Friday, March 26, 2010

ग्राम बहटा और प्राकृतिक ग्रामीण जीवन

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

ग्राम बहटा और प्राकृतिक ग्रामीण जीवन 



   बहटा मेरी मौसी का गांव है जो हाथरस - कासगंज रोड पर सलेमपुर के निकट स्थित है। प्राकृतिक वातावरण से भरपूर इस गाँव का जीवन शहरीय जीवन से बिल्कुल अलग है। यहाँ की सुबह में एक अलग ही ताजगी थी जो हमें एहसास कराती है कि शहरों की सुबह की मॉर्निंग वॉक इस ग्राम की मॉर्निंग वॉक के सामने कुछ नहीं है। यहाँ कृतिम रूप से बनाये गए पार्क नहीं हैं परन्तु प्रकृति ने यहां की धरती को प्राकृतिक सुंदरता से नवाजा है जो शहरीय पार्कों की तुलना में अत्यंत ही खूबसूरत और खुशबूदार हैं। सुबह सुबह छोटी सी पगडंडियों पर चलना और चारों तरफ से आती हुई धान के खेतों की मनमोहक खुशबू मन को एहसास कराती है कि कुछ ही समय के लिए सही परन्तु मन को सच्चा सुख और ख़ुशी कहीं मिल सकती है तो वह सिर्फ प्रकृति द्वारा ही संभव है। 

   अभी मैं इन धान के खेतों के बीच से होकर आगे बढ़ ही रहा था कि मेरे सामने खेतों के बीच से धुँआ उड़ाती हुई ट्रेन गुजरी, वाकई कितना शानदार नजारा है जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस समय मौसम भी खुशनुमा बना हुआ है, आकाश में छाई काली घटायें सुबह के इस समय को और भी खूबसूरत बना रही थी। कहीं पूरब में दिखाई देने वाला वो सुबह का सूरज, आज आसमान में छाये हुए बादलों के पीछे कहीं गुम सा हो गया था परन्तु उसकी लालिमा आसमान को रंगीन बनाये हुए थी जिसे देखकर लग रहा था कि साक्षात् प्रकृति ने आसमान में एक नई चित्ररेखा तैयार की हो। अभी बस मैं पीछे मुड़ा ही था कि मेरी नजर पत्ते पर बैठे एक कीट पर गई जो देखने में बहुत ही खूबसूरत था, लाल रंग के इस कीट को प्रकृति ने काले काले घेरों से सुंदरता के साथ सजाया है। 
   मैं रेलवे लाइन पार करने के बाद गाँव की तरफ बढ़ चला। बारिश की हल्की हल्की फुहार अब बरसने लगी थीं,लोग ऐसी फुहारों से नहाने के लिए अपने घरों के बाथरूमों में बड़े बड़े शावर लगवाते हैं किन्तु आज प्रकृति ने इस गाँव को ही बिना किसी आकार का शावर प्रदान किया हुआ है जिसमें केवल इंसान ही नहीं ये पेड़ पौधे और जीव जंतु भी इस प्राकृतिक शावर का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। पीपल के पेड़ की नई पत्तियाँ इस बरसाती मौसम में और भी खिल उठी हैं और अपने रंग में जोर जोर से चमकने लगीं हैं। इस पीपल के पेड़ को देखकर लगता है जैसे कि ये अभी अभी उत्पन्न हुआ हो। गाँव की प्राथमिक पाठशाला की दीवारों पर बने चित्र और उनपर लिखी  हुईं बातें मुझे मेरे बचपन में ले जाते हैं। 

   जिस प्रकार शहरों की शान कारें हुआ करती हैं उसी प्रकार गाँव की शान यहाँ अलग अलग घरों में खड़े हुए विभिन्न तरह के ट्रैक्टर होते हैं और इतना ही नहीं इनके साथ इनके उपकरणों की भी उतनी ही विशेषता है जो गाँव के किसी भी कोने में कहीं भी हमें खड़े हुए दिखाई दे जाते हैं और वो भी बिना किसी रखवाली के। लोग शहरों में कुत्तों को पालते हैं और उन्हें अपने साथ मॉर्निंग वाक पर ले जाते हैं वहीँ गाँव में लोग गाय - भैंस अपने घरों में रखते हैं और सुबह सुबह इन्हें अपने साथ नहीं बल्कि इनके ( गाय और भैंस ) साथ मॉर्निंग वॉक पर जातें हैं। फर्क केवल इतना होता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शहरीय लोगों को ना चाहते हुए भी सुबह जल्दी उठाना पड़ता है और मॉर्निंग वॉक पर जाना पड़ता है और वहीं ग्रामीण लोग सुबह सुबह अपने पशुओं को चराने के लिए मॉर्निंग वाक पर निकलते हैं जिससे इनका शरीर स्वतः ही स्वस्थ रहता है। 

   मेरी मौसी मुझे एक बड़े गिलास में ताजा छाछ लाकर देती हैं जिसे मैं बड़ी ही देर में समाप्त कर पाता हूँ वो भी सिर्फ इसलिए कि शायद मुझे प्रतिदिन छाछ पीने का और इतने बड़े गिलास में पीने का अभ्यास नहीं है। मेरे मौसाजी सरकारी हैडपम्प से पानी भर रहे हैं जो मेरे मौसा जी के घर के ठीक बाहर लगा हुआ है। इसे देखकर मुझे याद आया कि हमारे यहाँ तो केवल एक स्विच दबाने की देर होती है और सबंसिरबल स्वतः ही पानी भर देती है जिसके लिए हम प्रत्येक महीने बिजली विभाग को कुछ रूपये भी अदा करते हैं, जबकि यहाँ शरीर की मेहनत जमीन से पानी खींचती है वो बिना किसी शुल्क के, और इसका दूसरा फायदा ये है कि नल चलाने से शरीर मेहनत करता है और स्वतः ही स्वस्थ बना रहता है। 

   गाँव के जीवन से सरावोर होने के बाद मैंने सिर्फ इतना अनुभव किया कि शहरों की तुलना में ग्रामीण लोगों का जीवन काफी सरल, सुखद और सम्पन्न होता है। ये गर्मियों के दिनों में रात को खुले आसमान के नीचे सोते हैं और शुद्ध हवा को ग्रहण करते हैं इनहें एसी और कूलर की कोई आवश्यकता नहीं होती। ये रात को जल्दी सोते हैं और सुबह पौं फटने से पहले ही जाग जाते हैं जिससे सुबह की शुद्ध वायु इनके शरीर को पूरे दिन ताजा और फुर्तीला रखती है। ये पैक मिल्क नहीं पीते हैं बल्कि शुद्ध और ताजा गाय भैस का दूध पीते हैं। इनके यहाँ रोटियां मिटटी के चूल्हे पर बनाई जाती हैं जो शरीर के लिए गैस की अपेक्षा अत्यधिक लाभदायक होती हैं। ये आसपास की दूरी पैदल ही तय करते हैं जिससे ये जनहित में बाइक या कार ना चलाकर वायु प्रदूषण से बचते हैं और पैदल चलकर अपने शरीर की शारीरिक क्षमता को बढ़ाते हैं। 

   कुल मिलाकर हम कह सकते हैं की ग्रामीण लोग शहरीय लोगों की तुलना में शारीरिक रूप से अधिक मजबूत और ऊर्जावान होते हैं। यह प्रकृति की रखा तहे दिल से करते हैं इसलिए प्रकृति हमेशा इन पर मेहरबान रहती है और इन्हें हमेशा सम्पन्न रखती है।  

मीटरगेज का इंजन जो अपना कार्य और समय पूरा कर चुका है 

मेरा मौसेरा भाई - नीरज उपाध्याय 

ट्रेन में से कुछ देखते हुए 

मेंडू रेलवे स्टेशन 

मीटरगेज का पुराना स्टेशन - हाथरस रोड जहाँ पहले डबल मीटरगेज लाइन थी और आज केवल सिंगल ब्रॉड गेज लाइन है 

हाथरस रोड 

मौसी के गाँव का रेलवे स्टेशन - रति का नगला 

रति का नगला 

रति का नगला स्टेशन की सड़क से लोकेशन 

नानी को दवा देती मौसी 

मेरे मौसाजी - श्री रामकुमार उपाध्याय 

मेरी नानी - महादेवी शर्मा 

मौसाजी और मौसी जी 

पपीता काटती हुई मौसी 

मौसी का पुराना घर जिसके आगे सिर्फ खेत हैं 

रोहित उपाध्याय - मेरी मौसी का सबसे छोटा पुत्र 

मेरी पुरानी  बाइक के साथ मेरा एक फोटो - कोडेक कैमरे से 

   बहुत पुरानी यात्रा है इसलिए केवल संस्मरण ही मुझे याद थे बाकी जो उस समय के कुछ फोटो मैंने अपने कोडेक के कैमरे में और मोबाइल में लिए थे आप सभी के सामने हैं। इस ब्लॉग में अगर कोई कंटेंट ऐसा लिख गया हो जो आपकी नजर से गलत या ना लिखने लायक हो तो कृपया नीचे दिए गए कंमेंट बॉक्स में अवश्य बताइयेगा। बाकी कोई त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए तहे दिल से क्षमा प्रार्थीं हूँ। 
आपका - सुधीर उपाध्याय 


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Sunday, March 7, 2010

धौलपुर से तांतपुर और सरमथुरा



धौलपुर से तांतपुर और सरमथुरा नेरोगेज रेलयात्रा




    छोटा था इसलिए आगरा बाहर अकेले जाने में डर सा लगता था किन्तु किस्मत ने को हमेशा साथ देने वाला दोस्त नहीं दिया था तो हिम्मत करके अकेला ही अब यात्रायें करने लगा था। पहली यात्रा धौलपुर से सरमथुरा जाने वाली रेलवे लाइन पर की, जब धौलपुर पहुँचा तो पता चला ट्रेन निकल चुकी है। इस रूट पर यात्रा करने वाली ये अकेली ही ट्रेन है जो सुबह चार बजे धौलपुर से सरमथुरा जाती है और सुबह दस बजे वापस आती है। अब यह सरमथुरा से वापस लौट रही है और कुछदेर बाद इंजन बदलकर ये फिर से तांतपुर जायेगी जो आगरा उत्तरप्रदेश में एकमात्र नेरोगेज का रेलवे स्टेशन है और तांतपुर से बाड़ी आकर फिर से वापस सरमथुरा जायेगी और रात को वापस धौलपुर आकर विश्राम करेगी और फिर अगले दिन सुबह चार बजे अपनी यात्रा प्रारम्भ करेगी। मैं इस ट्रैन से यात्रा करने के लिए धौलपुर से बाड़ी तक बस से गया और बाड़ी स्टेशन पहुँचा।  

    जब ट्रैन स्टेशन पर पहुंची तो सभी लोगों ने अपना स्थान ग्रहण किया, अधिकतर लोग इसकी छत पर बैठकर यात्रा पसंद करते हैं। मैंने देखा कि कोच के अंदर हालांकि सीटें खाली पड़ी हैं किन्तु वह सीटें यहाँ औरतों और  बच्चों के काम आती हैं। यहाँ के मर्द छत पर बैठकर यात्रा करने में ही अपनी शान समझते हैं। कुछ लोग छत पर बैठकर बीड़ी सुलगा रहे हैं कुछ गिरोह बनाकर ताश खेल रहे हैं। ट्रेन स्टेशन से प्रस्थान कर चुकी है मैं ट्रेन के अंदर हूँ और अगले स्टेशन पर उतरकर मैं भी छत पर जा चढ़ा। ट्रेन की छत पर भी चने वाला पूरी ट्रेन की छत पर घूम घूम कर अपने चने बेच रहा है और लोग आनंदित होकर चने खाते हुए यात्रा कर रहे हैं। 

    इस रेलमार्ग पर बाड़ी यहाँ का मुख्य स्टेशन से है जहाँ इस ट्रेन का ठहराव काफी समय तक है। बाड़ी एक बड़ा कस्बा है और धौलपुर के बाद एक मुख्य बाजार भी। काफी देर यहाँ रुकने बाद और इंजन के आगे से पीछे लगने के बाद यह ट्रेन अपने अगले स्टेशन मोहारी पहुँचती है। यह एक जंक्शन स्टेशन है जहाँ से एक लाइन सरमथुरा जाती है और दूसरी तांतपुर।  फ़िलहाल हम सरमथुरा की तरफ चल रहे हैं। तांतपुर से पहले बड़ा स्टेशन बसेड़ी है जो उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा हुआ है और इसके बाद यह ट्रेन भी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है जहाँ तांतपुर इसका आखिरी पड़ाव है।

    यहाँ से अब ये तांतपुर - बाड़ी पैसेंजर बनकर बाड़ी तक जाती है और आपको गर इसी ट्रेन से धौलपुर जाना है तो उतरिये मत इसीमे बैठे रहिये पर हाँ बाड़ी पहुंचकर सरमथुरा के लिए टिकट अवश्य ले लीजिये क्योंकि यह ट्रेन वापस अपनी दिशा में अपनी दूसरी लाइन जो मोहारी से अलग होकर सरमथुरा जाती है ( जिस पर अभी मैं यात्रा कर रहा हूँ ) उसी पर जायेगी और अपने अंतिम स्टेशन से सरमथुरा वापस चलकर शाम को सात बजे धौलपुर पहुंचेगी।  जहां से आप ताज एक्सप्रेस से आगरा या दिल्ली वापस आकर अपनी यात्रा को समाप्त कर सकते हैं।

    मोहारी से निकलने के बाद रनपुर और आंगई स्टेशन पर रुकते हुए यह बरौली को बिना रुके एक सुपरफास्ट एक्सप्रेस की तरह पार करती है और इसके बाद इसी तरह कांकरेट पर बिना रुके सीधे सरमथुरा पहुँचती है। और यहाँ से इंजन दूसरी दिशा में लगाकर इसे वापस धौलपुर के लिए रवाना कर दिया जाता है। 

इस रेल मार्ग के मुख्य  स्टेशन 


  • धौलपुर जंक्शन 
  • नूरपुरा 
  • गढ़ी सांद्रा 
  • सुरौठी 
  • बारी 
  • मोहारी जंक्शन 
  • बसेरी               
  • बागथर 
  • तांतपुर    
  • मोहारी जंक्शन 
  • रनपुरा 
  • आंगई 
  • बरौली ( अब सेवा में नहीं है )
  • कांक्रेट ( अब सेवा में नहीं है )
  • सिरमथुरा 
ट्रेन  का समय 
  • 52179 धौलपुर - सिरमथुरा पैसेंजर  4 :00 - 7 :00 
  • 52181 धौलपुर - तांतपुर पैसेंजर      10:40 - 13 :05 
  • 52183 बारी  - सिरमथुरा पैसेंजर      14 :45 - 16 :25 

मैंने इसमें तीसरी वाली ट्रेन से यात्रा की थी। उसी से मैं वापस धौलपुर भी पहुंचा। तांतपुर स्टेशन के फोटो मैंने अपनी बाइक यात्रा से लिए थे।

धौलपुर रेलवे स्टेशन 

धौलपुर रेलवे स्टेशन 

धौलपुर से बाड़ी नेरो गेज रेलवे लाइन 

* सुरौठी रेलवे स्टेशन 

बारी या बाड़ी रेलवे स्टेशन 

ट्रेन आने वाली है, बाड़ी 

तांतपुर से आई ट्रेन 

* बाड़ी में एक समय यह रेलवे लाइन 

मोहारी जंक्शन 

मोहारी जंक्शन 

मोहारी जंक्शन 
* बागथर रेलवे स्टेशन 

तांतपुर रेलवे स्टेशन 

तांतपुर रेलवे स्टेशन और मेरी बाइक 



 बरौली रेलवे स्टेशन, यहाँ ट्रेन का ठहराव अब नहीं है 

 बरौली रेलवे स्टेशन, यहाँ ट्रेन का ठहराव अब नहीं है 

 कांकरेट रेलवे स्टेशन, यहाँ ट्रेन का ठहराव अब नहीं है 

सरमथुरा रेलवे स्टेशन, इसे रेलवे की भाषा में सिरमथुरा कहते हैं।  
 * उपरोक्त फोटो विषय की उपयोगिता हेतु गूगल से लिए गए हैं। जिनके हैं उनका सह्रदय आभार।


मेरी अन्य नैरो गेज रेल यात्राएँ 


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  • काँगड़ा घाटी रेल यात्रा 2018 - चामुंडा मार्ग से ज्वालामुखी रोड 
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Wednesday, February 10, 2010

आयराखेड़ा यात्रा

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

साधना की शादी में - आयराखेड़ा यात्रा



 

FEB 2010,

    आज दस तारीख थी और आज मेरी प्रिय ममेरी बहिन साधना की शादी है। मैं साधना को प्यार से बहना कहकर बुलाता हूँ,  मुझे अच्छा लगता है और साधना को भी। हालाँकि उसकी शादी आगरा में ही हो रही है और शाम को बारात भी आगरा से ही आयराखेड़ा जायेगी परन्तु मुझे बारात से पहले ही वहां पहुँचना होगा। इसलिए मैं बिना देर किये मंगला एक्सप्रेस से मथुरा पहुंचा। यहाँ कासगंज से मथुरा वाला रेलखंड अभी हाल ही में मीटरगेज से ब्रॉडगेज में बदला गया है इसलिए यहाँ नई गाड़ियों का उदघाटन हो रहा था। पहली थी मथुरा से छपरा तक जाने वाली एक्सप्रेस गाड़ी और दूसरी कासगंज से मथुरा पैसेंजर। 

    मैं इस फूलमाला से लदी नई ट्रेंन से राया पहुँचा और फिर वहाँ से आयरा खेड़ा पहुँचा। जैसा कि अपनी पिछली पोस्ट में बता चुका हूँ कि आयराखेड़ा मेरी माँ का गॉव है और मेरी ननिहाल है। मैं जब यहाँ पहुँचा तो साधना मुझे देखकर बहुत खुश हुई। आज बारात आनी थी इसलिए उसकी तैयारी भी करना जरूरी थी। मैं साधना के बड़े भाई धर्मेंद्र शर्मा जिन्हें मैं हमेशा अपने सगे बड़े भाई के रूप में ही मानता आया हूँ उनके साथ बाइक से मुरसान की तरफ निकल गये और कुछ सामान लेकर वापस आये। रास्ते में मैं सोचता आ रहा था कि जिंदगी में कभी कभी ही ऐसे मौके आते हैं जब हम एक साथ होते हैं और साथ घूमते हैं। इसवक्त ना किसी नौकरी की कोई टेंशन होती है और नाही किसी दूसरी बात की कोई फ़िक्र। 

    मैं जब भी आयराखेड़ा जाता हूँ अपनी सारी टेंशनों को भूलकर दिल से यहाँ भरपूर एंजॉय लेता हूँ। यहाँ रहने  वाला हर शख़्स मुझे बहुत मानता है और मेरी इज़्ज़त भी करते हैं। मैं इन लोगों के साथ अपनी जिंदगी के हर सुखदुख को शेयर करता हूँ। आज तो मेरी प्रिय बहिन की शादी है मुझे इस बात का इतना दुःख नहीं था कि वो आज हमेशा के लिए आयराखेड़ा से अपने घर जाने वाली थी बल्कि ख़ुशी इस बात की थी कि आज वो मेरे शहर आगरा में जा रही थी यानी कि मेरे पास ही आने वाली थी। शाम को बारात आ गई, नोहरे की गली में ही बफर सिस्टम का प्रोग्राम था। बारात ने नाश्ता और दावत खाने के बाद इस गॉव से आगरा के लिए विदाई ली और बाकी लड़के वालों के कुछ गिने चुने सदस्य ही यहाँ रह गए। 

    मेरी प्रिय मीरा मौसी भी यहाँ शादी में अपने पति के साथ आई हुई थी। गोपाल, जीतू और धर्मेंद्र भैया यही तो सब मेरे बचपन के साथी थे। इनमें गोपाल और मुझे छोड़कर सभी की शादी हो चुकी है और यह अब अपनी बचपन की जिंदगी को भूलकर अपने परिवार के लिए जी रहे हैं यही तो जिंदगी है जिसमे भूतकाल के लिए कोई जगह नहीं होती। सिर्फ आगे बढ़ने का ही नाम जिंदगी है। साधना भी अब बचपन की यादों को दिल में लेकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रही है। मैं ईश्वर से कामना करता रहा कि मेरी बहिन को उसके यहाँ वो सारी खुशियाँ मिलें जो उसे नहीं मिल पाईं थीं और फिर वो जहाँ जा रही है वहां हर पल उसके साथ मैं रहूँगा ही। 



बाद रेलवे स्टेशन 

मथुरा जंक्शन पर एक केबिन 


मथुरा छपरा एक्सप्रेस का उदघाटन 

नई मथुरा कासगंज पैसेंजर 

धर्मेंद्र भैया सोनाई रेलवे स्टेशन पर 

सोनई 

अनिल उपाध्याय और धर्मेंद्र भैया 


साधना - शादी से पहले 


भात पहनाते ब्रजेश मामा 

शादी में वीके 

शादी वाली रात साधना 

अपने पुत्र सनी के साथ भाई 

शादी की हार्दिक शुभकामनायें 

बफर सिस्टम 

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