगरा जंक्शन 

आज मैं घर पर फ्री था, कोई काम नहीं था तो स्टेशन की तरफ निकल गया। आज आगरा कैंट ना जाकर सीधे ईदगाह स्टेशन गया, यहाँ अभी कुछ दिन पहले जापानी ट्रेन जैसी दिखने वाली एक डीएमयू शुरू हुई है जो अब बाँदीकुई तक जाने लगी है। यह बांदीकुई जाती है और फिर वहां से वापस आगरा आ जाती है। अपना किराया तो  लगता ही नहीं है इसलिए चल दिए इसी ट्रैन से एक यात्रा बाँदीकुई की और करने।  काफी समय पहले में इस लाइन पर भरतपुर तक यात्रा कर चूका हूँ तब यह लाइन मीटर गेज हुआ करती थी। गेज परिवर्तन के बाद यह मेरा पहला मौका है जब मैं इस ट्रैक पर यात्रा कर रहा हूँ।  मैं ईदगाह स्टेशन पहुंचा, कुछ देर में ट्रेन भी पहुँच गई। ट्रैन में अपना स्थान ग्रहण कर मैं यात्रा पर रवाना हो चला। 

Saturday, January 1, 2011

Gangasagar


गंगासागर की एक यात्रा 

    जनवरी की भरी सर्दियों में घर से बाहर कहीं यात्रा पर जाना एक साहस भरा काम है और यह साहस भरा काम भी हमने किया इसबार गंगासागर की यात्रा पर जाकर। भारत देश में अनेकों पर्यटन स्थल हैं और पर्यटन स्थल का एक अनुकूल मौसम भी होता है इसी प्रकार गंगासागर जाने का सबसे उचित मौसम जनवरी का महीना होता है क्योंकि मकरसक्रांति के दिन ही गंगासागर में स्नान का विशेष महत्व है। मकर सक्रांति आने से पहले ही यहाँ मेले की विशेष तैयारी होने लगती है। ये लोकप्रिय कहावत प्रचलित है :- सारे तीर्थ बार बार, गंगासागर एक बार।

Friday, April 16, 2010

BAIJNATH PAPROLA : 2010

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बैजनाथ मंदिर और नगरकोट धाम वर्ष 2010



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     सुबह एक बार फिर चामुंडा माता के दर्शन करने के पश्चात् मैं, माँ और निधि चामुंडा मार्ग रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हो गए। सुबह सवा आठ बजे एक ट्रेन चामुंडा मार्ग स्टेशन से बैजनाथ पपरोला के लिए जाती है जहाँ बैजनाथ जी का विशाल मंदिर स्थित है। इस मंदिर के बारे कहाँ जाता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग लंका नरेश रावण के द्वारा स्थापित है, रावण के हठ के कारण जब महादेव ना चाहते हुए भी उसकी भक्ति के आगे विवश हो गये तब उन्होंने रावण से उसका मनचाहा वर मांगने को कहा तब रावण के शिवजी को कैलाश छोड़कर लंका में निवास करने के लिए अपना वरदान माँगा। 

      शिवजी ने एक शिवलिंग के रूप में परवर्तित होकर रावण के साथ लंका में रहने का वरदान तो दे दिया किन्तु साथ ही उससे यह भी कह दिया कि इस शिवलिंग को जहाँ भी धरती पर रख दोगे यह वहीँ स्थित हो जायेगा। रास्ते में रावण को लघुशंका लगी जिसकारण वह इसे एक गड़रिये के बच्चे  में थमाकर लघुशंका के लिए चला गया। वह बच्चा इस भरी शिवलिंग को ना थम सका और उसने इसे धरती पर रख दिया।  वापस आकर रावण ने इस शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की किन्तु वह असफल रहा और आज भी यह शिवलिंग बैजनाथ के नाम से पपरोला में स्थित है।

Thursday, April 15, 2010

CHAMUNDA DEVI : 2010

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चामुंडा देवी के मंदिर में 


 

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      हमने पहले सीधे चामुंडा जाने का प्लान बनाया । सुबह 10 बजे ट्रेन पठान कोट से रवाना हुई और धीरे धीरे धरती से पहाड़ो की गोद में आ गई। सफ़र बड़ा ही रोमांचक था और मज़ेदार भी, छोटी सी ट्रेन और छोटे छोटे स्टेशन, हिमालय की वादियाँ और व्यास नदी का अद्भुत नजारा वाकई मन को मोह लेने वाला था। मेरा तो मन कर रहा था कि आगरा वापस ही न जाऊं यहीं रह जाऊं ,पर अपना घर अपना ही होता है ,चाहे कहीं भी चले जाओ असली सुकून तो अपने घर में ही मिलता है। शाम तलक हम चामुंडा मार्ग स्टेशन पहुँच गए। यह एक सुन्दर और रमणीक स्टेशन है । 

      मुझे यहाँ के स्थानीय लोगो ने बताया कि पुरानी चामुंडा का मंदिर ऊपर पहाड़ो में है, वहां आने जाने में कम से कम दो दिन लगेंगे। माँ और बहिन की तरफ देखते हुए मैंने वहां जाने का विचार त्याग दिया पर आगे भविष्य में जाने का प्रण जरुर कर लिया। हम नई चामुंडा देवी के मंदिर पर पहुंचे। यह एक सुन्दर और बड़ा मन्दिर है धार्मिक दृष्टि से भी और पर्यटन की दृष्टि से भी। यहाँ बाणगंगा नदी एक सामान्य धारा के रूप में बहती है या यूँ कहिये कि पहाड़ो से निकलकर धरती पर जा रही है। मंदिर को और रमणीक बनाने हेतु इस नदी पर एक पुल भी बनाया गया है ।

      देवी माँ के दर्शन करने के बाद हम नीचे वाले शिव मंदिर में भी गए। रात होने को थी अब खाने का ठहराने का प्रबंध भी करना था। हमे मंदिर ट्रस्ट की तरफ से एक बड़े हॉल में जगह मिल गई जहाँ हमने अपना आसन लगाया। पास में ही लेटे हुए कुछ श्रद्धालु कही जाने लगे, उन्ही में से एक बुजुर्ग ने हमसे कहा कि खाना खा लिया या नहीं, गर नहीं तो चलो हमारे साथ लंगर का समय हो गया है। मंदिर से आधा किमी दूर लंगर भवन है जहाँ रात्रि नौ बजे लंगर चलता है। लंगर में हमें दाल चावल मिले। मैंने भरपेट भोजन किया और हॉल में आकार सो गया। सुबह उठकर हम मलां स्थित रेलवे स्टेशन पहुंचे। 

चामुंडा मार्ग का रेलवे स्टेशन भी कम रमणीय नहीं है। यहाँ एक ही रेलवे लाइन है जो अर्धवृत्ताकार रूप में होने के कारण बहुत शानदार लगती है, स्टेशन भी छोटा सा ही है इसलिए यह स्थान रमणीय होने के साथ साथ प्राकृतिक वातावरण से भरपूर भी है। स्टेशन के ठीक सामने पहाड़ है और उस पहाड़ से ठीक पहले नदी की एक धारा नहर के रूप गुजरती है। स्टेशन के आसपास काफी अच्छे हिमाचली घर भी बने हैं जिनमें बेहद शानदार और खुशबू बिखेरने वाले गुलाब के पौधे लगे हैं। इन गुलाबों की सुगंध से यहाँ आने वाले हर सैलानी का मन बस यहीं का होकर रह जाना चाहता है। 

कुछ ही समय बाद पठानकोट की तरफ से इस रेलवे लाइन की छोटी वाली ट्रेन आ गई। दूर से हॉर्न देती ट्रेन का संकेत पाकर सभी यात्री अपने अपने सामान के साथ सचेत हो जाते हैं। यह पाँच छः डिब्बों वाली नेरो गेज की ट्रेन है जो स्वछन्द वातावरण में हिमालय की वादियों में अपना सफर तय करती है। अपनी अगली यात्रा के लिए हम इसी ट्रेन में सवार हो गए और चामुंडा धाम से बैजनाथ धाम की ओर बढ़ चले। 

CHAMUNDA MARG RAILWAY STATION

RAILWAY STATION OF CHAMUNDA MARG

CHAMUNDA MARG

RIVER IN CHAMUNDA


CHAMUNDA TAMPLE

CHAMUNDA TAMPLE

CHAMUNDA TAMPLE


CHAMUNDA DEVI TEMPLE IN 2010

CHAMUNDA DEVI TEMPLE

CHAMUNDA DEVI TEMPLE

CHAMUNDA DEVI TEMPLE

CHAMUNDA DEVI TEMPLE 2010

CHAMUNDA DEVI TEMPLE 2010


CHAMUNDA DEVI 2010

CHAMUNDA DEVI 2010

CHAMUNDA DEVI TEMPLE 2010

Chamunda Marg railway station

Tuesday, April 13, 2010

PTK TO CMMG : 2010

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काँगड़ा घाटी में रेल यात्रा - 2010



 मैंने दिल्ली से पठानकोट के लिए 4035 धौलाधार एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करा रखा था। तारीख आने पर हम आगरा से दिल्ली की ओर रवाना हुए। मेरे साथ मेरी माँ और मेरी छोटी बहिन थी। हम थिरुकुरल एक्सप्रेस से निजामुद्दीन स्टेशन पहुंचे और एक लोकल शटल पकड़ कर सीधे नई दिल्ली। नईदिल्ली से हम मेट्रो पकड़ सीधे चांदनी चौक पहुंचे और वहां जाकर गोलगप्पे खाए । सुना चाँदनी चौक के गोलगप्पे काफी मशहूर हैं। चाँदनी चौक के पास ही पुरानी दिल्ली स्टेशन है जहाँ से हमें पठानकोट की ट्रेन पकडनी थी। हम स्टेशन पर पहुंचे तो ट्रेन तैयार खड़ी थी हमने अपना सीट देखी। मेरी बीच वाली सीट थी। उसे ऊपर उठा अपना बिस्तर लगा कर मैं तो सो गया और ट्रेन चलती रही। 


Friday, March 26, 2010

ग्राम बहटा और प्राकृतिक ग्रामीण जीवन

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ग्राम बहटा और प्राकृतिक ग्रामीण जीवन 



   बहटा मेरी मौसी का गांव है जो हाथरस - कासगंज रोड पर सलेमपुर के निकट स्थित है। प्राकृतिक वातावरण से भरपूर इस गाँव का जीवन शहरीय जीवन से बिल्कुल अलग है। यहाँ की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी जो हमें एहसास कराती है कि शहरों की सुबह की मॉर्निंग वॉक इस ग्राम की मॉर्निंग वॉक के सामने कुछ नहीं है। यहाँ कृतिम रूप से बनाये गए पार्क नहीं हैं परन्तु प्रकृति ने यहां की धरती को प्राकृतिक सुंदरता से नवाजा है जो शहरीय पार्कों की तुलना में अत्यंत ही खूबसूरत और खुशबूदार हैं। सुबह सुबह छोटी सी पगडंडियों पर चलना और चारों तरफ से आती हुई धान के खेतों की मनमोहक खुशबू मन को एहसास कराती है कि कुछ ही समय के लिए सही परन्तु मन को सच्चा सुख और ख़ुशी कहीं मिल सकती है तो वह सिर्फ प्रकृति द्वारा ही संभव है। 

   अभी मैं इन धान के खेतों के बीच से होकर आगे बढ़ ही रहा था कि मेरे सामने खेतों के बीच से धुँआ उड़ाती हुई ट्रेन गुजरी, वाकई कितना शानदार नजारा है जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस समय मौसम भी खुशनुमा बना हुआ है, आकाश में छाई काली घटायें सुबह के इस समय को और भी खूबसूरत बना रही थी। कहीं पूरब में दिखाई देने वाला वो सुबह का सूरज, आज आसमान में छाये हुए बादलों के पीछे कहीं गुम सा हो गया था परन्तु उसकी लालिमा आसमान को रंगीन बनाये हुए थी जिसे देखकर लग रहा था कि साक्षात् प्रकृति ने आसमान में एक नई चित्ररेखा तैयार की हो। अभी बस मैं पीछे मुड़ा ही था कि मेरी नजर पत्ते पर बैठे एक कीट पर गई जो देखने में बहुत ही खूबसूरत था, लाल रंग के इस कीट को प्रकृति ने काले काले घेरों से सुंदरता के साथ सजाया है। 
   मैं रेलवे लाइन पार करने के बाद गाँव की तरफ बढ़ चला। बारिश की हल्की हल्की फुहार अब बरसने लगी थीं,लोग ऐसी फुहारों से नहाने के लिए अपने घरों के बाथरूमों में बड़े बड़े शावर लगवाते हैं किन्तु आज प्रकृति ने इस गाँव को ही बिना किसी आकार का शावर प्रदान किया हुआ है जिसमें केवल इंसान ही नहीं ये पेड़ पौधे और जीव जंतु भी इस प्राकृतिक शावर का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। पीपल के पेड़ की नई पत्तियाँ इस बरसाती मौसम में और भी खिल उठी हैं और अपने रंग में जोर जोर से चमकने लगीं हैं। इस पीपल के पेड़ को देखकर लगता है जैसे कि ये अभी अभी उत्पन्न हुआ हो। गाँव की प्राथमिक पाठशाला की दीवारों पर बने चित्र और उनपर लिखी  हुईं बातें मुझे मेरे बचपन में ले जाते हैं। 

   जिस प्रकार शहरों की शान कारें हुआ करती हैं उसी प्रकार गाँव की शान यहाँ अलग अलग घरों में खड़े हुए विभिन्न तरह के ट्रैक्टर होते हैं और इतना ही नहीं इनके साथ इनके उपकरणों की भी उतनी ही विशेषता है जो गाँव के किसी भी कोने में कहीं भी हमें खड़े हुए दिखाई दे जाते हैं और वो भी बिना किसी रखवाली के। लोग शहरों में कुत्तों को पालते हैं और उन्हें अपने साथ मॉर्निंग वाक पर ले जाते हैं वहीँ गाँव में लोग गाय - भैंस अपने घरों में रखते हैं और सुबह सुबह इन्हें अपने साथ नहीं बल्कि इनके ( गाय और भैंस ) साथ मॉर्निंग वॉक पर जातें हैं। फर्क केवल इतना होता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शहरीय लोगों को ना चाहते हुए भी सुबह जल्दी उठाना पड़ता है और मॉर्निंग वॉक पर जाना पड़ता है और वहीं ग्रामीण लोग सुबह सुबह अपने पशुओं को चराने के लिए मॉर्निंग वाक पर निकलते हैं जिससे इनका शरीर स्वतः ही स्वस्थ रहता है। 

   मेरी मौसी मुझे एक बड़े गिलास में ताजा छाछ लाकर देती हैं जिसे मैं बड़ी ही देर में समाप्त कर पाता हूँ वो भी सिर्फ इसलिए कि शायद मुझे प्रतिदिन छाछ पीने का और इतने बड़े गिलास में पीने का अभ्यास नहीं है। मेरे मौसाजी सरकारी हैडपम्प से पानी भर रहे हैं जो मेरे मौसा जी के घर के ठीक बाहर लगा हुआ है। इसे देखकर मुझे याद आया कि हमारे यहाँ तो केवल एक स्विच दबाने की देर होती है और सबंसिरबल स्वतः ही पानी भर देती है जिसके लिए हम प्रत्येक महीने बिजली विभाग को कुछ रूपये भी अदा करते हैं, जबकि यहाँ शरीर की मेहनत जमीन से पानी खींचती है वो बिना किसी शुल्क के, और इसका दूसरा फायदा ये है कि नल चलाने से शरीर मेहनत करता है और स्वतः ही स्वस्थ बना रहता है। 

   गाँव के जीवन से सरावोर होने के बाद मैंने सिर्फ इतना अनुभव किया कि शहरों की तुलना में ग्रामीण लोगों का जीवन काफी सरल, सुखद और सम्पन्न होता है। ये गर्मियों के दिनों में रात को खुले आसमान के नीचे सोते हैं और शुद्ध हवा को ग्रहण करते हैं इनहें एसी और कूलर की कोई आवश्यकता नहीं होती। ये रात को जल्दी सोते हैं और सुबह पौं फटने से पहले ही जाग जाते हैं जिससे सुबह की शुद्ध वायु इनके शरीर को पूरे दिन ताजा और फुर्तीला रखती है। ये पैक मिल्क नहीं पीते हैं बल्कि शुद्ध और ताजा गाय भैस का दूध पीते हैं। इनके यहाँ रोटियां मिटटी के चूल्हे पर बनाई जाती हैं जो शरीर के लिए गैस की अपेक्षा अत्यधिक लाभदायक होती हैं। ये आसपास की दूरी पैदल ही तय करते हैं जिससे ये जनहित में बाइक या कार ना चलाकर वायु प्रदूषण से बचते हैं और पैदल चलकर अपने शरीर की शारीरिक क्षमता को बढ़ाते हैं। 

   कुल मिलाकर हम कह सकते हैं की ग्रामीण लोग शहरीय लोगों की तुलना में शारीरिक रूप से अधिक मजबूत और ऊर्जावान होते हैं। यह प्रकृति की रखा तहे दिल से करते हैं इसलिए प्रकृति हमेशा इन पर मेहरबान रहती है और इन्हें हमेशा सम्पन्न रखती है।  

मीटरगेज का इंजन जो अपना कार्य और समय पूरा कर चुका है 

मेरा मौसेरा भाई - नीरज उपाध्याय 

ट्रेन में से कुछ देखते हुए 

मेंडू रेलवे स्टेशन 

मीटरगेज का पुराना स्टेशन - हाथरस रोड जहाँ पहले डबल मीटरगेज लाइन थी और आज केवल सिंगल ब्रॉड गेज लाइन है 

हाथरस रोड 

मौसी के गाँव का रेलवे स्टेशन - रति का नगला 

रति का नगला 

रति का नगला स्टेशन की सड़क से लोकेशन 

नानी को दवा देती मौसी 

मेरे मौसाजी - श्री रामकुमार उपाध्याय 

मेरी नानी - महादेवी शर्मा 

मौसाजी और मौसी जी 

पपीता काटती हुई मौसी 

मौसी का पुराना घर जिसके आगे सिर्फ खेत हैं 

रोहित उपाध्याय - मेरी मौसी का सबसे छोटा पुत्र 

मेरी पुरानी  बाइक के साथ मेरा एक फोटो - कोडेक कैमरे से 

   बहुत पुरानी यात्रा है इसलिए केवल संस्मरण ही मुझे याद थे बाकी जो उस समय के कुछ फोटो मैंने अपने कोडेक के कैमरे में और मोबाइल में लिए थे आप सभी के सामने हैं। इस ब्लॉग में अगर कोई कंटेंट ऐसा लिख गया हो जो आपकी नजर से गलत या ना लिखने लायक हो तो कृपया नीचे दिए गए कंमेंट बॉक्स में अवश्य बताइयेगा। बाकी कोई त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए तहे दिल से क्षमा प्रार्थीं हूँ। 
आपका - सुधीर उपाध्याय 


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THANKS FOR VISIT 
🙏

Sunday, March 7, 2010

धौलपुर से तांतपुर और सरमथुरा



धौलपुर से तांतपुर और सरमथुरा नेरोगेज रेलयात्रा




    छोटा था इसलिए आगरा बाहर अकेले जाने में डर सा लगता था किन्तु किस्मत ने को हमेशा साथ देने वाला दोस्त नहीं दिया था तो हिम्मत करके अकेला ही अब यात्रायें करने लगा था। पहली यात्रा धौलपुर से सरमथुरा जाने वाली रेलवे लाइन पर की, जब धौलपुर पहुँचा तो पता चला ट्रेन निकल चुकी है। इस रूट पर यात्रा करने वाली ये अकेली ही ट्रेन है जो सुबह चार बजे धौलपुर से सरमथुरा जाती है और सुबह दस बजे वापस आती है। अब यह सरमथुरा से वापस लौट रही है और कुछदेर बाद इंजन बदलकर ये फिर से तांतपुर जायेगी जो आगरा उत्तरप्रदेश में एकमात्र नेरोगेज का रेलवे स्टेशन है और तांतपुर से बाड़ी आकर फिर से वापस सरमथुरा जायेगी और रात को वापस धौलपुर आकर विश्राम करेगी और फिर अगले दिन सुबह चार बजे अपनी यात्रा प्रारम्भ करेगी। मैं इस ट्रैन से यात्रा करने के लिए धौलपुर से बाड़ी तक बस से गया और बाड़ी स्टेशन पहुँचा।  

    जब ट्रैन स्टेशन पर पहुंची तो सभी लोगों ने अपना स्थान ग्रहण किया, अधिकतर लोग इसकी छत पर बैठकर यात्रा पसंद करते हैं। मैंने देखा कि कोच के अंदर हालांकि सीटें खाली पड़ी हैं किन्तु वह सीटें यहाँ औरतों और  बच्चों के काम आती हैं। यहाँ के मर्द छत पर बैठकर यात्रा करने में ही अपनी शान समझते हैं। कुछ लोग छत पर बैठकर बीड़ी सुलगा रहे हैं कुछ गिरोह बनाकर ताश खेल रहे हैं। ट्रेन स्टेशन से प्रस्थान कर चुकी है मैं ट्रेन के अंदर हूँ और अगले स्टेशन पर उतरकर मैं भी छत पर जा चढ़ा। ट्रेन की छत पर भी चने वाला पूरी ट्रेन की छत पर घूम घूम कर अपने चने बेच रहा है और लोग आनंदित होकर चने खाते हुए यात्रा कर रहे हैं। 

    इस रेलमार्ग पर बाड़ी यहाँ का मुख्य स्टेशन से है जहाँ इस ट्रेन का ठहराव काफी समय तक है। बाड़ी एक बड़ा कस्बा है और धौलपुर के बाद एक मुख्य बाजार भी। काफी देर यहाँ रुकने बाद और इंजन के आगे से पीछे लगने के बाद यह ट्रेन अपने अगले स्टेशन मोहारी पहुँचती है। यह एक जंक्शन स्टेशन है जहाँ से एक लाइन सरमथुरा जाती है और दूसरी तांतपुर।  फ़िलहाल हम सरमथुरा की तरफ चल रहे हैं। तांतपुर से पहले बड़ा स्टेशन बसेड़ी है जो उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा हुआ है और इसके बाद यह ट्रेन भी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है जहाँ तांतपुर इसका आखिरी पड़ाव है।

    यहाँ से अब ये तांतपुर - बाड़ी पैसेंजर बनकर बाड़ी तक जाती है और आपको गर इसी ट्रेन से धौलपुर जाना है तो उतरिये मत इसीमे बैठे रहिये पर हाँ बाड़ी पहुंचकर सरमथुरा के लिए टिकट अवश्य ले लीजिये क्योंकि यह ट्रेन वापस अपनी दिशा में अपनी दूसरी लाइन जो मोहारी से अलग होकर सरमथुरा जाती है ( जिस पर अभी मैं यात्रा कर रहा हूँ ) उसी पर जायेगी और अपने अंतिम स्टेशन से सरमथुरा वापस चलकर शाम को सात बजे धौलपुर पहुंचेगी।  जहां से आप ताज एक्सप्रेस से आगरा या दिल्ली वापस आकर अपनी यात्रा को समाप्त कर सकते हैं।

    मोहारी से निकलने के बाद रनपुर और आंगई स्टेशन पर रुकते हुए यह बरौली को बिना रुके एक सुपरफास्ट एक्सप्रेस की तरह पार करती है और इसके बाद इसी तरह कांकरेट पर बिना रुके सीधे सरमथुरा पहुँचती है। और यहाँ से इंजन दूसरी दिशा में लगाकर इसे वापस धौलपुर के लिए रवाना कर दिया जाता है। 

इस रेल मार्ग के मुख्य  स्टेशन 


  • धौलपुर जंक्शन 
  • नूरपुरा 
  • गढ़ी सांद्रा 
  • सुरौठी 
  • बारी 
  • मोहारी जंक्शन 
  • बसेरी               
  • बागथर 
  • तांतपुर    
  • मोहारी जंक्शन 
  • रनपुरा 
  • आंगई 
  • बरौली ( अब सेवा में नहीं है )
  • कांक्रेट ( अब सेवा में नहीं है )
  • सिरमथुरा 
ट्रेन  का समय 
  • 52179 धौलपुर - सिरमथुरा पैसेंजर  4 :00 - 7 :00 
  • 52181 धौलपुर - तांतपुर पैसेंजर      10:40 - 13 :05 
  • 52183 बारी  - सिरमथुरा पैसेंजर      14 :45 - 16 :25 

मैंने इसमें तीसरी वाली ट्रेन से यात्रा की थी। उसी से मैं वापस धौलपुर भी पहुंचा। तांतपुर स्टेशन के फोटो मैंने अपनी बाइक यात्रा से लिए थे।

धौलपुर रेलवे स्टेशन 

धौलपुर रेलवे स्टेशन 

धौलपुर से बाड़ी नेरो गेज रेलवे लाइन 

* सुरौठी रेलवे स्टेशन 

बारी या बाड़ी रेलवे स्टेशन 

ट्रेन आने वाली है, बाड़ी 

तांतपुर से आई ट्रेन 

* बाड़ी में एक समय यह रेलवे लाइन 

मोहारी जंक्शन 

मोहारी जंक्शन 

मोहारी जंक्शन 
* बागथर रेलवे स्टेशन 

तांतपुर रेलवे स्टेशन 

तांतपुर रेलवे स्टेशन और मेरी बाइक 



 बरौली रेलवे स्टेशन, यहाँ ट्रेन का ठहराव अब नहीं है 

 बरौली रेलवे स्टेशन, यहाँ ट्रेन का ठहराव अब नहीं है 

 कांकरेट रेलवे स्टेशन, यहाँ ट्रेन का ठहराव अब नहीं है 

सरमथुरा रेलवे स्टेशन, इसे रेलवे की भाषा में सिरमथुरा कहते हैं।  
 * उपरोक्त फोटो विषय की उपयोगिता हेतु गूगल से लिए गए हैं। जिनके हैं उनका सह्रदय आभार।


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